उम्र गुज़र जाए, तो क्या प्यार नहीं किया जाता ? - नसरीन
तसलीमा नसरीन ने एक बहुत ही उम्दा
बात को सामने रखा था, कि " धर्म स्त्रियों की सदैव से उपेक्षा करता रहा है " और इस बात को यहाँ
लिखने के लिए मुझे कोई उद्धरण दिलासे के तौर पर सनद नहीं है। प्रभा खेतान जी के
अनुसार पाश्चात्य
"शरीरवादी"
हैं, तथा ऐसे देशों
में 'Gentleman,
Ladies' ही उनके संबोधन होते हैं, जहाँ सुरक्षा तथा किसी प्रकार के रिश्ते के स्थापना मानस पटल पर
फ़ौरन समाप्त कर
दी जाती है। परन्तु भारत में अपरिचित स्त्री, पुरुषों के बीच, "भाई""बहन" आदि संबोधन
का प्रयोग किया जाता है। इस संबोधन से सहयोग तथा भावनाओं दोनों का तारतम्य एक साथ स्थापित किया जाता। इस
तरह की प्रविष्टियों को ब्लॉग पर प्रस्तुत करने की पष्ठभूनि में मेरा यह प्रयास रहता
है कि हिंदी साहित्याकाश के दैदीप्यमान प्रकाशस्तंभों का सामीप्य-बोध हम सबको
अहर्निश मिलता रहे एवं हम सब इन साहित्यकारों की अनमोल कृतियों एवं उनके जीवन
दर्शन की घनी छांव में अपनी साहित्यिक ज्ञान-पिपासा में अभिवृद्धि करते रहें। आईए,एक नजर डालते
हैं, बांग्ला देश की बहुचर्चित लेखिका तसलीमा नसरीन पर, उनके जीवन एवं
कृतियों पर जो हमें सत्य से विमुख न होने के साथ-साथ कभी बिखरने भी नही देती हैं।
किसी भी साहित्यकार की रचना उसकी निजी जीवन की अनुभूतियों की ऊपज होती है । नसरीन
के इन रचनाओं में कुछ खास ऐसी ही विशेषता है जिसे लोगों ने हाशिए पर रख कर उन्हे
वो सम्मान और आदर नही दिया जिसका वे असल में हकदार थीं । मेरा प्रयास एव परिश्रम
आप सबके दिल में थोड़ी सी जगह बना सकने में यदि सार्थक सिद्ध हुआ तो मैं यही
समझूंगा कि मेरा प्रयास, संकलन एवं परिश्रम भी साहित्य-जगत के सही संदर्भों में सार्थक
सिद्ध हुआ। - प्रेम सागर सिंह
तसलीमा नसरीन का जन्म 25 अगस्त सन 1962 को तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के मयमनसिंह शहर में हुआ था। उन्होने मयमनसिंह मेडिकल कॉलेज से 1986 में चिकित्सा स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद सरकारी डॉक्टर के रूप में कार्य आरम्भ किया एवं 1994 तक पूर्ण सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वाह किया । विद्यार्थी जीवन से ही उनका लगाव साहित्य के प्रति बढ़ता गया एवं वे धीरे–धीरे साहित्य-सृजन की दुनिया में रचती बसती गई । जब वह स्कूल में थीं तभी से ही कविताएं लिखना आरम्भ कर दिया था। तसलीमा नसरीन एक बांग्लादेशी लेखिका हैं जो नारीवाद से संबंधित विषयों पर अपनी प्रगतिशील विचारों के लिये चर्चित और विवादित रही हैं। बांग्लादेश में उनपर जारी “फतवे” की वजह से उन्हे कुछ दिन कोलकाता में निर्वासन की ज़िंदगी बिताने के लिए बाध्य होना पड़ा । हालांकि कोलकाता में विरोध के बाद उन्हें कुछ समय के लिये दिल्ली और उसके बाद फिर स्वीडन में भी समय बिताना पड़ा