हार
(रामधारी सिंह दिनकर)
हार कर मेरा मन पछताता है।
क्योंकि हारा हुआ आदमी
तुम्हे पसंद नही आता है।
लेकिन लड़ाई में मैंने कोताही कब की !
कोई दिन याद है,
जब मैं गफलत में खोया हूँ !
यानी तीर धनुष सिरहाने रख कर
कहीं छाँह में सोया हूँ !
हर आदमी की किस्मत में लिखी है।
जीत केवल संयोग की बात है।
किरणें कभी-कभी कौंध कर
चली जाती हैं,
नहीं तो पूरी जिंदगी
अंधेरी रात है।
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः
(रामधारी सिंह दिनकर)
हार कर मेरा मन पछताता है।
क्योंकि हारा हुआ आदमी
तुम्हे पसंद नही आता है।
लेकिन लड़ाई में मैंने कोताही कब की !
कोई दिन याद है,
जब मैं गफलत में खोया हूँ !
यानी तीर धनुष सिरहाने रख कर
कहीं छाँह में सोया हूँ !
हर आदमी की किस्मत में लिखी है।
जीत केवल संयोग की बात है।
किरणें कभी-कभी कौंध कर
चली जाती हैं,
नहीं तो पूरी जिंदगी
अंधेरी रात है।
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः
हार कर मेरा मन पछताता है।
ReplyDeleteक्योंकि हारा हुआ आदमी
तुम्हे पसंद नही आता है।
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
संभवतः इसीलिये हार दुखदायी होती है।
ReplyDeleteकिरणें कभी-कभी कौंध कर
ReplyDeleteचली जाती हैं,
नहीं तो पूरी जिंदगी
अंधेरी रात है।
बहुत भावपूर्ण
इस हार में भी जीत है
दिल में उनकी प्रीत है