संसार में पाप की एक परिभाषा न हो सकी:भगवती चरण वर्मा
भगवती चरण वर्मा
(जन्म: 30 अगस्त 1903 निधन: 05अक्टूबर 1988 )
"उलझ सी जाती है जिंदगी की किश्ती दुनिया के
मँझधार में,
इस भँवर से पार उतरने के लिए किसी के नाम की
पतवार चाहिए ।
अकेले कोई भी सफर काटना मुश्किल हो जाता है,
मुझे भी इस लंबे रास्ते पर एक अदद हमसफर चाहिए।"
संसार में पाप कुछ भी नही है, वह मनुष्य की
दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है । प्रत्येक व्यक्ति एक विशेष प्रकार की मन: प्रवृति लेकर
पैदा होता है – प्रत्येक व्यक्ति इस संसार के रंगमंच पर एक
अभिनय करने आता है । अपने मन: प्रवृति से प्रेरित
होकर अपने पाठ को वह दुहराता है –यही उसका जीवन है । जो
कुछ मनुष्य करता है वह उसके स्वभाव के अनुकूल होता है और स्वभाव प्राकृतिक है।
मनुष्य अपना स्वामी नही है वह परिस्थतियों का दास है – विवश है । वह
कर्ता नही है, वह केवल साधन है । फिर पुण्य और पाप कैसा ! मनुष्य में
ममत्व प्रधान है । प्रत्येक मनुष्य सुख चाहता है । केवल व्यक्तियों के सुख के
केंद्र भिन्न होते हैं । कुछ सुख को धन में देखते हैं, कुछ सुख को मदिरा में देखते
हैं, कुछ सुख को व्यभिचार में देखते हैं, कुछ त्याग में देखते हैं – पर सुख
प्रत्येक व्यक्ति चाहता है; कोई भी व्यक्ति, संसार
में अपनी इच्छानुसार वह काम नही करेगा, जिसमें दुख
मिले - यही मनुष्य की मन: प्रवृति है और उसके दृष्टिकोण की विषमता है । “संसार में
इसीलिए पाप की परिभाषा नही हो सकी –और न हो सकती है । हम न पाप करते
हैं और न पुण्य करते हैं, हम केवल वह करते हैं, जो हमें करना
पड़ता है ।“ भगवती चरण वर्मा के उपन्यास “चित्रलेखा” से उद्धृत ----------- ( प्रस्तुतकर्ता : प्रेम सागर सिंह)
अपने पिछले पोस्ट में
मेंने लेखक परिचय के रूप में अपनी सृजन-धर्मिता से साहित्य का आसमान नापने वाले
तथा लोकगीतों एवं लोकजीवन के मर्मज्ञ लेखक “भीष्म साहनी” को आप सबके समक्ष
प्रस्तुत किया था जिन्होंने अपनी भावनाओं,गहन अभिव्यक्तियों, भाषा-शैली,काव्य-सौष्ठव
एवं अर्थच्छायाओ के माध्यम से मानव मन की रूपहली एवं झिलमिल पहलुओं को अपनी
कृतियों में सर्वरूपेण एवं सर्वभावेन अभिनव तरीके से समाविष्ट कर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया था ।कुछ अति
संवेदनशील लोगों की मान्यता है कि “प्यार अमर है दुनिया
में, प्यार कभी नही मरता है”, ठीक उसी तरह
साहित्यकार मर कर भी अमर ही रहता है
क्योंकि उसकी कृतियां हमें उनकी उपस्थिति को एक नाम दे देती है जिसके वशीभूत होकर
हम उस साहित्यकार के साथ, उसके तदयुगीन भावों एवं कृतियों को आत्मसात कर लेते हैं
। कुछ ऐसे ही सप्तरंगी भावनाओं के साथ आज मेरा मन न जाने क्यूं उमड़-घुमड़ कर “चित्रलेखा” के उपन्यासकार “भगवती चरण
वर्मा” पर बरस जाना चाहता है जिन्होंने उस उपन्यास के पात्र “बीजगुप्त” और “कुमार गिरि” को उपन्यास का
ध्रुवांत मानते हुए चित्रलेखा को “संतुलन की विषुवत रेखा” के रूप में
अलौकिक स्थान दिया है। आईए, आज आपको
इस महान साहित्यकार के साथ कुछ भूली बिसरी यादों को समेट कर कुछ जानने की कोशिश करने
के लिए ले चलते हैं उनकी रचनाओं एवं संवेदनशील अभिव्यक्तियों की ओर जो हमें
साहित्य-जगत से बिखरने नही देती हैं । भगवती चरण वर्मा जी हिन्दी भाषा के
साहित्यकार थे । इनका विषय वर्तमान राष्ट्रीय उत्थान तथा भाषा सजीव और हृदय को
छूनेवाली होती है । उन्होंने कलात्मक शैली में अपनी कृतियों को लिखा है । इनका जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के अंतर्गत “शफीपुर” गाँव में हुआ था
। वर्माजी ने इलाहाबाद से
बी.ए., एलएल. बी. की
डिग्री प्राप्त की और प्रारम्भ में कविता लेखन का कार्य शुरू किया।समय के प्रवाह के साथ इनकी कविता का रूप ,रंग
एवं आयाम भी विस्तृत होता चला गया । कविता में प्रयुक्त इनके हर शब्द अपना क्षितिज