है लेकिन इसके बाद जनवरी 2010 में वे भारत लौट आईं। उन्होंने भारत में स्थायी नागरिकता के लिये आवेदन किया है लेकिन भारत सरकार की ओर से उस पर अब तक शायद कोई निर्णय हो पाया है या नही मेरे संज्ञान में नही है स्त्री के स्वाभिमान और अधिकारों के लिए संघर्ष करते हुए तसलीमा नसरीन ने बहुत कुछ खोया। उनको अपने साहित्यिक सोच एवं विरोधी लोगों के साथ मुठबेड़ करना पड़ा । इस मुठभेड़ में कुछ टूटा, कुछ बिखरा । पर इन सब हालातों मे भी उन्होंने जिस अदम्य उत्साह एवं साहस का परिचय दिया, अपना भरा- पूरा परिवार, दाम्पत्य, नौकरी सब दांव पर लगा दिया। उसकी पराकाष्ठा थी देश निकाला । अपने जीवन को साहित्य के प्रति समर्पित करने वाली नसरीना को अपनी बातों को स्वतंत्र रूप से कहने के लिए जो सजा मिली य़ह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन ही है । यह बात जिगर है कि लोग इसे मानते हैं या नही। इस लेखिका के लिए मेरे मन में जो आदर है उसे प्रकट करने के लिए मेरे पास कोई शब्द नही है । लेखक में इतनी शक्ति अवश्य होनी चाहिए कि अपनी रचना के लिए उसे किसी के सामने न झुकना पड़े । क्या सलमान रसदी के साथ भी जयपुर Literary Festival में जो कुछ भी हुआ उसे हमारी युगों पुरानी छवि धूमिल नही हुई है ! इतना कुछ होने के बाद हम सभी जानते हैं कि कालांतर में ये सारी बातें इतिहास बन जाएगी एवं इतिहास का पारंपरिक नियम यही कहता है कि उसे घटनाओं को तो दर्ज करना ही पड़ता है । आपके सामने प्रस्तुत है उनकी कृतियां जो हमें उनसे बरबस ही जोड़ देती है ।
उपन्यास : लज्जा, अपरपक्ष (उच्चारण : ओपोरपोक्ख) , निमंत्रण (उच्चारण : निमोन्त्रोन) , फेरा ,द्विखण्डित (उच्चारण : द्विखंडितो) ,सेई सब अंधकार ( उच्चारण : सेई सोब अंधोकार) , अमी भालो नेई, तुमी भालो थेको प्रियो देश
हिंदी में अनुदित उपन्यास : 1. औरत का कोई देश नही 2. औरत के हक में 3. एक पल साथ रहो 4. चार कन्या 5. उत्ताल हवा 6. छोटे-छोटे दु:ख 7. दुखियारी लड़की 8. निमंत्रण 8. फ्रांसीसी प्रेमी 9. बंदिनी 10.मुझे घर ले चलो 11. मुझे मुक्ति दो 12. मेरे बचपन के दिन 13. लज्जा 14. वे अंधेरेप्रस्तुत है उनकी एक कविता : --------------
उम्र गुज़र जाए,तो क्या प्यार नहीं किया जाता?
तुम सिर्फ़ तीस के लगते
हो, वैसे तुम हो तिरसठ के !
बहरहाल, तिरसठ के हो या तीस के, किसी को क्या फ़र्क़ पड़ता है ?
तुम, तुम हो; तुम जैसे; ठीक वैसे, जैसा तुम्हें फबता है।
जब-जब झाँकती हूँ, तुम्हारी युगल आँखों में
लगता है, पहचानती हूँ उन आँखों को दो हज़ार वर्षों से !
होठ या चिबुक, हाथ या उँगलियाँ,
जिस पर भी पड़ती है निगाह, लगता है पहचानती हूँ इन्हें।
दो हज़ार क्यों, इससे भी काफ़ी पहले से पहचान है मेरी,
इतनी गहरी है पहचान कि लगता
है, जब चाहूँ छू सकती हूँ उन्हें,
किसी भी वक़्त,
रात या दोपहर, यहाँ तक कि आधी-आधी
रात को भी !
