Saturday, January 8, 2011









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छोटी सी बात
एक छोटी सी बच्ची अपने पिता के साथ सैर-सपाटे के लिए जा रही थी।रास्ते में एक उफनती नदी पर बना लकड़ी का पुल आया तो बच्ची डरने लगी। उसके पिता बोले-डरो मत।मेरा हाथ पकड़ लो।नन्ही बच्ची बोली -”नही पापा- आप मेरा हाथ पकड़ लो।” पिता जोर से हँसे और बोले दोनों मे क्या अंतर है।बच्ची ने जबाब दिया-अगर मैं आपका हाँथ पकड़ लूं और अचानक कुछ हो जाए तो संभव है, मेरे से आपका हाँथ छूट जाए लेकिन अगर आप मेरा हांथ पकड़ेंगे तो मैं पक्का जानती हूं कि कुछ भी हो जाए आप मेरा हांथ कभी नही छोड़ेंगे।
इस वार्तालाप में गंभीर दार्शनिक विचार है।आज के समय को देखते हुए बुजुर्गों की उपस्थिति कई परिवारों में भार बनती जा रही है।य़ुवा पी़ढ़ी पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण कर रही है।रात को देर से सोना और सुबह देर से उठना उनकी आदतों में शुमार हो गया है।बड़े बुजुर्गों की बातें उन्हे पसंद नही आती क्योंकि वे उनकी जीवन शैली से ताल-मेल नही रखती।पीढ़ी ने जो मेहनत की आज का विज्ञान और प्रौद्योगिकी उसकी देन है।अत:बचपन में जिस हांथ ने सभी का साथ कभी भी नही छोड़ा उन बूढ़े हाथों को जब अपने बच्चों के सहारे की जरूरत हो तो वह भी साथ निभाने वाले हांथ आगे बढ़ाएं जिस तरह कभी उन्ही हाथों ने सबको चलना या आगे बढ़ना सिखाया था।

7 comments:

  1. हमेशा की तरह बहुत अच्छी सीख देती पोस्ट है...आभार...

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  2. इहे से नू प्रेम बाबू हमार अनुरोध रहे कि रऊआ हमार हाथवा थाम के चलीं... बड़ बानीं त आशीर्बाद के हाथ धईले रहीं..
    बहुत कोमल पोस्ट!!

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  3. सलील भाई,
    तोहरा सिर पर हमार हाथ हरदम रही।सबके हाथ छूट जाइ लेकिन राउर हाथ कबहूं ना छूटी।धन्यवाद।

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  4. हाथ तो अपना ही जगन्‍नाथ होता है, लेकिन केयरिंग-शेयरिंग हर उम्र में सबके लिए जरूरी है, मनुष्‍य सामाजिक प्राणी जो ठहरा.

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  5. बहुत मार्मिक. पहला पैराग्राफ ही काफी था.

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  6. बहुत पसन्द आया
    हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
    बहुत देर से पहुँच पाया ,,,,,,,,....माफी चाहता हूँ..

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