(प्रेम सागर सिंह)
“नकेनवाद” के जनक : नलिन विलोचन शर्मा
(1916- 1960 ई.)
प्रयोगवाद के समानांतर बिहार के तान कवियों नलिन विलोचन शर्मा, केशरी कुमार,नरेश कुमार ये नकेनवाद या प्रपद्यवाद को सच्चा प्रयोगवाद सिद्ध करते हुए अज्ञेय आदि कवियों को प्रयोगशील सिद्ध किया । नरेश के प्रपद्य में दस सूत्र घोषित किए गए हैं जिनके अनुसार प्रयोग साध्य है। ये प्रयोग भाव व व्यंजना का स्थापत्य है. परंपरा निष्प्राण है । चीजों का एक मात्र सही नाम होता है आदि तत्वों को प्रयोगवाद की व्याख्या के रूप में निरूपित किया गया है। प्रयोगवादी रागात्मक प्रतीतियों को सर्वोपरि महत्व देते थे और कविता के संबंध में संप्रेषण की किसी भी समस्या को निर्थक मानते थे । मुक्त साहचर्य, बिंबवाद का प्रभाव आदि गुणों के कारण प्रपद्यवाद कुछ मनोहारी काव्य बिंब मात्र दिए पर मात्र तीन कवियों का यह अभियान एक लंबा सफर तय न कर सका । नकेनवादी भी प्रयोगवादियों की तरह कलावादी प्रवृति वाले थे । जिस कला विज्ञान के पीछे स्पष्ट जीवन दृष्टि न हो वह बाद की आयु भी मुश्किल से प्राप्त कर सकता है, फिर भी इतिहास की यह नियत है कि उसे घटनाओं को तो दर्ज करना ही पड़ता है । आधुनिक हिन्दी कविता में 'नकेनवाद’ के जनक नलिन विलोचन शर्मा का जन्म पटना में हुआ । इन्होंने हिन्दी एवं संस्कृत में एम.ए. करके पहले आरा, पटना, रांची में अध्यापन कार्य किया, पश्चात पटना विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष हुए तथा अंत तक वहीं रहे । 'दृष्टिकोण (आलोचना), 'मानदण्ड (निबंध संग्रह), 'विष के दांत (कहानी संग्रह) तथा 'साहित्य का इतिहास दर्शन इनकी उल्लेखनीय रचनाएं हैं । इन्होंने 'साहित्य, 'दृष्टिकोण और 'कविता पत्रिकाओं तथा कई महत्वपूर्ण पुस्तकों का सम्पादन किया । इनका कविता संग्रह 'नकेन’ के प्रपद्य है, जिसमें भावों को व्यक्त करने का एक नया ही तरीका अपनाया गया । इस पोस्ट का थोड़ा सा अंश पहले प्रस्तुत किया था किंतु कुछ प्रबुद्ध ब्लॉगर बंधुओं ने अपील किया था कि इस संबंध में विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराई जाए। इसके आलोक में कुछ और जानकारियों को समेट कर यह पोस्ट पुनः प्रस्तुत कर रहा हूँ ताकि यह पोस्ट एवं मेरा प्रयास उन लोगों के हृदय में थोड़ी सी जगह पा सके। प्रस्तुत है उनकी एक कविता -‘एक नापसंद जगह”………….
एक नापसंद जगह
एक दिन यहां मैंने एक कविता लिखी थी,
यहां जहां रहना मुझे नापसंद था।
और रहने भेज दिया था।
जगह वह भी, जहां रहना अच्छा लगता है
और रहता गया हूँ,
वहां शायद ही हो कि कविता कभी लिखी हो।
आज फिर इस नापसंद जगह
डाल से टूटे पत्ते की तरह
मारा-मारा आया हूँ,
और यह कविता लिख गई है,
इस जगह का मैं कृतज्ञ हूँ,
इस मिट्टी को सर लगाता हूँ,
इसे प्यार नहीं करता, पर
बहुत-बहुत देता हूँ आदर,
यह तीर्थ-स्थल है, जहां
मैं मुसाफिर ही रहा,
यह वतन नहीं,
जहां जड और चोटी
गडी हुई,
जो कविता की प्रेरणाओं से अधिक महत्व की बात है।
यहां मैं दो बार मर चुका हूँ-
एक दिन तब जब पहली कविता
यहां लिखी थी,
और दूसरे आज जब इस कविता
की याद में कविता
लिख रहा हूँ-
घर के शहर में जीता रहा हूँ
और मरने के बाद भी
जीता रंगा : एक लाकेट में कैद,
किसी दीवार पर टंगा चित्रार्पित,
एक स्मृति-पट पर रक्षित अदृश्य
अमिट।
लेकिन यहां से कुछ ले जाऊंगा,
कुछ तो पा ही
चुका हूँ : दो-दो कविताएं,
दिया कुछ नहीं है, देना कुछ नहीं,
सिवा इसके-
मेरे प्रणाम तुम्हें,
इन्हें ले लो, इन्हें।
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बहुत बढ़िया, महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त हुई! धन्यवाद!
