आपको यह बताना चाहूंगा कि मैं भी भारतीय वायु सेना से Junior Warrant Officer के पोस्ट से रिटायर्ड होकर वर्तमान मे आयुध निर्माणी बोर्ड, कोलकाता, भारत सरकार, रक्षा मंत्रालय के राजभाषा विभाग में हिंदी अनुवादक के पद पर कार्यरत हूँ। एक सैनिक होने के नाते भी मेरा मन बरबस ही उनसे जुड़ गया है क्योंकि साहित्य जीवन में पदार्पण करने के पूर्व अज्ञेय जी भी एक सैनिक ही थे। अगले पोस्ट में मैं उनकी कविता “कितनी नावों में कितनी बार” प्रस्तुत करूंगा।आप इसे अवश्य ही पढ़िएगा और अनुभव कीजिएगा कि उन्होंने कितनी अंतहीन सच्चाईयों का डटकर सामना किया है। यदि उनके संबंध में आप भी श्रद्धा रखते हो तो अपने COMMENTS के माध्यम से विनस्र श्रद्धांजलि अर्पित करें, मेरा मन असीम आनंद से पुलकित हो उठेगा और हम सब के हृदय से निकला उच्छवास ही सही संदर्भों में उनके प्रति विनम्र श्रद्धांजलि होगी। आपके सुझाव एवं प्रतिक्रिया की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। एक टिप्पणी देकर उस दिवंगत आत्मा को श्रद्धा-सुमन अर्पित करें। धन्यवाद।
कलगी बाजरे कीहरी बिछली घास।
दोलती कलगी छरहरे बाजरे की।
अगर मैं तुम को ललाती साँझ के नभ की अकेली तारिका
अब नहीं कहता,
या शरद के भोर की नीहार-न्हायी कुँई,
टटकी कली चम्पे की,वगैरह, तो
नहीं कारण कि मेरा हृदय उथला या सूना है
या कि मेरा प्यार मैला है।
बल्कि केवल यही :ये उपमान मैले हो गए हैं।
देवता इन प्रतीकों के कर गये हैं कूच।
कभी बासन अधिक घिसने से मुल्लमा छूट जाता हैं।
मगर क्या तुम नहीं पहचान पाओगी :
तुम्हारे रूप के – तुम हो, निकट हो, इसी जादू के -
निजी किसी सहज,गहरे बोध से,किस प्यार से मैं कह रहा हूँ –
अगर मैं यह कहूँ-
बिछली घास हो तुम
लहलहाती हवा में कलगी छरहरे बाजरे की ?
आज हम शहरातियों को
पालतू मालंच पर सँवरी जुही के फूल से
सृष्टि के विस्तार का-ऐश्वर्य का -औदार्य का-
कहीं सच्चा, कहीं प्यारा एक प्रतीक
बिछली घास है,
या शरद की साँझ के सूने गगन की पीठिका पर दोलती कलगी अकेली बाजरे की ।
और सचमुच, इन्हे जब-जब देखता हूँ
यह खुला विरान संसृति का घना हो सिमट आता है-
और मैं एकांत होता हूँ समर्पित।
शब्द जादू हैं -
मगर क्या यह समर्पण कुछ नही है !
अज्ञेयजी का हिन्दी साहित्य को योगदान अप्रतिम है।
ReplyDeleteनमन अज्ञेय को..
ReplyDeleteagyayji ko naman.......
ReplyDeleteaapke prem-sarovar se prem ke kuch boond mile......dhanywad.
kavita ke kuch-bimb bahut achhe lage.
pranam.
इतने बड़े साहित्य्कार के लिये मेरे शब्द बौने हो जायेंगे!! बस नमन!!
ReplyDeleteझा जी,
ReplyDeleteबूंद से क्या होगा प्रेम सरोवर में नहा कर देखिए।शरीर मे उष्णता आ जाएगी।
आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ...
ReplyDeleteHappy Republic Day..गणतंत्र िदवस की हार्दिक बधाई..
ReplyDeleteMusic Bol
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अज्ञेय जी लिये हम जितना भी कहे कम ही होगा । उनकी पचनाये तो हम सभी पढने वालो के लिये वरदान से कम नही हैं ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर चयन है आपका।
ReplyDeleteअज्ञेय जी को मेरा सदर नमन !
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना !
गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई !
Love Lake,
ReplyDeleteThank you so much for coming to my blog.
I too find your blog very interesting. I want to wish you a very happy Republic Day! Your post was very beautiful.
Thank you for sharing,
Lisa
आद. प्रेम जी,
ReplyDelete"और सचमुच, इन्हे जब-जब देखता हूँ
यह खुला विरान संसृति का घना हो सिमट आता है-
और मैं एकांत होता हूँ समर्पित।
शब्द जादू हैं -
मगर क्या यह समर्पण कुछ नही है !"
इस कविता में गहन भाव की संवेदना समाई हुई है !
अंतिम दो पंक्तियों ने तो नि:शब्द कर दिया !
मनोभावों की अच्छी एवं सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteसभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteअज्ञेय जी को मेरा सदर नमन|
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना|