Saturday, July 30, 2011

हार
(रामधारी सिंह दिनकर)

हार कर मेरा मन पछताता है।
क्योंकि हारा हुआ आदमी
तुम्हे पसंद नही आता है।

लेकिन लड़ाई में मैंने कोताही कब की !
कोई दिन याद है,
जब मैं गफलत में खोया हूँ !
यानी तीर धनुष सिरहाने रख कर
कहीं छाँह में सोया हूँ !
हर आदमी की किस्मत में लिखी है।
जीत केवल संयोग की बात है।
किरणें कभी-कभी कौंध कर
चली जाती हैं,
नहीं तो पूरी जिंदगी
अंधेरी रात है।
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः


3 comments:

  1. हार कर मेरा मन पछताता है।
    क्योंकि हारा हुआ आदमी
    तुम्हे पसंद नही आता है।

    बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !

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  2. संभवतः इसीलिये हार दुखदायी होती है।

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  3. किरणें कभी-कभी कौंध कर
    चली जाती हैं,
    नहीं तो पूरी जिंदगी
    अंधेरी रात है।

    बहुत भावपूर्ण
    इस हार में भी जीत है
    दिल में उनकी प्रीत है

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