कविता तेरे रूप अनेक
प्रेम सागर सिंह
मन में आए भावों एवं शब्दों के साथ,
लालित्य एवं गेयता जब आ जाती है,
तब कवि-मन प्रस्फुटित हो जाता है,
और लेखनी स्वत: बोल उठती है।
समस्त कारकों को अपने में समाहित
करने के बाद संपूर्ण भावों के
सामीप्य में आकर ये उदगार,
कविता का रूप बन जाते हैं।
प्रेस में छपने के बाद कविता
उस रूप में नही रह जाती है,
उसके भाव, शब्द एवं अभिव्यक्ति,
सभी समवेत स्वर में बोल उठते हैं।
व्याकरण के समस्त उपादान,
अपने-अपने स्थान को परिवर्तित कर,
कविता का चिर- संगी बन कर ,
उससे अटूट रिश्ता जोड़ लेते हैं।
ये तो कविता के भाव की बातें हैं
पढ़ने पढ़ाने और छपने की बातें हैं,
तभी यह कविता कई अनकहे भावों को,
अचानक ही विस्फोट करा कर
साहित्य-जगत में हलचल मचा देती है।
किसी के मुख-मंडल को पीताभ तो,
किसी को रक्ताभ करने के साथ-साथ ,
किसी को हरीतिमा प्रदान कर जाती है.
य़ह कविता।
दुख-दर्द एवं पीड़ा से व्यथित व्यक्ति के,
रूदन की जिंदगी से कुछ लमहे निकाल कर,
एक पल के लिए ही सही, कभी हंसाती है,
तो कभी हंसते हुए को रूला भी देती है,
यह कविता।
हर प्रेमी कवियों के अंतर्मन में ,
झांकती और बसती है, यह कविता,
सम्मेलन एवं कवि-गोष्ठियों में
हृदयस्पर्शी एवं मार्मिक बन जाती है,
यह कविता।
युवा पीढ़ी की धड़कन के साथ-साथ
उनके रंगीन सपने को बुनती है,
यह कविता।
जहां भी इसे प्रस्तुत किया जाता है
उस जगह को काव्यमय बनाती है,
यह कविता।
संयोग और वियोग के भावों को,
सजाकर प्रस्तुत करती है यह कविता,
हर स्तर के लोगों के आवाज को ,
मुखरित करती है यह कविता
समय के प्रवाह के साथ-साथ,
एक जगह पर स्थिर होने के बाद,
केदार नाथ सिंह सरीखे कवियों के
सामीप्य में आने के बाद स्वत: ही,
आलोचना के कठघरे में खड़ी होकर,
इसकी विषय-वस्तु बन जाती है,
यह कविता।
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