Saturday, January 1, 2011

सुदामा प्रसाद धूमिल साठोत्तरी कविता के प्रतिनिधि कवि हैं। उनकी कविता जनतंत्र .संसद.संविधान और प्रजातंत्र के खोखलेपन को वास्तविक अर्थ में हमारे सामने प्रस्तुत करती है। आज मैं उनकी कविता “रोटी और संसद’ प्रस्तुत कर रहा हूं। नव वर्ष-2011 की अशेष शुभकामनाओं के साथ- प्रेम सागर सिंह, कोलकाता।

रोटी और संसद

एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है।
वह सिर्फ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूँ-
‘यह तीसरा आदमी कौन है!’
मेरे देश की संसद मौन है।

8 comments:

  1. प्रेम बाबू!
    धूमिल जी के कबिता के बारे में का कहल जाओ, आपन समय से आगे के कबिताई!! हम त टिप्पणी देवे खातिर भी छोट बानीं...
    साल 2011 राऊर भरल पुरल परिबार के अऊर समृद्धि देवेवाला होखे, एही सुभकामना बाटे!!

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  2. .

    धूमिल जी की बेहतरीन कविता पढवाने के लिए आभार।
    नव वर्ष मंगलमय हो।

    .

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  3. नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.

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  4. गहन कविता, प्रश्न पर उत्तर मौन।

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  5. धूमिल ने अल्पकाल में ही सबकुछ कह डाला..

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  6. वाह वाह, धूमिल जी को श्रेष्ठ लेखन की बधाई.
    आपको भी धन्यवाद इसे पढ़वाने के लिए.

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  7. धूमिल जी की कविता पढ़वाने के लिए आभार।


    अनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
    तय हो सफ़र इस नए बरस का
    प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
    सुवासित हो हर पल जीवन का
    मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
    करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
    शांति उल्लास की
    आप पर और आपके प्रियजनो पर.

    आप को सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
    सादर,
    डोरोथी.

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  8. गाजियाबाद से एक यलो एक्सप्रेस चल रही है जो आपके ब्लाग को चौपट कर सकती है, जरा सावधान रहे।

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