मेरी कविताएं तो होंगी
मेरे उस दिन न होने पर भी
मेरी कविताएं तो होंगी!
गीत होंगे !
सूरज की ओर मुंह किए खड़ा
कनैल का झाड़ तो होगा!
प्यार के दिनों में भींगी
पुरानी चिट्ठियां
पसंद के कपडे़ की तरह
सहेजी हुई होंगी तो !
मैं उस दिन न होउं तो भी
होंगी तो मेरी कविताएं!
पढ़ाई की मेज पर
मेरी प्रिय कविताएं
करीने से सजाई हुई होंगी
पहले की तरह
दोनों आंखों को स्पर्श करा देना
मेरी कविता को मेरी कापी को ।
तब धीरे ,बहुत धीरे
तुम्हारे हृदय से
बह चलेगी सुरभित हवा
मैं उस दिन होंउँ तो भी
होंगी मेरी कविताएं
मेरे गीत।
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कमाल के भाव लिए है रचना की पंक्तियाँ .......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
सदा रहेंगी, वे कवितायें।
ReplyDeleteआह ...रहे न रहें हम महका करेंगे ....शब्द हमारे..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव.
बहुत सुन्दर प्रेम भाई।
ReplyDeleteप्रेम बाबू!
ReplyDeleteमेरी आवाज़ ही पहचान है,जो इन कविताओं और गीतों में हमेशा रहती हैं. मुझे तो आज भी विश्वास नहीं होता कि निराला, पन्त, दिनकर जैसे लोंग नहीं रहे.. या जानकी वल्लभ जी जिनकी चर्चा अभी कुछ दिनों पहले तक ही तो हम कर रहे थे!!
शरद सिंह जी. प्रवीण पाण्डेय,शिखा वार्ष्णेय,हरीश प्रकाश गुप्त एवं सलील वर्मा जी को मेरा हार्दिक नमन ।
ReplyDeleteहरीश भाई,
ReplyDeleteमेरे पोस्ट पर आपका आगमन मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है। आप सरीखे लोगों का सामीपय-बोध साहित्य-पिपासु जनों के मन को अमल धवल भावों से सिंचित कर देता है।आशा है- आप मुझ पर भी अपनी कृपा दृष्ठि बनाए रखेंगे। धन्यवाद।
संशोधन- हरीश जी,सामीपय को सामीप्य पढ़ें।
ReplyDeleteहरीश भाई,कुछ लोग दोष निकालते हैं,इसलिए दूसरा संशोधन करना पड़ रहा है।दृष्ठि को दृष्टि पढें। अरे भाई साहव, उमर हो गया है,फर्क तो पड़ेगा।इस सत्य से तो विमुख नही हो सकता।
ReplyDeleteपढ़ाई की मेज पर
ReplyDeleteमेरी प्रिय कविताएं
करीने से सजाई हुई होंगी
पहले की तरह
दोनों आंखों को स्पर्श करा देना
मेरी कविता को मेरी कापी को ।
तब धीरे ,बहुत धीरे
तुम्हारे हृदय से
बह चलेगी सुरभित हवा
बहुत सुन्दर प्रेम जी ,क्या बात है.वाह.
बहुत सुन्दर भाव|धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत अच्छे भाव .. सुंदर रचना !!
ReplyDeleteसंगीता पुरी जी,
ReplyDeleteआपको मेर पोस्ट पर आने के लिए तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूं।धन्यवाद।
प्रेम सागर जी!
ReplyDeleteकविता में भाषा, भाव और सहृदयता का ही योग होता है। आपकी इस रचना में तीनों का शुमार है। ऐसे ही महका करेंगे आपके शब्द आपकी कविताओं के माध्यम से।
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteवर्षा जी,
ReplyDeleteआपको हार्दिक नमन ।
kahte hain na insan rahe na rahe uske karm sada yaad kiye jate hain aur uska dharam uske sath jata hai to ye lekhak ka karm to sada rahega hi. sunder kavita.
ReplyDeleteअनानिका जी ,आपको बहुत- बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteतब धीरे ,बहुत धीरे
ReplyDeleteतुम्हारे हृदय से
बह चलेगी सुरभित हवा
बहुत सुन्दर क्या बात...........
पहली बार पढ़ रहा हूँ आपको और भविष्य में भी पढना चाहूँगा
ReplyDeleteएक दिन बिक जायेगा तू माटी के मोल
ReplyDeleteजग में रह जायेंगे प्यारे तेरे बोल .....
आपकी कविता में बहुत सच्चाई है, सुन्दर कविता के लिए बधाई
Come to my Blog, Welcome
मिलिए हमारी गली के गधे से
sach bahut sundar rachna ,kavita sada rahegi .
ReplyDeleteमैं उस दिन होंउँ तो भी
ReplyDeleteहोंगी मेरी कविताएं
मेरे गीत।
क्या यहाँ उस दिन न होऊँ ज्यादा ठीक नहीं है -
मनुष्य अपनी रचना धर्मिता में जीता है -उसकी यशः काया उसकी कृतियों में ही तो कालजयी बन उठती है
सर अन्तिम से उपर की ओर तीसरी लाइन मै उस दिन हाउ तो भी की जगह मै उस दिन न होउ तो भी कैसा रहेगा । मै गलती नहीं निकाल रहा हूं मात्र निवेदन कर रहा हूं
ReplyDeleteअरविंद मिश्रा जी.एवं श्री वृजमोहन श्रीवास्तव जी,
ReplyDeleteआप दोमों ने सही कहा है- "न" शब्द टंकण के समय छूट गया था।आप दोनों का मेरे पोस्ट पर आना मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है।भावनाओं को समझिए,भाई।धन्यवाद।
"मैं उस दिन न होउं तो भी
ReplyDeleteहोंगी तो मेरी कविताएं!
पढ़ाई की मेज पर
मेरी प्रिय कविताएं
करीने से सजाई हुई होंगी
पहले की तरह
दोनों आंखों को स्पर्श करा देना
मेरी कविता को मेरी कापी को ।"...
..मन को छूती हुई रचना .. बहुत सुन्दर
बहुत भावप्रवण रचना है-कोमलतम भावों को लिए,सहजता से अभिव्यक्त करते।
ReplyDeleteबहुत खूब. शुभकामनायें !
ReplyDeleteशिक्षा नित्र एव सतीश सक्सेना जी ,
ReplyDeleteआप सबको मेरा हार्दिक नमन।
prem ji,
ReplyDeletesahi kaha hum hon na hon ye duniya yathaawat rahegi, aur hamari nishaaniya bhi hongi, bahut bhaavpurn rachna, badhai sweekaaren.
mere blog saajha sansaar par aaye bahut aabhar aapka. meri kavitaaon ke blog par kabhi aayen achha lagega.
http://lamhon-ka-safar.blogspot.com/
khubsurat se aapke geet:)
ReplyDeleteदोनों आंखों को स्पर्श करा देना
ReplyDeleteमेरी कविता को मेरी कापी को.
वाह.. बहुत सुंदर, भावपूर्ण रचना
बहुत सुंदर और भावनात्मक कविता है. पढ़कर ख़ुशी हुई. आपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा. ऐसे ही लिखते रहिए.
ReplyDeleteभावपूर्ण ,बहुत सुन्दर कविता..अच्छा लगा
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