प्रेम का स्वप्निल
गणित
प्रेम सागर सिंह
अपने गांव के,
इकलौते सरोवर के
किनारे
जब तुम मेरा नाम
लेकर,
फेंकती थी कंकण,
पानी की हिलोंरों के
संग,
तब,
डूब जाया करता था
मैं,
बहुत गहरे तक.....
सहेज कर रखे मेरे
खतों का,
मेरे अहसासों का,
हिसाब किताब करते
समय,
कहते थे,
तुम्हारी तरह
चंदन से महकते हैं,
तुम्हारे शब्द ...
आज जब,
यथार्थ की जमीन पर,
सोच की मुद्रा में
बैठता हूं तो,
शून्य में,
लापता हो जाते हैं
सारे अहसास,
सारी संवेदनाए,
क्योंकि ...
प्रेम के गणित में,
बहुत कमजोर थे हम
दोनों।
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ReplyDeleteधन्यवाद सर जी।
Deleteमेरे अहसासों का,
ReplyDeleteहिसाब किताब करते समय,
कहते थे,
तुम्हारी तरह
चंदन से महकते हैं,
तुम्हारे शब्द ...
आपने बहुत सुन्दर और रहिस्यमय लिख हैँ। आज मैँ भी अपने मन की आवाज शब्दो मेँ बाँधने का प्रयास किया प्लिज यहाँ आकर अपनी राय देकर मेरा होसला बढाये
मैने कुछ ब्लॉगो को इकेठा करना प्रयास किया हैँ यहा पर आपका ब्लॉग भी हैँ । अगर आपका कोई दुसरा ब्लॉग भी है तो यहाँhttp://safaraapka.blogspot.in/ आकर अपने ब्लॉग का लिँक टिप्पणी बॉक्स मेँ छोङ दे ।
धन्यवाद
क्योंकि ...
ReplyDeleteप्रेम के गणित में,
बहुत कमजोर थे हम दोनों।
एक दम यथार्थ में लाके खड़ा कर दिए हो आप तो..... कमाल
मेरे ब्लॉग पर आप आमंत्रित
कहीं न कहीं बीच में समय के थपेड़े आ गए...
ReplyDeleteबहुत कोमल प्यार भरी अहसास।..
‘‘प्रेम‘‘ के प्ररंभिक अवस्था में प्रत्येक युवा की सोच लगभग यही रहती है ....बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeletehttp://pratibimbprakash.blogspot.com/2014/01/Love-each-youth-in-the-planning-stage-Prrnbhik.html
बहुत सुन्दर अहसास .........आभार पढवाने के लिए!
ReplyDeleteसुन्दर और भावपूर्ण....बधाई...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (13-10-2014) को "स्वप्निल गणित" (चर्चा मंच:1765) (चर्चा मंच:1758) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर भावपूर्ण रचना !
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर आएं और फॉलो कर अपने सुझाव दे
सुन्दर एवं भाव-प्रवण कविता के लिए बधाई !
ReplyDeleteप्रेम के गणित में,
ReplyDeleteबहुत कमजोर थे हम दोनों।....बहुत सुन्दर !
प्रेम की अंतिम परिणति तो मिट जाना ही है....
ReplyDeleteदिल को छूते बहुत गहन अहसास...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteLajwaab prastuti
ReplyDeletePrem ke gadit me kamzor the hum dono ..kya lajawaab prastuti...behad bhawpurn...diwali ki anekanek mangalkamnaayein...diwali shubh ho !!
ReplyDeleteTHANKS FOR YOUR COMMENT. WISH U HAPPY DIWALI.
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ...
ReplyDeleteगहरे अहसासों से भरी प्रस्तुति...
ReplyDeleteसुन्दर रचना के लिए आपको पुन: बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@आंधियाँ भी चले और दिया भी जले
नयी पोस्ट@श्री रामदरश मिश्र जी की एक कविता/कंचनलता चतुर्वेदी
सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteआभार।
क्या बात है , शुभ रात्रि।
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