Friday, April 27, 2012

रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था "प्यार" तुमने ।


 

 




रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।

(हरिवंश राय बच्चन)

प्रस्तुतकर्ता : प्रेम सागर सिंह

रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।

फ़ासला था कुछ हमारे बिस्तरों में
और चारों ओर दुनिया सो रही थी,
तारिकाएँ ही गगन की जानती हैं
जो दशा दिल की तुम्हारे हो रही थी,
मैं तुम्हारे पास होकर दूर तुमसे


अधजगा-सा और अधसोया हुआ सा,

रात आधी, खींच कर मेरी हथेली
एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।

एक बिजली छू गई, सहसा जगा मैं,
कृष्णपक्षी चाँद निकला था गगन में,
इस तरह करवट पड़ी थी तुम कि आँसू
बह रहे थे इस नयन से उस नयन में,
मैं लगा दूँ आग इस संसार में है 
प्यार जिसमें इस तरह असमर्थ कातर
जानती हो, उस समय क्या कर गुज़रने 
के लिए था कर दिया तैयार तुमने! 
रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।

प्रात ही की ओर को है रात चलती
उजाले में अंधेरा डूब जाता,
मंच ही पूरा बदलता कौन ऐसी,
खूबियों के साथ परदे को उठाता
एक चेहरा-सा लगा तुमने लिया था,
और मैंने था उतारा एक चेहरा,
वो निशा का स्वप्न मेरा था कि अपने पर 
ग़ज़ब का था किया अधिकार तुमने। 
रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।

और उतने फ़ासले पर आज तक सौ
यत्न करके भी न आये फिर कभी हम,
फिर न आया वक्त वैसा, फिर न मौका
उस तरह का, फिर न लौटा चाँद निर्मम
और अपनी वेदना मैं क्या बताऊँ,
 क्या नहीं ये पंक्तियाँ खुद बोलती हैं--
बुझ नहीं पाया अभी तक उस समय जो 
रख दिया था हाथ पर अंगार तुमने। 
रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।

**********************************************************************************************************************

Wednesday, April 25, 2012

आदर्श प्रेम




  
नई यादें एवं पुराने परिप्रेक्ष्य



(हरिवंश राय बच्चन)

प्रस्तुतकर्ता : प्रेम सागर सिंह

आदर्श प्रेम

प्यार किसी को करना लेकिन
कह कर उसे बताना क्या,
अपने को अर्पण करना पर
और को अपनाना क्या ।

गुण का ग्राहक बनना लेकिन
गा कर उसे सुनाना क्या,
मन के कल्पित भावों से
औरों को भ्रम में लाना क्या।

ले लेना सुगंध सुमनों की
तोड़ उन्हे मुरझाना क्या,
प्रेम हार पहनाना लेकिन
प्रेम पास फैलाना क्या ।

त्याग अंक में पले प्रेम शिशु
उनसें स्वार्थ बताना क्या,
दे कर हृदय, हृदय पाने की
आशा व्यर्थ लगाना क्या ।

