Friday, January 14, 2011

मै यह कविता शमशेर बहादुर सिंह ( जन्म तिथि-03जनवरी,1911) के जन्म शतवार्षिकी पर प्रस्तुत करने वाला था किंतु कुछ अपरिहार्य कारणों से इसे पोस्ट न कर सका। आज इस कविता को उन्हे याद करने के बहाने पोस्ट कर रहा हू, इस विश्वास के साथ कि शायद मेरा यह छोटा सा प्रयास आप सबके दिल में उनके तथा मेरे प्रति थोडी सी जगह पा जाए।
प्रेम सागर सिंह, कोलकाता

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उनकी कविताओं की सबसे बड़ी विशेषता उनकी शिल्प संरचना हैं। चित्रकला के प्रति लगाव के कारण इनकी कविताओं में चित्रात्मकता का समावेश अधिक हुआ हैं। वस्तुत: वे शब्द शिल्पी हैं, जो शब्दों के माध्यम से चित्र-रचना करते हैं। इस विशेषता के कारण इनकी कविताओं में रूपवादी रूझान अधिक गहरा हो गया है। इससे लगता है कि वे क्या कहना चाहते हैं,इसे गौड़ मानकर उसे कैसे कहा जाए इसी को अधिक महत्व देते प्रतीत होते हैं। इनकी कविताओं का मूल भाव ‘प्रेम’ है-मानव प्रेम, नारी प्रेम,प्रकृति प्रेम आदि अनेक क्षेत्रों में इसी प्रेम का व्याप्ति है।

जब कभी भी उनकी अभिव्यक्ति काव्य के रूप मे वर्चस्व स्थापित करती सी प्रतीत होती है तो की गर्मी
या शीतलहरी में भी मुझे सुखद बयार सी अनुभूति होती है। उनकी एक कविता,जिसे मैं नीचे प्रस्तुत कर रहा हूं,बेहद ही सराही गयी है। इसे पोस्ट करने की पृष्ठभूमि में मेरा आशय यह है कि हम सब अपने प्रकाशस्तभों के सामीप्य मे रहें।

आप का सुझाव यदि मुझे इस दिशा में अभिप्रेरित करने में सफल सिद्ध होगा तो मुझे अनिर्वचनीय सुख की अनुभूति होगी। उनके प्रति आपके विचार/टिप्पणी ही उनके प्रति सही श्रद्धांजलि होगी। उन्हे याद करते हुए मेरी आखें नम हो गयी हैं-उन्हे चाहकर भी नही भूल पा रहा हूं क्योंकि-
इक बार तुझे अक्ल ने चाहा था भुलाना,
सौ बार रब न् तेरी तस्बीर दिखा दी।।
इसी क्रम में नीचे प्रस्तुत है उनकी कविता जो हमारी भावनाओं को कहीं न कहीं झकझोर कर चली जाती
है:--

धूप कोठरी के आँगन में

धूप कोठरी के आँगन में खड़ी
हँस रही है

पारदर्शी धूप के पर्दे
मुस्कराते
मौन आँगन में

मोम-सा पीला
बहुत कोमल नभ


एक मधुमक्खी हिला कर फूल को
बहुत नन्हा फूल
उड़ गई

आज बचपन का
उदास माँ का मुख
याद आता है।।
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12 comments:

  1. आदरणीय प्रेम सरोवर जी
    सादर प्रणाम
    शमशेर बहादुर सिंह जी हिंदी कविता के जाने माने हस्ताक्षरों में से एक हैं ..उनकी कविता व्यक्ति की भावनाओं और संवेदनाओं की कविता है ...आपने बहुत सुंदर तरीके से उन्हें याद किया है ..
    “इक बार तुझे अक्ल ने चाहा था भुलाना,
    सौ बार रब ने तेरी तस्बीर दिखा दी।।
    हाँ यही सच लगता है ....मैं इससे ज्यादा क्या कहूँ ..शुक्रिया आपका

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  2. आदरणीय प्रेम सरोवर जी
    सादर प्रणाम
    सुंदर कविता .. .

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  3. आज बचपन का
    उदास माँ का मुख
    याद आता है।।

    sach me yaad aata hai..:)

    Kewal jee se purntaya sahmat!!

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  4. माँ का दुख कितना भारी लगता था, दुनिया जला देने का मन करता था।

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  5. आज बचपन का
    उदास माँ का मुख
    याद आता है।।

    आज ही नहीं, यह हर समय याद आता है..बहुत सुन्दर प्रस्तुति.

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  6. एक महान साहित्यकार को श्रद्धान्जलि देने का अनोखा तरीका... नमन डॉ.शमशेर को!!

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  7. नाजुक भावों की कोमल कविता.

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  8. बहुत सुंदर और भावुक कर देने वाली पोस्ट।
    आदरणीय शमशेर बहादुर सिंह को विनम्र श्रद्धांजलि।

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  9. आज बचपन का
    उदास माँ का मुख
    याद आता है।।
    बहुत सहज सरल शब्दों मे ज़ीवन के कोमल क्षणो, को छू दिया। सच मे यही एक रिश्ता है जो हमेशा याद आता है भले कितना भी भूलना चाहें। स्व. शमशेर बहादुर जी को पढवाने के लिये आभार। उन्हें विनम्र श्रद्धाँजली।

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  10. आदरणीय प्रेम सरोवर जी
    प्रणाम
    ........क्या खूब रचना है.. नमन डॉ.शमशेर को

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