यह भी लगता है जैसे
चाहूँ, उनमें पुलक जगा सकती
हूँ,
रात जगा सकती हूँ,
चिमटी काट सकती हूँ, चूम सकती हूँ, मानो वे सब मेरे कुछ लगते हैं।
तीस-तीस साल के लगनेवाले मेरे अहसासों की तरफ तुमने,
देखा है कई-कई बार,
लेकिन कुछ कहा नहीं
! हर कोई किसी को भी
!
लेकिन मुझे तो तुम्हारे कुछ कहने
का इन्तज़ार था,
लेकिन कुछ नहीं कहा तुमने,
मैं परखती रही, शायद मन ही मन कुछ कहो,
लेकिन नहीं, तुमने कुछ भी नहीं कहा !
क्यों ?
उम्र गुज़र जाए, तो क्या
प्यार नहीं किया जाता ?
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बहुत सुंदर बेहतरीन प्रस्तुति,बहुत खूब प्रेम जी,मैंने इनका नावेल लज्जा को पढ़ा है ....
ReplyDeletewelcome to new post ...काव्यान्जलि....
सुन्दर प्रस्तुति प्रेम सागर जी , तसलीमा नसरीन के बारे में अच्छी जानकारी दी है
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति सर..
ReplyDeleteतस्लीमा जी की कविता पढवाने के लिए आभार.
आपका बहुत शुक्रिया..
तस्लीमा जी की नायाब रचना...... शुक्रिया
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...नसरीन जी का उपन्यास लज्जा पढ़ा था...उनकी कविता भी बहुत अच्छी लगी...आभार
ReplyDeleteप्रेम तो शाश्वत है...
ReplyDeleteप्रेम सरोवर जी,...मेरे पोस्ट में आकर अपने विचार देने के लिए,..बहुत२ आभार
ReplyDeleteबहूत हि बेमिसाल रचना है
ReplyDeleteतस्लिमा जी कि कविता सांझा करणे
एवं इतनी बेहतरीन पोस्ट के लिये
आभार .....
आपकी सेटिंग्स में कोई समस्या है, तभी अपडेट नहीं हो पा रही हैं मेरे ब्लॉग पर.. वरना मुझे याद दिलाने की आवश्यकता नहीं पडती!
ReplyDeleteतस्लीमा नसरीन को बहुत करीब से देखा है.. क्रान्तिकारी लेखिका हैं.. अच्छा लगा उनका परिचय!!
सही कहा है आपनेॉ
Delete.मेरे गुरू श्री मनोज कुमार जी से मिल कर इस समस्या का निदान करने की कोशिश करूंगा । दन्यवाद ।
तस्लीमाजी का परिचय पाकर अच्छा लगा....
ReplyDeleteसाहित्य जगत के लिए निश्चित रूप से सार्थक प्रयास ....
ReplyDeleteबहुत आभार...
उम्र गुज़र जाए, तो क्या प्यार नहीं किया जाता.tasleema ji ke bare me jo bhi btaya uske liya aabhar n.bahut achcha lga padhkr.
ReplyDeleteवर्तमान में भी औरतो की कोई पूछ नहीं है ..............सिर्फ जरुरत और उपयोग ही देखा जा रहा है
ReplyDeleteजब-जब झाँकती हूँ, तुम्हारी युगल आँखों में
ReplyDeleteलगता है, पहचानती हूँ उन आँखों को दो हज़ार वर्षों से !
होठ या चिबुक, हाथ या उँगलियाँ,
जिस पर भी पड़ती है निगाह, लगता है पहचानती हूँ इन्हें।
वाह! बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! दिल को छू गई! तसलीमा नसरीन जी के बारे में पढ़कर बेहद अच्छा लगा ! सराहनीय प्रस्तुती!
---प्रेम निश्चय ही शाश्वत है...ना उम्र का बन्धन ...बस मन की बात है...सही है परन्तु वह एसी भी कोई अमूल्य वस्तु नही है कि इसके लिये सारे बन्धन तोडे जांय...शाश्वत नियम तोडे जायं.. तभी तो श्री क्रिष्ण ने कर्तव्य के लिये प्रेम को छोडा ...यही शाश्वत-प्रेम है..