****************************************************

Sunday, April 22, 2012


जाके परदेशवा में भुलाई गईल राजा जी

प्रस्तुतकर्ताः प्रेम सागर सिंह

भोजपुरी दुनिया में कहने के लिए एक फैशन है कि सात समुंदर पार गए हुए गिरमिटियामजदूरों के परिवारों से रचा-बसा, फूला-फला मारीशस आज भी भोजपुरी भाषा, संस्कार सभ्यता और संस्कृति को मारीशस में जीवित रखा है। इसका उल्लेख करके हम अपने आप को आश्वासित कर देते हैं कि कहीं न कहीं भोजपुरी भाषा जीवित तो है लेकिन जब हम अपने देश को ध्यान में रखते हुए इसका विश्लेषण करते हैं तब पता चलता है कि इस भाषा की वास्तविक स्थिति क्या है एवं भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची (Eighth Schedule of the Constitution of India) में शामिल करने की संभावना निकट भविष्य में संभव है या नही  हम लोग अपने भाषा-मोह के कारण काल्पनिक दुनिया में जी रहे हैं लेकिन नई पीढ़ी का हार्दिक लगाव वर्तमान समय में भोजपुरी से अलग होता सा प्रतीत हो रहा है । अपने देश में टी.वी.का महुआ चैनेल इसे भोजपुरी का चैनेल कहता है लेकिन उस पर भोजपुरी का क्या हाल है कभी एक दो घंटे आराम से बैठ कर देखिए तो वास्तविक स्थिति से परिचित होने में देर नही लगेगी । कुछ दिनों पहले कौन बनेगा करोड़पति देखा तो मन को काफी दुख हुआ। भोजपुरी भाषा के नाम पर पैसा कमाने वाले लोग इस भाषा से अलग होकर हिंदी में बातें कर रहे थे। इस शो का एंकर भोजपुरी न बोल पाने के कारण बीच-बीच में कुछ रटा-रटाया भोजपुरी शब्द बोल देता था। रबि किशन, निरहुआ, मनोज तिवारी जैसे लोग यदि महुआ चैनेल पर खड़ी हिंदी बोलते हैं तो इससे यह अर्थ भी निकाला जाता है कि ये लोग भोजपुरिया लोगों को बेवकूफ बनाने के सिवाय और कुछ नही करते हैं बल्कि भोजपुरी के नाम पर अपना रोटी सेंक रहे हैं। न जाने मन बहक सा गया एवं लीक से हट गया था जो अक्सर किसी से भी हो जाता है। बात चल रहा था मारीशस का एवं उसी विषय पर लौट रहा हूँ। मारीशस को लघु भारत भी कहा जाता है।अपनी भाषा सभ्यता संस्कृति को आज तक थोड़ा ही सही अक्षुण्ण बनाए रखने वाले देश के बारे में किसी लेखक ने हिंद महासागर में एक छोटा सा हिंदुस्तान नामक पुस्तक भी लिखा है । भारत और मारीशस में ज्यादा अंतर नही है ,अंतर यही है कि भारत में अंग्रेजी शब्द का बहुतायत है तो वहां फ्रेंच का । मारीशस में क्रिओल में फ्रेंच, डच, चीनी, हिंदी, भोजपुरी आदि भाषाओं का प्रभाव थोड़ा बहुत देखने को मिलता है लेकिन क्रिओल का भोजपुरी से सौतिया डाह पूरे विश्व को मालूम है । इस देश में करीब एक लाख बासठ हजार टीनेजर या नवयुवक है। यहां टीनेजर उस उम्र के लोगों को कहा जाता है जिन लोगों में टीन लगा होता है जैसे-थर्टीन, फोर्टीन, फिफ्टीन से लेकर नाइन्टीन तक। इसटीन का सामाजिक महत्व अधिक है क्योंकि ये लोग उस देश की भावी पीढ़ी है एवं वहां की कुल आबादी का आठवां हिस्सा भी हैं । एक रिपोर्ट में कभी पढ़ा था कि भोजपुरी अब तेजी से अपना जगह छोड़ रही है एवं उसके स्थान पर क्रिओल और अंग्रेजी भाषाएं वहां के घरों में अपना स्थान ले रही है । इसके मूल में शायद यह बात निहित रही हो कि वहां की बिखरती पारिवारिक मूल्य, अंतर-सामुदायिक शादी और ब्याह के चलते हो सकता है कि बाप का भाषा कुछ और हो एवं मां का कुछ और एवं अब वहां के परिवारों में क्रिओल या अंग्रेजी का प्रयोग सहज लगने लगा हो । सच्चाई यह है कि भोजपुरी का महत्व दिन-प्रतिदिन घटता जा रहा है एवं हम लोग इससे अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं । वर्तमान समय में इस भाषा के विकास के लिए भोजपुरी भाषा के परचम फहराने वाले लोगों को इस भाषा के बारे में आत्म-मंथन करना चाहिए एवं इसे साकार करने के लिए कुछ ठोस उपाय भी करना चाहिए। उद्देश्य होना चाहिए कि इस भाषा को रोजी रोजगार का भाषा बनाना चाहिए क्योंकि जब तक भोजपुरी भाषा ऱोजी रोजगार की भाषा नही बनती है तब तक इसके भविष्य पर अहर्निश बदली छायी रहेगी । भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता दिलाने से अधिक जरूरत है इस भाषा में अधिक से अधिक साहित्य की रचना, दूसरी भाषाओं से ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकों का भोजपुरी अनुवाद तथा हर तरह का साहित्य उपलब्ध कराने का निरंतर प्रयास । मेरा अपना विचार है कि सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के कारण आज अधिक से अधिक लोग इंटरनेट से जुड़ रहे हैं। यदि हम इस माध्यम को अपनाते हैं तो दूर-दराज देशों में बैठे लोग भी इससे जुड़ सकेंगे एवं उन्हें इस क्षेत्र में अपनी प्रतिभा प्रदर्शन के लिए एक सुलभ मंच भी मिलेगा । हमें पूरा विश्वास है कि विश्व में अनेक लोग ऐसे होंगे जो भोजपुरी जानते होंगे एवं भोजपुरिया लोगों का सामीप्य न मिलने के काऱण इससे मन से जुड़ नही पाते हैं । गिरमिटिया मजदूरों के नाम पर विदेश ले जाने वाले लोगों ने उनके साथ अन्याय किया, उनका शोषण किया एवं न जाने कितने जुल्मों सितम ढाहे। यदि मारीशस, घाना, ट्रीनीडाड, क्यूबा, फीजी सूरीनाम की माटी बोल पाती तो न जाने उन अशिक्षित निरीह लोगों की कितनी कहानियां हमारे हमारे सामने उभर कर आई होती। मेरे गांव के कुछ सहाय जाति के लोगों को मारीशस एवं सूरीनाम ले जाया गया एवं वे जो एक बार गए तो वहीं के होकर रह गए। उनकी नवयौवना व्याहता पत्निया इंतजार करती रही कि आजादी के बाद उन्हे वापस भारत आने का सौभाग्य मिल पाएगा किंतु उन दिनों सत्ता के लोलुप लोगों के कारण यह संभव न हो सका न किसी ने इस मुद्दे पर कोई ठोस पहल ही की। मैने अपने बाबूजी के मुंह से सुना था कि उनकी पत्निया अपनी जीविका के लिए शादी या अन्य अवसरों पर गांव के घरों में ही गीत गाकर जो कुछ मिलता था अपने परिवार का भरण-पोषण करती थीं। विरह की विषम वेदना से ब्यथित उन स्त्रियों को मेरे गांव के लोग आदर और सम्मान देते थे एवं उन चार स्त्रियों को प्रत्येक जाति के लोग उर्मिला कह कर संबोधित करते थे। आशय था भरत एवं उर्मिला का प्रसंग। लोगों का अपना अभिमत था कि उर्मिला भरत जी का घर के चौखट पर फूल और दिया लेकर चौदह वर्ष तक इंतजार करती रहीं लेकिन इन लोगों ने तो चौदह वर्ष से भी अधिक इंतजार किया। उन लोगों का प्रिय भोजपुरी गीत था 
जाके परदेशवा में भुलाई गईल राजा जी,
सपना के झुलुवा झुलाई गईल राजा जी . . . . .......................
उस समय इस गीत को सुनकर संवेदनशील लोगों की आखें नम हो जाती थीं। न जाने और अपने देश के कितने लोग विदेशों में होंगे जो आज तक गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं । ऐसे लोगों के प्रति मेरी असीम श्रद्धा एवं सहानुभूति है ।

