इस कविता में ‘मां’ का अपनी बेटी के विवाह के समय उसकी मन:स्थिति का वर्णन तथा उसके प्रति उठती हुई भाव-तरंगों की प्रस्तुति है। हर ‘मां’ के जीवन में इस मांगलिक अवसर पर मातृ-स्नेहिल प्रेम की शीतल बयार हिय के संवेदनशील तारों को निर्मम झकोरों से आंदोलित कर जाती हैं। कुछ ऐसे ही चिर-शाश्वत भाव-विंदुओं को अपनी पूर्ण समग्रता में समेटे विवाह-मंडप में वर को संबोधित मातृ-हृदय की अकथ पीड़ा-बोध का जीवंत-चित्रण प्रस्तुत करने का मेरा यह एक छोटा सा प्रयास है। यदि मेरा यह थोड़ा सा प्रयास आपके संवेदनशील हृदय को किंचितमात्र भी स्पंदित कर जाता है तो मुझे अनिर्वचनीय सुख की अनुभूति होगी एवं मेरी अभिव्यक्ति को सार्थक रूप मिलेगा।
कन्या रूपी रत्न
वह कन्या रूपी रत्न तुम्हे.
मैं आज समर्पित करती हूं ।
निज हृदय का प्यारा टुकड़ा,
तुमको मैं अर्पण करती हूं ।
मां की ममता का सागर है,
मेरी आंखों का तारा है,
कैसे समझाउं मैं तुमको,
किस लाड़-प्यार से पाला है ।
तुम मेरे दर पर आए हो,
मैं क्या सेवा कर सकती हूं ।
यह कन्या रूपी रत्न तुम्हे,
मैं आज समर्पित करती हूं ।
कर्तव्य-निष्ठा इस कन्या का,
हम सबका बहुत सहारा था ।
मैं अब तक जान न पाई थी,
इस पर अधिकार तुम्हारा था।
निज पलकों की घनी छांव में,
प्रतिपल ही बिछाए रखना।
हर खुशी इसे अर्पण करना
मनुहार, यही मैं करती हूं।
इससे तो भूल जरूर होगी,
यह सरला है सुकुमारी है।
इसके अपराध क्षमा करना,
यह मां की राजदुलारी है।
मम कुटिया की यह शोभा है,
दिल से मैं अर्पण करती हूं।
सातो जनम सुहागिन बनी रहे,
आशीष यही मैं देती हूं।
दोनों के प्रतीक्षित प्रेमांगन में,
प्रीति-पुष्प-लता चतुर्दिक फैले,
वैभव, सुख-शांति साथ रहे.
बस ,यही कामना करती हूं।
दिए हैं जो संस्कार इसे मैंने,
वह सर्वदा इसे निभाएगी।
विश्वास अटूट है मेरा इस पर,
नव-घर को सुखी बनाएगी।
इसके स्वप्नों के सृजनहार हो,
तुम्हारी अब यह अनमोल थाती है।
प्रतिपल ही प्रफुल्लित रखना इसे,
तुमसे करवद्ध हमारी विनती है।
हे धर्मपुत्र, हे वरश्री,
आशीष तुम्हे मै देती हूं ।
हर खुशियाँ सदा चरण चूमें,
वरदान यही मैं देती हूं ।
कलेजे पर पत्थर रखकर,
सहर्ष विदा मैं करती हूं।
यह कन्या रूपी रत्न तुम्हे,
मैं आज समर्पित करती हूं।
बहुत संवेदनशील रचना!
ReplyDeleteइससे बेहतर और क्या शब्द हो सकते हैं। बहुत ही भावपूर्ण कविता। दिल निकाल कर रख दिया है आपने।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता
ReplyDelete.
ReplyDeleteवह कन्या रूपी रत्न तुम्हे.
मैं आज समर्पित करती हूं ।
निज हृदय का प्यारा टुकड़ा,
तुमको मैं अर्पण करती हूं ।
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माँ के मन की इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति पहले कभी नहीं पढ़ी ।
बधाई इतनी खूबसूरत रचना के लिए।
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its a good composition of feelings and words
ReplyDeleteshabdon ke madhayam se ek maa! ke hridy ko hi khol kar rakh diya hai.badhi
ReplyDeleteभाव-प्रवणता भरी पड़ी है इस रचना...हर किसी के अनुभवों का हिस्सा है यह! बड़े ही भावुक पल होते हैं...बेटी की विदाई के पल! मैंने भी एक बार किसी के आग्रह पर लिखा था विदाई-गीत!
ReplyDeleteऐसी रचना में यत्र-तत्र छंद में झोल तो आ ही जाता है!
Beti ke Wiwah parek ma ke man ke manke bhawon ko khoob prakat kar rahee hai ye kawita.
ReplyDeleteसंवेदनाएं मुखर हो उठी हैं!
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
AApp\ sab ko Dhanyavad
ReplyDeleteAti sunder
ReplyDeleteVery good
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रेम सरोवर है दिल को झु देना वाला है
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