हो जाते है क्यूं आर्द्र नयन
हो जाते हैं क्यूं आर्द्र नयन
मन क्यूं अधीर हो जाता है.
स्वयं का अतीत लहर बन कर,
तेरी ओर बहा ले जाता है।
वे दिन भी बड़े ही स्नेहिल थे,
जब प्रेम सरोवर उफनाता था।
इसके चिर फेनिल उच्छवासों से,
स्वप्निल मन भी जरा सकुचता था।
कुछ कहकर कुंठित होता था।
तुम सुनकर केवल मुस्काती थी।
हम कितने कोरे थे उस पल,
कुछ बात समझ नही आती थी।
हम छुड़ गए दुर्भाग्य रहा
विधि का भी शायद साथ रहा।
लिखा भाग्य में जो कुछ था,
हम दोनों के ही साथ रहा।
सपने तो अब आते ही नही,
फिर भी उसे हम बुनते रहे।
जो पीर दिया था अपनों ने,
उसको ही सदा हम गुनते रहे।
अंतर्मन में समाहित रूप तुन्हारा
मन को उकसाया करता है।
लाख भुलाने पर भी वह पल,
प्रतिपल ही लुभाया करता है।
तुम जहाँ रहो आबाद रहो,
वैभव सुख-शांति साथ रहे।
पुनीत दृदय से कहता हूं,
जग की खुशियां पास रहे।
मन के भावों को आपने सुंदर अभिव्यक्ति दी है।
ReplyDeleteसपने तो अब आते ही नही,
ReplyDeleteफिर भी उसे हम बुनते रहे।
जो पीर दिया था अपनों ने,
उसको ही सदा हम गुनते रहे।
bahut hi badhiya ,har baat me dam hai
तुम जहाँ रहो आबाद रहो,
ReplyDeleteवैभव सुख-शांति साथ रहे।
पुनीत दृदय से कहता हूं,
जग की खुशियां पास रहे।
सुन्दर!
तुम जहाँ रहो आबाद रहो,
ReplyDeleteवैभव सुख-शांति साथ रहे।
पुनीत दृदय से कहता हूं,
जग की खुशियां पास रहे।...
प्रेम की पराकाष्ठा की बहुत सुन्दर प्रस्तुति..प्रेम स्वार्थी नहीं होता..बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना.
सशक्त प्रेमभाव संप्रेषण, समर्पणीय निष्कर्ष।
ReplyDeleteaadarniy sir
ReplyDeletebahut hi bhav pravan aur yaado ke diye ko man me samrpit aapki yac rachna bahut hi nichhil prem se bhari lagi
तुम जहाँ रहो आबाद रहो,
वैभव सुख-शांति साथ रहे।
पुनीत दृदय से कहता हूं,
जग की खुशियां पास रहे।
yahi to prem ka sahi swarup hai prem balidaan v samrpan dono ho chahta hai par jap prem ko samrpan na mil paaye to saathi ke liye dil se nikli sachchi duv hi balidaan kai yahi sachche prem ki paribhashh hai
bahut hi niswart purn prem chhalkta hai aapki is post me
sadar naman
poonam
भग्न ह्रदय के भग्नावशेष को अत्यंत कलात्मक रूप से सजाया है प्रेम बाबू!!
ReplyDeleteतुम जहाँ रहो आबाद रहो,
ReplyDeleteवैभव सुख-शांति साथ रहे।
पुनीत दृदय से कहता हूं,
जग की खुशियां पास रहे।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति... भावपूर्ण रचना.
तुम जहाँ रहो आबाद रहो,
ReplyDeleteवैभव सुख-शांति साथ रहे।
पुनीत दृदय से कहता हूं,
जग की खुशियां पास रहे।
sunder....
कुछ कहकर कुंठित होता था।
ReplyDeleteतुम सुनकर केवल मुस्काती थी।
हम कितने कोरे थे उस पल,
कुछ बात समझ नही आती थी।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
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