Wednesday, April 4, 2012

समाज के विविध पक्षों , व जन-जीवन से जुड़ा साहित्य अर्थवान होता है ।


 समाज के विविध पक्षों, व जन-जीवन से जुड़ा साहित्य ही अर्थवान होता है

                  
                       अमृत लाल नागर

           जन्म:17 अगस्त 1916 (निधन 1990)


हम ने भी कभी प्यार किया था,
थोड़ा नही बेसुमार किया था,
बदल गई जिंदगी,
जब उसने आकर मुझसे कहा,
अरे पागल, मैंने तो मजाक किया था


जीवन वाटिका का बसंत, विचारों का अंधड़, भूलों का पर्वत, और ठोकरों का समूह है यौवन। इसी अवस्था में मनुष्य त्यागी, सदाचारी, देशभक्त भी बनते हैं, तथा अपने खून के जोश में वह काम कर दिखाते हैं जिससे उनका नाम संसार के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिख दिया जाता है तथा इसी आयु में मनुष्य विलासी, लोलुपी और व्यभिचारी भी बन जाता है और इस प्रकार अपने जीवन को दो कौड़ी का बनाकर पतन के खड्ड में गिर जाता है । अंत में पछताता है, प्रायश्चित करता है, परंतु प्रत्यंचा से निकला हुआ वाण फिर वापस नही लौटता, खोई हुई सच्ची शांति फिर नही मिलती>- अमृत लाल नागर