ReplyDeleteनकेनवाद पर सार्थक आलेख..आपका आभार .
ReplyDeletesarthak jaankari mili..padhne me to accha laga..mahtwpurn jaankaari pradan karne ke liye hardik dhanyawad
ReplyDeleteThanx, for comment on my blog..
ReplyDeleteaaj ki aapki post sarthak aur gyanvardhak hae.
नाकें वाद पे लिखी उम्दा प्रस्तुति है ...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबेहद सुन्दर ..नकैनवाद पर बहुत ही सार्थक आलेख ....ज्ञानवर्धक जानकारी उपलब्ध कराने हेतु हार्दिक आभार ...
ReplyDeleteलिख रहा हूँ-
ReplyDeleteघर के शहर में जीता रहा हूँ
और मरने के बाद भी
जीता रंगा : एक लाकेट में कैद,
किसी दीवार पर टंगा चित्रार्पित,
एक स्मृति-पट पर रक्षित अदृश्य
bahut sundar ... abhar.
नलिन विलोचन शर्मा जी की रचना के साथ उनके बारे में विस्तृत
ReplyDeleteजानकारी देने के लिए आभार|
महत्वपूर्ण जानकारियाँ साझा करने के लिए आभार
ReplyDeleteनाके वाद पर लिखी बहुत ही उम्दा प्रस्तुति आभार समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeletehttp://mhare-anubhav.blogspot.com/
भाई प्रेम जी बहुत सुन्दर पोस्ट और कविता |
ReplyDeletevery nice post.mere blog pe aane ka shukriya...
ReplyDeleteश्री जयकृष्ण राय तुषार एवं शशि पाण्डेय जी आप दोनों का आभार ।
ReplyDeletefantastically written
ReplyDeleten very informative too :)
thanks 4 visiting me !!
bahut achcha laga aapke blog par aakar kuch achche lekhakon ke vishya me jankari mili.aur kavita to bahut achchi lagi.aabhar.
ReplyDeleteनाकेवाद पर सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteआभार प्रेम जी !
बेहतरीन पोस्ट !
ReplyDeleteआभार ...!
ati uttam prastuti..
ReplyDeleteनाकेवाद पर सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteआभार प्रेम सरोवर जी......
नलिन , केसरी और नरेश जी का ये नकेन हिंदी साहित्य में एक मिल का पत्थर साबित हुआ. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeletehttps://www.facebook.com/photo.php?fbid=562125730464834&set=a.267217509955659.73800.100000022358712&type=1
ReplyDeleteहिंदी साहित्य में नकेनवाद की त्रयी (नलिनविलोचन शर्मा, केसरी कुमार माथुर और नरेश मेहता) के महत्त्वपूर्ण कवि आचार्य नलिनविलोचन शर्मा का जन्म 16 फ़रवरी सन 1916 को पटना में हुआ था। वे पटना विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के प्रोफ़ेसर थे। उन्होंने हिंदी साहित्य को छायावाद की ऐन्द्रियजालिक कविताओं तथा साम्यवाद की पोस्टरनुमा कविताओं से अलग प्रयोगवाद की पूर्वपीठिका के रूप में प्रपद्यवाद या नकेनवाद की अवधारणा दी, जिससे प्रभावित होकर अज्ञेय ने कालान्तर में प्रयोगवाद का तारसप्तकीय आन्दोलन खडा किया। उन्होंने शब्द की महत्ता को सर्वोपरि माना और कविता में संगीत,लय का भी किया। उनका मत था कि गद्य और पद्य विरोधी न होकर एक दूसरे के पूरक होते हैं . इसीलिये कथालेखन में भी उन्होंने