सुदामा प्रसाद धूमिल साठोत्तरी कविता के प्रतिनिधि कवि हैं। उनकी कविता जनतंत्र .संसद.संविधान और प्रजातंत्र के खोखलेपन को वास्तविक अर्थ में हमारे सामने प्रस्तुत करती है। आज मैं उनकी कविता “रोटी और संसद’ प्रस्तुत कर रहा हूं। नव वर्ष-2011 की अशेष शुभकामनाओं के साथ- प्रेम सागर सिंह, कोलकाता।
रोटी और संसद
एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है।
वह सिर्फ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूँ-
‘यह तीसरा आदमी कौन है!’
मेरे देश की संसद मौन है।
प्रेम बाबू!
ReplyDeleteधूमिल जी के कबिता के बारे में का कहल जाओ, आपन समय से आगे के कबिताई!! हम त टिप्पणी देवे खातिर भी छोट बानीं...
साल 2011 राऊर भरल पुरल परिबार के अऊर समृद्धि देवेवाला होखे, एही सुभकामना बाटे!!
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ReplyDeleteधूमिल जी की बेहतरीन कविता पढवाने के लिए आभार।
नव वर्ष मंगलमय हो।
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नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeleteगहन कविता, प्रश्न पर उत्तर मौन।
ReplyDeleteधूमिल ने अल्पकाल में ही सबकुछ कह डाला..
ReplyDeleteवाह वाह, धूमिल जी को श्रेष्ठ लेखन की बधाई.
ReplyDeleteआपको भी धन्यवाद इसे पढ़वाने के लिए.
धूमिल जी की कविता पढ़वाने के लिए आभार।
ReplyDeleteअनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
तय हो सफ़र इस नए बरस का
प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
सुवासित हो हर पल जीवन का
मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
शांति उल्लास की
आप पर और आपके प्रियजनो पर.
आप को सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
सादर,
डोरोथी.
गाजियाबाद से एक यलो एक्सप्रेस चल रही है जो आपके ब्लाग को चौपट कर सकती है, जरा सावधान रहे।
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