हिंदी साहित्य-जगत को अपनी अनुपम कृतियों से एक नया आयाम प्रदान करने वाले अमृत लाल नागर का जन्म 17 अगस्त 1916 को आगरा में हुआ था। उनके पिता का नाम राजाराम नागर था। नागर जी का निधन वर्ष 1990 में हुआ । नागर जी  इण्टरमीडिएट तक ही पढाई कर पाए किंतु  इन पर मां सरस्वती की कृपा दृष्टि बनी रही।इनकी भाषा सुगम्य, सरल एवं सहज है जिसके कारण पाठकों के दिल में इनकी रचनाओं के प्रति अगाध प्रेम भरा रहता है। इन्होंने अपनी रचनाओं में विदेशी तथा देशज शब्दों का प्रयोग आवश्यकतानुसार किया है। भावात्मक, वर्णनात्मक, शब्द चित्रात्मक शैली का प्रयोग इनकी रचनाओं में देखने को मिलता है। इनकी अपनी मान्यता रही है कि साहित्य और समाज एक दूसरे के पूरक हैं। समाज के व्यापक और गहन अस्तित्व के समान ही उससे घनिष्टता से जुड़े साहित्य में भी वही व्यापकता, विशदता और गहराई समाई होती है। यही कारण है कि समाज उसके विविध पक्षों, व जीवन से जुड़ा साहित्य अर्थवान होता है जो साहित्य विशुद्ध रूप से समाज और उसकी गहन व्यापकता को समेट कर रूपाकार पाता है, नि:संदेह यह समाज की भांति ही संपन्न और समृद्ध होता है । विश्व के अनेक चिंतकों, विचारकों, एवं प्रख्यात समाजशास्त्रियों ने समाज का गहन अध्ययन कर, उसे व्याख्यायित करते हुए कहा है - समाज मात्र व्यक्तियों का समूह ही नही, अपितु यह एक ऐसी संरचना है जो परंपराओं, रीति-रिवाजों, मूल्यों, संस्कारों, मानवीय भावो, वर्ण, वर्ग, जाति, परिवार, विवाह आदि संस्थाओं, व्यवस्थाओं, इनके प्रकार्यों-अकार्यों तथा तदजनित सामाजिक सांस्कृतिक एवं भावनात्मक एकता, बिखराव, पारस्परिक संबंधों व संघर्षों से विकसित होकर रूपाकार लेता और निरंतर परिवर्तनशील रहता है। यह परिवर्तनशीलता उसके विकास समृद्धि व संपन्नता की सूचक होती है जो अविराम उसे परिवर्द्धित करती है। नागर जी के उन्यास साहित्य का केंद्र विंदु समाज, संस्कृति और जनजीवन ही है। इस संबंध में हिंदी साहित्य के अनेक विद्वानों की मान्यता रही है कि जन जीवन और संस्कृति समाज में समाहित रहती है और वही समाज के अस्तित्व के मूल में होती है। इनके उपन्यासों को पढ़ने पर मैंने समाज और उसके विविध अवयवों, अंत:क्रियाओं, व्यवस्थाओं इनसे रचे बसे संगठित जीवन को व्यापक रूप में रचा बसा पाया। आईए, एक नजर डालते हैं लेखक के समाज व संस्कृति  और जीवन से जुड़े बहुमूल्य एवं उदात्त विचारों व समाजशास्त्रीय दृष्टि से उनकी कृतियों पर जो आज भी हमारे लिए प्रकाशस्तंभ की तरह प्रतीत होती हैं।

साहित्यिक कृतियां :- 10 प्रतिनिधि कहनियां, अक्ल बड़ी या भैंस, एक दिल और हजार अफसाने, करवट, कृपया दांए चलिए, खंजन नयन,गदर के फूल, चकल्लस, चक्र तीर्थ, चैतन्य महाप्रभु, टुकड़े-टुकड़े दास्तान, नटखट चाची, नवाबी मसनद, पीढियां, बिखरे सपने, भूख, महान युग निर्माता, मानस का हंस, ये कोठेवालियां, हम फिदा ए लखनऊ, सेठ बाँकेमल, बूंद और समुद्र, शतरंज के मोहरे, सुहाग के नुपुर, अमृत और विष, घूँघट वाला मुखड़ा, एकदा नैमिषारण्ये, नाच्यौ बहुत गोपाल, व्यंग, निबंध, रेखाचित्र, संस्मरण, जीवनी आदि विधाओं में आपने महत्वपूर्ण कार्य किया ।

संपादन:-नागर जी ने सुनीति समाचार, हास्य व्यंग साप्ताहिक चकल्लस का संपादन कार्य भी किया । इसके साथ-साथ उन्होंने नया साहित्य एवं प्रसाद नामक मासिक पत्रिका के संपादन के कार्य को भी बखूबी निभाया।

अन्य:- वर्ष 1940 से 1947 तक फिल्म दृष्यांकन का लेखन कार्य किया। 1953 ले 1956 तक आकाशवाणी लखनऊ में ड्रामा प्रोड्यूसर भी रहे ।

पुरस्कार :-साहित्य अकादमी और सोवियतलैंड पुरस्कार, बटुक प्रसाद पुरस्कार, प्रेमचंद पुरस्कार, बीर सिंह देव पुरस्कार, विद्या वारिधि, सुधाकर पदक, तथा पद्मभूषण से अलंकृत किया गया । इन्हे साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में विशिष्ट कार्य करने के लिए भारत सरकार द्वारा वर्ष 1981 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था।

नोट: आप सबके बहुमूल्य सुझावों एवं प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी ताकि इस पोस्ट को संग्रहणीय एवं शिक्षाप्रद बनाया जा सके ।

****************************************************************