Sunday, November 10, 2013

छठ माई को याद करने के बहाने।

छठ मैया को पुन: याद करने के बहाने।
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                                   प्रेम सागर सिंह


बिहार के कण कण में छठ बसता है, क्या भोजपुर, क्या मिथिला और क्या मगध ,समूचा बिहार एक साथ,उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल भी धीरे- धीरे रंग गया साथ में | छठ महापर्व आरम्भ हो गया | सूर्य की आराधना वाला यह पर्व अपने जैसा एकलौता | दुनिया में शायद ही कोई पर्व होगा जिसमे आप अपने आराध्य की अर्चना कीजिये और दर्शन तुरंत हो जाता हो | शायद यही कारण है की कोई धर्म की रीति इसे काट नहीं पाती | उर्जा और रोशनी देने वाले महामहिम सूर्य की आराधना का पर्व |

छठी मैया की महिमा को शब्दों में कहना मुश्किल है, भावना अभिव्यक्त करना कठिन है,सिर्फ यही कह सकता हूँ इनका स्मरण मात्र ही हम में से हरेक के अंदर हर्ष और उल्हास तो प्रस्फूटित तो करता ही है , आँखे भी नम हो जाती हैं | बिहार से बाहर रहने वाले बिहारियों की भी|कुछ लौटते है कम से कम साल में एक बार | जो नहीं लौट पाते रो लेते हैं जन्मभूमि को याद कर ,धीरे- धीरे जहाँ है वहां ही चालू कर देते हैं।
बचपन में , 1 महीना पहिले चले जाते थे कुदाल , खुरपी , तगाड़ी लेके घाट बनाने पोखरा पे , हमारे लिए छठ यही था, घाट साफ़ कीजिये जैसे एक किसान खेतों को करता है, फिर उसके ऊपर बाबू जी के इनिसियल खोद दीजिए , बुक हो गया घाट हमारे नाम पर| कलसुप रखने के लिए जगह बनाए , शाम को कलसुप पश्चिम के तरफ रहेगा ,भोर में पूर्व दिशा में | थोड़े बड़े हुए तो दौरा उठाना,किसी का ये कहना की छठ का आधा पुण्य दौरा उठाने वाले को मिलता है | छठ के लिए लाइट लगता है, जेनेरटर भी , हर महल्ला से घाट तक, का शरीफ, का रंगबाज, का लैका, का जवान,सब समाज सेवी बन जाते हैं,सच्चे मन से| सुबह सुबह चाय का स्टाल लगते थे, शुद्ध दूध का चाय पीजिए फ्री में |

शारदा सिन्हा की आवाज जैसे छठी माई खुद गा रही हों “ दौरा घाटे पहुचा “,ऐसे लगता है उनका गाना न हो तो सूर्य देवता उगे ही न|सही में माँ ही की आवाज है| छठ नहीं कर पायें तो क्या,छठ देखिये,रोड साफ़ कीजिये,दौरा उठाइए, कहने का मतलब है सबके लिए मौका है छठ के रंग में रंग जाने का |

आज कल की महिलाएँ बालों में कही छुपा के सिंदूर लगाती है ताकि LS न लगे, छठ में देखिये जो नाक से सिंदूर लगता है माँग तक , कही से LS (Low Society) लगता , ऐसा लगता है सुहागन शायद आज के लिए बनी थी , सिंदूर का गर्व इसी दिन के लिए है,पति को भी गर्व का अहसास होता है |
भोर का अरघ के बाद प्रसाद मांगिये , मांग के खाते है , चाहे बिज़नसमैन हों य कलक्टर , मांग के प्रसाद नहीं खाया तो मतलब नहीं है प्रसाद का | छठ का ठेकुआ आज तक कोई दुबारा वैसा नहीं बना पाया है , कतनो मिटटी के चुल्ला लगाइए , कतनो घी डालिए , श्रद्धा नहीं आ पायेगा , प्रसाद है छठ तक रुकना परेगा |
अगर छठ के दिन घर पर नहीं रहे तो जिंदगी की सारी पढाई लिखाई, मेहनत सब व्यर्थ है , बिना मतलब की है ! मन ही मन छठी मैया तोहरा गोर लागतानी, माफ कर दिहा, अगला बरिस जरुर आईब  ए माई |

Monday, November 4, 2013

है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है

है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है: हरिवंश राय बच्चन

                   
         प्रेम सागर सिंह


कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था
भावना के हाथ ने जिसमें वितानों को तना था
स्वप्न ने अपने करों से था जिसे रुचि से सँवारा
स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सना था
ढह गया वह तो जुटाकर ईंट, पत्थर, कंकड़ों को
एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है

बादलों के अश्रु से धोया गया नभ-नील नीलम
का बनाया था गया मधुपात्र मनमोहक, मनोरम
प्रथम ऊषा की किरण की लालिमा-सी लाल मदिरा
थी उसी में चमचमाती नव घनों में चंचला सम
वह अगर टूटा मिलाकर हाथ की दोनों हथेली
एक निर्मल स्रोत से तृष्णा बुझाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है

क्या घड़ी थी, एक भी चिंता नहीं थी पास आई
कालिमा तो दूर, छाया भी पलक पर थी न छाई
आँख से मस्ती झपकती, बात से मस्ती टपकती
थी हँसी ऐसी जिसे सुन बादलों ने शर्म खाई
वह गई तो ले गई उल्लास के आधार, माना
पर अथिरता पर समय की मुसकराना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है

हाय, वे उन्माद के झोंके कि जिनमें राग जागा
वैभवों से फेर आँखें गान का वरदान माँगा
एक अंतर से ध्वनित हों दूसरे में जो निरंतर
भर दिया अंबर-अवनि को मत्तता के गीत गा-गा
अंत उनका हो गया तो मन बहलने के लिए ही
ले अधूरी पंक्ति कोई गुनगुनाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है

हाय, वे साथी कि चुंबक लौह-से जो पास आए
पास क्या आए, हृदय के बीच ही गोया समाए
दिन कटे ऐसे कि कोई तार वीणा के मिलाकर
एक मीठा और प्यारा ज़िन्दगी का गीत गाए
वे गए तो सोचकर यह लौटने वाले नहीं वे
खोज मन का मीत कोई लौ लगाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है

क्या हवाएँ थीं कि उजड़ा प्यार का वह आशियाना
कुछ न आया काम तेरा शोर करना, गुल मचाना
नाश की उन शक्तियों के साथ चलता ज़ोर किसका
किंतु ऐ निर्माण के प्रतिनिधि, तुझे होगा बताना
जो बसे हैं वे उजड़ते हैं प्रकृति के जड़ नियम से
पर किसी उजड़े हुए को फिर बसाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है.

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