ReplyDelete---यहां तो तस्लीमा जी की साडी में तस्वीर है..शालीन लगती है...पर क्या आपने उनकी अर्धनग्न -कच्छा-बनयान में तस्वीर नहीं देखी....
---औरतों को ही क्या यहां किसी को कोई नहीं पूछता.....पुरुषों को भी उनके उचित सम्यग सहज़ व्यवहार व कार्यों से ही पूछ मिलती है...यही बात औरतों के लिये है...इन्दिरागान्धी, लताजी, महदेवी वर्मा आदि कौन सा महिला अधिकारों के लिये लडीं थीं परन्तु वे पूछी जाती हैं...अपने सहज़ कार्यों से ....
---लकीरों को तोडने के लिये स्वयं नई लकीरें बनना होता है......
Objection sustained .
DeleteRespected Dr. Gupta,
I would like to have a positive discussion on your comment. If you do not take amiss of of my comment on the issue of Taslima Nasrin, I would like to say that the said Taslima is far better than "मुन्नी बदनाम हुई".। । इंदिरा गाधी, लता जी एवं महादेवी वर्मा जी से "तसलीना नसरीन" की तुलना करना अप्रासांगिक लगा । धन्यवाद ।
टिप्पणी अंग्रेजी में है एक!
ReplyDelete... ...
फेरा का भी हिन्दी अनुवाद हो चुका है!
achhii prstuti
ReplyDeleteतसलीमा नसरीन को आपने पढवाया उनकी अनुभूति की पड़ताल का मौक़ा दिया .शुक्रिया .
ReplyDeleteतसलीमा नसरीन के बारे में आपकी पोस्ट से सुन्दर जानकारी मिली.
ReplyDeleteआपके इस सद प्रयास के लिए बहुत बहुत आभार,प्रेम जी.
मेरे ब्लॉग पर आपके आने के लिए आपका आभारी हूँ.
प्रेम जी ,आपकी कापी पेस्ट टिपण्णी के अतिरिक्त आपके
मेरी पोस्ट पर विशेष सुवचन भी जानने को मिले,तो मुझे
बहुत खुशी होगी.
मेरी टिप्पणी स्पैम से मुक्त करें।
ReplyDeleteतस्लीमा नसरीन के बारे में जानकारी प्रस्तुत की उसके लिए शुक्रिया। और हां, भारत में ही रिश्तों की महक बिखरती है बाकी दुनिया में नहीं। इसलिए ही भारत श्रेष्ठ है।
ReplyDeleteachchhi jankari aur uanki tavita bhi bahut achchhi hai
ReplyDeleteaapka dhnyavad ki aapne itni jankari di
bahut bahutu dhnyvad
rachana
तस्लीमा नसरीन के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने के लिये आभार......
ReplyDeleteसुन्दर कविता के लिये बधाई.....
कृपया इसे भी पढ़े
नेता,कुत्ता और वेश्या
लाजबाब प्रस्तुती .
ReplyDeleteMY NEW POST ...40,वीं वैवाहिक वर्षगाँठ-पर...
वाह, बहुत उम्दा!
ReplyDeleteआलेख भी, और कविता भी!
kavita achhi lagi
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति!!
ReplyDeleteआपके आलेख से सदा अच्छी जानकारियाँ प्राप्त होती रही हैं.आज की प्रस्तुति बेहतरीन है. सुंदर अहसास , प्रेम तो नि:संदेह शाश्वत है.....
ReplyDeleteप्रेम भाई,...पोस्ट को ज्यादा दिनों तक न खीचे,नयी रचना पोस्ट करे,....
ReplyDeleteNEW POST....
...काव्यान्जलि ...: बोतल का दूध...
...फुहार....: कितने हसीन है आप.....
धीरेंद्र जी ,
Deleteकुछ व्यक्तिगत कारणोंवश अभी समय नही मिल रहा है । समय मिलते ही फिर उपस्थित होऊंगा । धन्यवाद .
बेहतरीन प्रस्तुति..औरत के हक में..तसलीमा..
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