सिद्धहस्तता का परिचय दिया। उनकी कहानियाँ मनोविश्लेशणात्मक हैं। वे एक उच्च कोटि के समीक्षक भी थे। सूत्रात्मक शैली की समीक्षा की हिंदी में शुरुआत आपने ही की थी। आचार्य नलिनविलोचन शर्मा द्वारा रेणु के अमर उपन्यास मैला आँचल की समीक्षा के बाद ही यह उपन्यास हिन्दी साहित्य जगत में अपना स्थान अर्जित कर सका था। काव्यशास्त्रीय विवेचन के क्षेत्र में भी उन्होंने अपनी सर्वतोभावेन प्रतिभा का परिचय देते हुए कुछ मौलिक उद्भावनाएँ दीं। हिंदी में चेंबर ड्रामा या वेश्म नाट्य को प्रारंभ करने का श्रेय भी उन्हें है। वे एक कुशल सपादक भी थे। दृष्टिकोण, साहित्य, कविता आदि पत्रिकाओं का उन्होंने संपादन किया। सन 1954 में उन्होंने प्रख्यात दलित राजनेता बाबू जगजीवन राम की अंग्रेजी में इसी नाम से जीवनी लिखकर साहित्य जगत को उनकी समाजसेवा से अवगत कराया। 13 सितम्बर, सन 1961 को प्राध्यापकीय साहित्य सृजन का यह नक्षत्र चिर निद्रा में सो गया। उनकी साहित्यिक साधना का विवरण निम्नांकित है-
1- दृष्टिकोण, आलोचना 1947
2- विष के दाँत, कहानी संग्रह
3- नकेन के प्रपद्य, कविताएँ 1956
4- साहित्य का इतिहास दर्शन, साहित्येतिहास 1960
5- मानदण्ड, निबन्ध संग्रह 1963
6- हिंदी उपन्यास विशेषतः प्रेमचंद, आलोचना 1968
7- Jagjivan Ram (Biography) 1954
8- साहित्य : तत्व और आलोचना मरणोपरांत सन 1995 में उनकी धर्मपत्नी कुमुद शर्मा एवं डॉ श्रीरंजन सूरिदेव द्वारा सम्पादित एवं प्रकाशित
जो लोग प्राध्यापकीय लेखन को निकृष्ट कहकर ख़ारिज करते हैं उन्हें आचार्य नलिनविलोचन शर्मा जैसे महान साहित्यकार के कृतित्व पर अवश्य नज़र दौड़ानी चाहिए। ऐसे अमर साहित्य शिल्पी को मेरी कृतज्ञ भावांजलि।
आज मैं भी प्रेम सरोवर से जुड़ गया हूँ |यहाँ डॉ.पुनीत बिसारिया जी को भी देखा अच्छा लगा |नकेन वाद पर जानकारी अच्छी लगी |
ReplyDeleteरमेश कुमार गोहे ,बिलासपुर छ.ग.
नकेनवाद पर बहुत श्रेष्ठ एवं सारगर्भित जानकारी । इसके लिए लेखक का हार्दिक आभार ।
ReplyDeleteबहुत ढूंढने के बाद नकेनवाद पर सारगर्भित जानकारी मिली बहुत-बहुत आभार आपका ।
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ReplyDeleteसर नरेश कुमार के विषय में जानकारी दें!
ReplyDeleteश्री नरब्देश्वर प्रसाद सिन्हा 'श्री नरेश ' नकेन के नरेश हैं।
Deleteवे मेरे पिता जी थे जो जन सम्पर्क विभाग बिहार सरकर में Additional Director के पद से रिटायर हुए।
जब पिता जी बी ए कर रहे थे उसी समय उनकी रचना " गोश्त और दाने " उस कक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया गया था। नलिन जी और केसरी जी उनके अच्छे मित्र थे और उन लोगों का हमारे कदमकुआं, पटना वाले घर पर आना जाना लगा रहता था। पिता जी के साहित्यिक योगदान के बारे ज्यादा कुछ मालूम नहीं है क्यूंकि उस समय हमलोग बहुत छोटे थे। इतना मालूम है कि हैदराबाद से प्रकाशित " कल्पना" , धर्मयुग आदि पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं प्रकाशित होते रहती थीं। "गोधूली" नामक पुस्तक भी उन्होंने लिखा था।