Sunday, August 24, 2014

खामोश भावनाओं की ऊपज

खामोश भावनाओं की ऊपज
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(प्रेम सागर सिंह)

संभावनाओ की प्रत्याशा में,
जब ऊम्मीद की किरण
अपनी रश्मि बिखेरती है
और जब
फैला देती है समूचे परिवेश में
अपनी आभा की प्रतिच्छाया
जिसकी मद्धिम सी रोशनी में
दिख जाता है तुम्हारा
वह सजीला एवं सलोना सा रूप,
जो कभी मेरे अंतस को
न चाहते हुए भी
झकझोर देता था।

वक्त के साथ चलते-चलते
जब पुरानी बातें कभी-कभी
दिल के कोने से निकल कर
आँखों के सामने दिखती हैं
तब मन का कुछ असहज सा
हो जाना, क्या स्वभाविक नही है!
यदि स्वीकार भी कर लूं तो
ये बावरा मन न जाने क्यूं
मजबूर कर देता है सोचने के लिए।
बीते दिनों के संघर्ष को,
राग और विराग को,
जीत, हार और तारीफ को।

इन हालातों के दायरे में
विगत स्मृतियों का दुहराव
सिर्फ आहत भावनाओं की ऊपज है,
जो मेरी कोमल संवेदनाएं हैं,
जो न चाहते हुए भी मेरी
बेबश आँखों की कोरों से
फिसल कर धरा पर गिर

अपना वजूद खो देती है।