Thursday, January 6, 2011

गजल


जब घिनौने बिम्ब भी, देखे तुझे उपहास से
टूटने नही देना तू,दिल का रिश्ता आस से।

जिंदगी में बढ़ गई हैं,उलझनें कुछ इस कदर
दूर मै होता गया हूं, हास और परिहास से।

असलहों के बल कभी भी,शांति आ सकती नही
चींखती हैं ये सदाएं, विश्व के इतिहास से।

जिंदगी के ताने-बाने, बुन रहा हूं इस घड़ी
छोड़ दो तनहा मुझे, इस वक्त जाओ पास से।

हार कर बैठा नही, चलते रहो चलते रहो
कान में कहके हवा ये, गुजरी मेरे पास से।

डूब कर संध्या समय, यह सूर्य ने सबसे कहा
कल चमकना है मुझे फिर, एक नये विश्वास
से।

धैर्य से ले काम, ऐ प्रेम, तू घबरा नही
बाद पतझड़ होगा तेरा,सामना मधुमा
स से।

9 comments:

  1. बहुत सुंदर गजल । अगले गजल का इंतजार रहेगा।

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  2. चिंगारी जलाने की ज़रूरत है
    सुदर अभिव्यक्ति

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  3. बहुत प्यारी रचना, आशा और धैर्य में पगी।

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  4. जिंदगी में बढ़ गई हैं,उलझनें कुछ इस कदर
    दूर मै होता गया हूं, हास और परिहास से।

    ye pankti bha gayee mujhe...:)

    waise pura shandaar hai, kabhi hamare blog pe aayen..

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  5. प्रेम बाबू!
    आज ग़ज़ल कही है आपने.. पता नहीं पहले कभी आपने यह विधा अपनाई है या नहीं. भाव सुंदर हैं!!कुछ कमियाँ भी हैं मगर उनकी चर्चा ज़रूरी नहीं.. बहुत सुंदर!!

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  6. सलील भाई, बहुत बहुत धन्यवाद। आपने मेरी भावनाओं को समझा,यही मेरे लिए काफी है।

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  7. Nice post.

    ग़ज़ल

    दिल लुटने का सबब

    हम को किसके ग़म ने मारा ये कहानी फिर सही
    किसने तोड़ा दिल हमारा ये कहानी फिर सही

    दिल के लुटने का सबब पूछो न सबके सामने
    नाम आएगा तुम्हारा ये कहानी फिर सही

    नफ़रतों के तीर खाकर दोस्तों के शहर में
    हमने किस किस को पुकारा ये कहानी फिर सही

    क्या बनाएं प्यार की बाज़ी वफ़ा की राह में
    कौन जीता कौन हारा ये कहानी फिर सही

    -Masroor Anwar
    'हिंदुस्तान , पृष्ठ 9 , 7-1-20-11'

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  8. बहुत खूब - अति सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई तथा नव वर्ष की मंगल कामना.

    विशेष:
    "जिंदगी में बढ़ गई हैं,उलझनें कुछ इस कदर
    दूर मै होता गया हूं, हास और परिहास से"

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