बोध कथा
एक अंधा वालक इमारत की सीढीयों पर वैठा था। उसकी टोपी उसके पैरों के करीव उल्टी करके रखी थी। उस बालक ने वहाँ पर चिह्न वनाया जो इंगित कर रहा था।
“मैं अंधा हूँ, मेरी मदद करो।“ उस टोपी में कुछ ही सिक्के पड़े थे। तभी एक व्यक्ति वहां से गुजरा। उसने अपनी जेब से कुछ सिक्के निकाले तथा उस टोपी में डाल दिए। उसका ध्यान वहाँ पर बने चिह्न पर गया। उसने उस चिह्न को हटाते हुए कुछ शब्द लिख दिए। अब वहां से हर आने जाने वाले लोग उन शब्दों को पढ़ते हुए उसकी टोपी में सिक्के डालने लगे।
उस दिन टोपी में प्रतिदिन की अपेक्षा अधिक सिक्के जमा हुए। संध्या को वही व्यक्ति जब सीढ़ीयों से उतर कर उस बच्चे के पास आय़ा तो उसके पदचापों की आहट को पहचानते हुए उस बालक ने कहा’आपने ऐसा क्या किया जिससे लोग प्रभावित हो मेरी टोपी में सिक्के डाल रहे थे!’ उसने कहा कि मैने भी वही लिखा है जो तुम चिह्न से कह रहे थे।बस उसका अंदाज बदल दिया। मैने लिखा है कि दिन वहुत सुंदर है लेकिन मै उसे देख नही सकता हू।
बात छोटी सी है लेकिन अपने आप में महत्वपूर्ण भी। अपनी बातों को पुराने घिसे-पिटे तरीके से न प्रस्तुत करते हुए यदि उसका अंदाज बदल दिया जाए तो वही बात सबको प्रभावित किए विना नही रहती।
“मैं अंधा हूँ, मेरी मदद करो।“ उस टोपी में कुछ ही सिक्के पड़े थे। तभी एक व्यक्ति वहां से गुजरा। उसने अपनी जेब से कुछ सिक्के निकाले तथा उस टोपी में डाल दिए। उसका ध्यान वहाँ पर बने चिह्न पर गया। उसने उस चिह्न को हटाते हुए कुछ शब्द लिख दिए। अब वहां से हर आने जाने वाले लोग उन शब्दों को पढ़ते हुए उसकी टोपी में सिक्के डालने लगे।
उस दिन टोपी में प्रतिदिन की अपेक्षा अधिक सिक्के जमा हुए। संध्या को वही व्यक्ति जब सीढ़ीयों से उतर कर उस बच्चे के पास आय़ा तो उसके पदचापों की आहट को पहचानते हुए उस बालक ने कहा’आपने ऐसा क्या किया जिससे लोग प्रभावित हो मेरी टोपी में सिक्के डाल रहे थे!’ उसने कहा कि मैने भी वही लिखा है जो तुम चिह्न से कह रहे थे।बस उसका अंदाज बदल दिया। मैने लिखा है कि दिन वहुत सुंदर है लेकिन मै उसे देख नही सकता हू।
बात छोटी सी है लेकिन अपने आप में महत्वपूर्ण भी। अपनी बातों को पुराने घिसे-पिटे तरीके से न प्रस्तुत करते हुए यदि उसका अंदाज बदल दिया जाए तो वही बात सबको प्रभावित किए विना नही रहती।
बातों का प्रस्तुीकरण महत्वपूर्ण है।
ReplyDeleteप्रेम बाबू!
ReplyDeleteहम तो इस शिक्षा का पूरी तरह पालन कर रहे हैं... इससे एक और कथा याद आ गई.. अनुमति दें!
तीन मज़दूर एक मंदिर के निर्माण का कार्य कर रहे थे. जब उनसे किसी ने पूछा कि तुम क्या कर रहे हो तो उनके जवाब थे:
"दिखाई नहीं देता,पत्थर तोड़ रहा हूँ!"
"परिवार का पेट पाल रहा हूँ."
"तुम्हें मेरा संगीत नहीं सुनाई देता! अरे भाई मैं भगवान का मंदिर बना रहा हूँ."
अपने काम में आनंद लेते हुए, ऐसा करो कि तुम्हारा का कहे कि ये उसका काम !
bahut achhi lagi bodhkatha.. sach mein bahut gyan se bhari hoti hai ye bodhkathayen...... aaj bhi ye utni hi saarthakta liye hain....
ReplyDeleteek hi baat ho kaun kis tarh pesh karta hai, yahi to jewan jeene ki kala hoti hai...
सार्थक रचना...
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...
सलिल वर्मा, प्रवीण जी,कविता रावत,फिरदौस खान-आप सबको नव वर्ष 2011 की हार्दिक सुभकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत सार्थक रचना वाकई मे शब्दों का सटीक प्रयोग जीवन बदल सकता है .....धन्यवाद
ReplyDeleteआपको व आपके परिवार को नव वर्ष की बहुत शुभकामनाये
बहुत अच्छी बात कही है कहानी के जरिये आपने... वैसे भी बातों के प्रस्तुतिकरण पर बहुत कुछ निर्भर करता है...बधाई
ReplyDeleteप्रस्तुतिकरण अच्छा लगा..आपका ब्लॉग भी फॉलो कर लिया..अब आना-जाना लगा रहेगा...
ReplyDeleteमंजुला जी एव वीना जी आप सबको मेरा सादर नमन और नव वर्ष 2011 की अशेष शुभकामनाएं।
ReplyDeleteअनुरोध है कि इसकी निरंतरता वनाए रखे ताकि इसके माध्यम से हम कुछ शिक्षा हासिल कर सकें।
ReplyDeleteमहात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के ब्लॉग हिन्दी विश्व पर राजकिशोर के ३१ डिसेंबर के 'एक सार्थक दिन' शीर्षक के एक पोस्ट से ऐसा लगता है कि प्रीति सागर की छीनाल सस्कृति के तहत दलाली का ठेका राजकिशोर ने ही ले लिया है !बहुत ही स्तरहीन , घटिया और बाजारू स्तर की पोस्ट की भाषा देखिए ..."पुरुष और स्त्रियाँ खूब सज-धज कर आए थे- मानो यहां स्वयंवर प्रतियोगिता होने वाली ..."यह किसी अंतरराष्ट्रीय स्तर के विश्वविद्यालय के औपचारिक कार्यक्रम की रिपोर्टिंग ना होकर किसी छीनाल संस्कृति के तहत चलाए जाने वाले कोठे की भाषा लगती है ! क्या राजकिशोर की माँ भी जब सज कर किसी कार्यक्रम में जाती हैं तो किसी स्वयंवर के लिए राजकिशोर का कोई नया बाप खोजने के लिए जाती हैं !
ReplyDeleteप्रिय प्रीती कृष्णा जी,
ReplyDeleteआपके दर्द को मैं समझ रहा हूं। इस तरह का पोस्ट वास्तव में निंदनीय है। मेरी आपके साथ पूरी सहानुभूति है। नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं।