"प्रेम सरोवर के अतल से निकली अनुगुंज ..."
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हम जीत कर भी हार गये
जब कुछ अनचाहा सा,
अप्रत्याशित सा घट जाता है,
जिसकी कल्पना भी न की हो,
साथ चलते चलते लोग,
टकरा जाते हैं।
जो दिखता है,
दिखाया जाता है,
वो हमेशा सच नहीं होता।
सच पर्दे मे छुपाया जाता है।
थोड़ा सा वो ग़लत थे,
थोड़ा सा हम ग़लत होंगे,
ये भाव कहीं खो जाता है।
कुछ लोग दरार को खोदकर,
खाई बना देते हैं,
जिसे भरना,
हर बीतते दिन के साथ,
कठिन होता जाता है।
माला का धागा टूट जाता है,
मोती बिखर जाते हैं।
आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला,
चलता है, समाप्त हो जाता है,
पूरा सच अधूरा ही रह जाता है।
अटकलों का बाज़ार लगता है,
मीडिया ख़रीदार बन जाता है।
आम आदमी जहाँ था,
वही खड़ा रह जाता है।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार को '
ReplyDeleteदिन को रोज़ा रहत है ,रात हनत है गाय ; चर्चा मंच 1920
पर भी है ।
उत्तम रचना ..
ReplyDeleteधन्यवाद हर्षिता जी।
ReplyDeleteबहुत ही शानदार कविता।
ReplyDeleteअटकलों का बाज़ार लगता है,
ReplyDeleteमीडिया ख़रीदार बन जाता है।
आम आदमी जहाँ था,
वही खड़ा रह जाता है।
कविता कल्पना का कार्य़ हैं आपकी कविता सच्ची लगी............. सच हमेशा सुन्दर होता है कल्पना की प्रमिका की तरह.
http://savanxxx.blogspot.in
बेहतरीन !
ReplyDeleteमंगलकामनाएं आपको !
Nice Article sir, Keep Going on... I am really impressed by read this. Thanks for sharing with us. Latest Government Jobs.
ReplyDeleteबहुत ही शानदार रचना ..
ReplyDeleteभ्रमर ५
बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteनई पोस्ट : मनुहार वाले दिन
बेहद शानदार और उत्तम रचना प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद आपका।
ReplyDeleteबेहद शानदार और उत्तम रचना प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद आपका।
ReplyDeleteधन्यवाद कहकाशान जी।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति
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