अमृता प्रीतम कोमल भावनाओं की प्रतीक
प्रस्तुतकर्ता: प्रेम सागर सिंह
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अमृता का जीवन जैसे जैसे बीता वह उनकी नज्मों कहानियों में ढलता रहा ..जीवन का एक सच उनकी इस कविता में उस औरत की दास्तान कह गया जो आज का भी एक बहुत बड़ा सच है ..एक एक पंक्ति जैसे अपने दर्द के हिस्से को ब्यान कर रही है।
मैं एक नहीं थी--- दो थी
एक समूची ब्याही
और एक समूची कुंवारी
तेरे भोग की खातिर ..
मुझे उस कुंवारी को कत्ल करना था
मैंने ,कत्ल किया था --
ये कत्ल
जो कानूनन ज़ायज होते हैं ,
सिर्फ उनकी जिल्लत
नाजायज होती है |
और मैंने उस जिल्लत का
जहर पिया था
फिर सुबह के वक़्त --
एक खून में भीगे हाथ देखे थे ,
हाथ धोये थे --
बिलकुल उसी तरह
ज्यूँ और गंदले अंग धोने थे ,
पर ज्यूँ ही मैं शीशे के सामने आई
वह सामने खड़ी थी
वही .जो मैंने कत्ल की थी
ओ खुदाया !
क्या सेज का अँधेरा बहुत गाढा था ?
मुझे किसे कत्ल करना था
और किसे कत्ल कर बैठी थी ..
अमृता, तुम तुम थी ...तुमने ज़िन्दगी को अपनी शर्तो पर जीया ,
.तुम आज भी हो हमारे साथ हर पल हर किस्से में ,हर नज्म में .।
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति, आभार आपका।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति, आभार आपका।
ReplyDeleteDhanyavad
ReplyDeleteBahut khoob
ReplyDeleteएक लॆबे अंतराल के बाद आज फिर इससे जुड़ने का मन हुआ। आपका सादर इंतजार रहेगा।
DeleteThanks friends.
ReplyDeleteअमृता जी की कहानियां तो पढ़ी हंै कविता पहली बार पढ रहा हूँ.............. आभार
ReplyDeletehttp://savanxxx.blogspot.in
निमंत्रण
ReplyDeleteविशेष : 'सोमवार' २६ फरवरी २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीय माड़भूषि रंगराज अयंगर जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।
अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
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