सिमट
जाता हूं अपने ही आवरण में
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प्रेम सागर सिंह |
सुनो बंधु, जब कभी,
बिन छूए हीं छू जाते हो तुम मुझे,
सिमट जाता हूूं उस समय,
मैं अपने हीं आवरण में।
ना जाने कितने हसीन ख़्वाब,
सतरंगी रूप में समा जाते हैं,
मेरी निगाहों में मेरे जेहन में जबकि,
मुझे भी पता है कि उन ख्वाबों की,
कोई तावीर नहीं है।
सुनो,अब जब ख्वाबों में आना,
कोई इंद्रधनुषी छवि,ना लाना,
क्यूंकि जब वो पलक खुलते हीं,
विलुप्त हो जाते हैं,तो मेरी अश्क भरी,
निगाहों से सब कुछ बेरंग और,
धुंधला नज़र आता है।
तुम्हारा दिया हुआ पल भर की खुशी,
मुझे उम्र भर का दर्द दे जाता हैं,
मुझे अपने बेरंग दुनियाँ में हीं ,
बहुत सुकून है...सुन रहे हो ना...
मुझे क्षणिक खुशी देने की कोशिश ,
नहीं करो, मैं खुश हूँ...इतना कि,
खुशी के आँसू आँखों से यूं हीं,
बरबस निकल ही आते हैं !
बिन छूए हीं छू जाते हो तुम मुझे,
सिमट जाता हूूं उस समय,
मैं अपने हीं आवरण में।
ना जाने कितने हसीन ख़्वाब,
सतरंगी रूप में समा जाते हैं,
मेरी निगाहों में मेरे जेहन में जबकि,
मुझे भी पता है कि उन ख्वाबों की,
कोई तावीर नहीं है।
सुनो,अब जब ख्वाबों में आना,
कोई इंद्रधनुषी छवि,ना लाना,
क्यूंकि जब वो पलक खुलते हीं,
विलुप्त हो जाते हैं,तो मेरी अश्क भरी,
निगाहों से सब कुछ बेरंग और,
धुंधला नज़र आता है।
तुम्हारा दिया हुआ पल भर की खुशी,
मुझे उम्र भर का दर्द दे जाता हैं,
मुझे अपने बेरंग दुनियाँ में हीं ,
बहुत सुकून है...सुन रहे हो ना...
मुझे क्षणिक खुशी देने की कोशिश ,
नहीं करो, मैं खुश हूँ...इतना कि,
खुशी के आँसू आँखों से यूं हीं,
बरबस निकल ही आते हैं !
वाह - मार्मिक
ReplyDeleteधन्यवाद.... श्री राकेश जी।
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक रचना की प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक रचना की प्रस्तुति।
ReplyDeleteआभार जमशेद जी।
Deletebahut sundar
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद आपकी प्रतिक्रिया को पढ़ कर अभिभूत हुआ। धन्यवाद सह सुप्रभात।
ReplyDeleteयह " अहम् ब्रह्मास्मि " का बोध है । सुन्दर - प्रस्तुति ।
ReplyDeleteशकुंतला जी, आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हुआ।
ReplyDeleteशुभ लाभ । Seetamni. blogspot. in
ReplyDeleteसुन्दर रचना ......
मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन की प्रतीक्षा है |
http://hindikavitamanch.blogspot.in/
http://kahaniyadilse.blogspot.in/
बेहद प्रभावशाली रचना......बहुत बहुत बधाई.....
ReplyDeleteअत्यंत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसच यथार्थ के कठोर धरातल पर कब सुहावने सपने डरावने बन जाय, कुछ कह नहीं सकते ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
Thanks friends.
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