क्रमश: विस्तृत करते चले गए
। इसके बाद इनकी लेखनी किसी अन्य विधा की तलाश करते-करते उपन्यास विधा पर आकर
केंद्रित हो गई। इसके बाद 1936 के लगभग फिल्म कारपोरेशन, कलकत्ता में कार्य किया । कुछ दिनों ‘विचार’ नामक साप्ताहिक का प्रकाशन-संपादन, का कार्य भी किया पर
यहां की आबोहवा रास न आने के कारण बंबई में फिल्म- कथालेखन तथा दैनिक ‘नवजीवन’ का सम्पादन, फिर आकाशवाणी के कई
केंन्दों में कार्य करना शुरू कर दिया । बाद में, 1957 से मृत्यु-पर्यंत स्वतंत्न साहित्यकार के
रूप में लेखन कार्य में अपने को सपर्पित रखा । इनके द्वारा विरचित ‘चित्रलेखा’ उपन्यास पर दो बार फिल्म-निर्माण हुआ जिसके कारण ‘भूले-बिसरे चित्र’ साहित्य अकादमी से सम्मानित भी किए । भगवती चरण
वर्मा को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा, सन 1971 में “पद्म भूषण” से सम्मानित
किया गया था। 1936 में फ़िल्म कारपोरेशन कलकत्ता में कार्य। विचार नामक साप्ताहिक
पत्रिका का प्रकाशन संपादन। इसके बाद बम्बई में फ़िल्म कथा लेखन तथा “दैनिक नवजीवन” का संपादन।
आकाशवाणी के कई केन्द्रों में भी कार्यरत रहे । 1957 से स्वतंत्र लेखन कार्य शुरू
किया । इन्हे “पद्मभूषण” तथा “राज्यसभा” की मानद सदस्यता से भी पुरस्कृत किया गया ।
रोचक बातें : -- ट्रैजडी किंग “दिलीप कुमार” का नामकरण अपने
जमाने की मशहूर अभिनेत्री देविका रानी ने नही, हिंदी के यशस्वी लेखक भगवतीचरण वर्मा ने किया था और
इस बात को दिलीप
कुमार ने अपनी कई भेंट वार्ताओं में स्वीकार भी
किया है। भगवती चरण वर्मा के वयोवृद्घ
पुत्र धीरेन्द्र वर्मा जो अपने पिता के
साथ उन दिनों मुंबई में थे । जब 1943 -44
में “ज्वार भाटा” फिल्म बन रही थी, जो दिलीप कुमार की पहली
फिल्म थी। धीरेन्द्र वर्मा ने बताया कि सायरा बानो का यह कहना गलत है कि देविका
रानी ने जब “ज्वार भाटा” फिल्म के लिए
यूसुफ खान को अनुबंधित किया, तो उन्होंने शुरू में तीन नाम वासुदेव, जहांगीर तथा दिलीप कुमार
सुझाए थे और अंत में उनका नाम दिलीप कुमार रखा गया। अवकाश प्राप्त हिंदी प्राध्यापक वर्मा ने
बताया कि “ज्वार भाटा” की कहानी मेरे
बाबूजी भगवती चरण वर्मा ने लिखी थी । इस फिल्म के निर्देशक अमिया चक्रवर्ती थे और इस फिल्म
की हीरोइन मृदुला थीं । यह फिल्म मुंबई टाकीज की थी
जिसकी मालकिन देविका
रानी थी । यूसुफ खान को फिल्म में लाने की योजना को मूर्त्त
रूप लेने पर एक मीटिंग आयोजित की गई, जिसमें चक्रवती ने वासुदेव नाम सुझाया। देविका रानी ने
तब बाबूजी से कहा कि आप हिंदी के जाने माने लेखक हैं। आप भी कोई नाम सुझाए, तब बाबूजी ने दिलीप कुमार का नाम
सुझाया और तब से यूसुफ खान का नाम दिलीप कुमार हो गया। आईए,एक नजर डालते हैं उनकी कृतियों पर जो हमें
उनसे बरबस ही जोड़ देती हैं । इस संवेदनशील साहित्यकार के लिए मेरे मन में कुछ ऐसे भाव समाहित हैं
जो इस ढलती वय में भी एक संबल प्रदान करती रहती है एवं आशा है कि सुधी ब्लॉगरवृंद
भी अपने आपको इनसे अलग नही रख सकते - धन्यवाद
उपन्यास : (1) अपने खिलौने (2) पतन (3) तीन वर्ष ( 4) चित्रलेखा (5) भूले-बिसरे चित्रलेखा (6) टेढे़-मेढे़ रास्ते (7) सीघी सच्ची बातें ( 8) सामर्थ्य और सीमा (9) रेखा (10) वह फिर नही आई ( 11) सबहिं नचावत राम गोसाई (12) प्रश्न और मरीचिका (13) युवराज चूण्डा (14) घुप्पल
कहानी-संग्रह : मोर्चाबंदी ।
कविता-संग्रह : (1) सविनय ( 2) एक नाराज कविता ।
नाटक : (1) वसीहत ( 2) रुपया तुम्हें खा गया ।
संस्मरण : (1) अतीत के गर्भ से ।
साहित्यालोचन : (1) साहित्य के सिद्घांत (2) रुप ।
कहानी: मुगलों ने सल्तनत बख्स दी ।
नोट: आप सबके बहुमूल्य सुझावों एवं प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी ताकि अगले पोस्ट को अभिनव रूप में आप सबके समक्ष प्रस्तुत कर सकूं । धन्यवाद ।
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