Wednesday, June 27, 2012

जीवन की आपाधापी में कब वक्त निला




जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला

                                
                                                     
                 (हरिवंश राय बच्चन)


जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।
जिस दिन मेरी चेतना जगी मैंने देखा
मैं खड़ा हुआ हूँ इस दुनिया के मेले में,
हर एक यहाँ पर एक भुलाने में भूला
हर एक लगा है अपनी अपनी दे-ले में
कुछ देर रहा हक्का-बक्का, भौचक्का-सा,
आ गया कहाँ, क्या करूँ यहाँ, जाऊँ किस जा?
फिर एक तरफ से आया ही तो धक्का-सा
मैंने भी बहना शुरू किया उस रेले में,
क्या बाहर की ठेला-पेली ही कुछ कम थी,
जो भीतर भी भावों का ऊहापोह मचा,
जो किया, उसी को करने की मजबूरी थी,
जो कहा, वही मन के अंदर से उबल चला,
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।
मेला जितना भड़कीला रंग-रंगीला था,
मानस के अन्दर उतनी ही कमज़ोरी थी,
जितना ज़्यादा संचित करने की ख़्वाहिश थी,
उतनी ही छोटी अपने कर की झोरी थी,
जितनी ही बिरमे रहने की थी अभिलाषा,
उतना ही रेले तेज ढकेले जाते थे,
क्रय-विक्रय तो ठण्ढे दिल से हो सकता है,
यह तो भागा-भागी की छीना-छोरी थी;
अब मुझसे पूछा जाता है क्या बतलाऊँ
क्या मान अकिंचन बिखराता पथ पर आया,
वह कौन रतन अनमोल मिला ऐसा मुझको,
जिस पर अपना मन प्राण निछावर कर आया,
यह थी तकदीरी बात मुझे गुण दोष न दो
जिसको समझा था सोना, वह मिट्टी निकली,
जिसको समझा था आँसू, वह मोती निकला।
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।
मैं कितना ही भूलूँ, भटकूँ या भरमाऊँ,
है एक कहीं मंज़िल जो मुझे बुलाती है,
कितने ही मेरे पाँव पड़े ऊँचे-नीचे,
प्रतिपल वह मेरे पास चली ही आती है,
मुझ पर विधि का आभार बहुत-सी बातों का।
पर मैं कृतज्ञ उसका इस पर सबसे ज़्यादा -
नभ ओले बरसाए, धरती शोले उगले,
अनवरत समय की चक्की चलती जाती है,
मैं जहाँ खड़ा था कल उस थल पर आज नहीं,
कल इसी जगह पर पाना मुझको मुश्किल है,
ले मापदंड जिसको परिवर्तित कर देतीं
केवल छूकर ही देश-काल की सीमाएँ
जग दे मुझपर फैसला उसे जैसा भाए
लेकिन मैं तो बेरोक सफ़र में जीवन के
इस एक और पहलू से होकर निकल चला।
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।


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14 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति... आभार

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  2. हरिवंशराय बच्चन जी को पढ़ाने का धन्यवाद्

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  3. abhaar is sundar kriti ko padhwane kaa ...

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  4. बच्चनजी को पढ़वाने का आभार..

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  5. बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,
    बच्चन जी की सुंदर रचना पढवाने के लिए आभार ,,,,,

    प्रेम जी बहुत दिनों से पोस्ट पर नही आये,,,आइये स्वागत है,,,,,

    MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,

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  6. बच्चन जी की उत्कृष्ट रचना पढवाने के लिये आभार...

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  7. एक उत्कृष्ट रचना साझा करने के लिए बहुत बहुत आभार !

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  8. बच्चन जी की इतनी सुन्दर एवं प्रेरणादायी रचना आपने हम सबके साथ साझा की ! आभार आपका !

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    1. bahut sundar post, badhai.
      प्रिय महोदय

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      हमारा पता -

      जर्नलिस्ट्स , मीडिया एंड राइटर्स वेलफेयर एसोसिएशन

      19/ 256 इंदिरा नगर , लखनऊ -226016



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      मोबाइल 09455038215

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  9. शानदार प्रस्तुति के लिए आभार आपका !

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  10. बहुत सुन्दर प्रेम जी.
    बच्चन जी की रचना को शेयर करने के लिए आभार जी.

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  11. बच्चन जी की रचना
    को साझा करने के लिए आपका आभार...
    :-)

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  12. शानदार प्रस्तुति के लिए आभार आपका !

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