हो जाते हैं क्यूं आर्द्र नयन
(प्रेम सागर सिंह)
हर इसान के जीवन में
यादें ही हैं जो उसे कुछ सोचने समझने के लिए मजबूर कर जाती हैं। इस सत्य से कोई भी
विमुख नही हो सकता। युवावस्था का प्रेम वियोग उम्र की इस दहलीज पर या ढलती वय में
भी मुझे ही नही वल्कि सबको वीते वासर में लेकर चली जाती हैं एवं वहाँ पहुच कर मन
को जो शांति मिलती है, वह“व्लेंडर प्राईड” या “ब्लैक डॉग” के पूरी बोतल को खाली कर
देने के बाद भी नही मिलती है। जवानी की दहलीज पर पैर रखते ही मेरा मन भी उन दिनों
कुछ विचलित सा रहने लगा था किंतु विधि की विडंबना को टाला नही जा सकता । ऐसा कुछ
मेरे साथ भी हुआ जिसे आज मैं महसूस करता हूं कि मैने जो सपने देखे थे, अपना
बेशकीमती समय बर्बाद किया था, वह सोच कितनी गलत थी । यह बात जिगर है कि उन दिनों
ऐसे कुछ भाव मन को कितने शुकून देते थे । उन विस्मृत पलों को याद करते हुए प्रस्तुत
है मेरी कविता “ हो जाते हैं
क्यूं आद्र नयन ”। अपनी कविता के
साथ प्रस्तुत है, श्री दीपक पाटिल जी की एक कविता “तेरी यादों का मौसम ” जो मेरा हाथ थामने के
साथ-साथ एक अनिर्वचनीय सुख की अनुभूति से साक्षात्कार करा देती है। - प्रेम सागर सिंह
तेरी यादों का मौसम
(श्री दीपक पाटील)
आसमान के आंचल से इंद्रधनुष के रंग
तेरी तस्वीर में सिमट आते हैं,
धुआं-धुआं मौसम में बादल
तेरी यादों के बरस जाते हैं,
रेशम-सी हो जाती हैं शाम
हवा के झोंके जब तुझे गुनगुनाते हैं,
भीगे गुलमोहर के रंग
क्षितिज के कैनवास पर बिखर जाते हैं,
परिंदों के परों पर चढ़कर
कुछ सपने ऊंची उड़ान भरते हैं,
तेरी आवाज में कुछ शब्द
अपने लिए चुरा लाते हैं,
और पलकों की कोरों को
मोतियों से भर जाते हैं...!
तेरी तस्वीर में सिमट आते हैं,
धुआं-धुआं मौसम में बादल
तेरी यादों के बरस जाते हैं,
रेशम-सी हो जाती हैं शाम
हवा के झोंके जब तुझे गुनगुनाते हैं,
भीगे गुलमोहर के रंग
क्षितिज के कैनवास पर बिखर जाते हैं,
परिंदों के परों पर चढ़कर
कुछ सपने ऊंची उड़ान भरते हैं,
तेरी आवाज में कुछ शब्द
अपने लिए चुरा लाते हैं,
और पलकों की कोरों को
मोतियों से भर जाते हैं...!
हो जाते हैं क्यूं आर्द्र नयन
(प्रेम सागर सिंह)
हो जाते हैं क्यूं आर्द्र नयन,
मन क्यूं अधीर हो
जाता है ।
स्वयं का अतीत
लहर बनकर,
तेरी ओर बहा ले जाता है ।
वे दिन भी बड़े ही स्नेहिल
थे.
जब प्रेम सरोवर स्वतः उफनाता
था।
उसके चिर फेनिल
उच्छवासों से,
स्वप्निल मन भी जरा सकुचाता था।
कुछ कहकर कुंठित होता था,
तुम
सुनकर केवल मुस्काती थी ।
हम कितने कोरे थे
उस
पल,
जब कुछ बात समझ नहीं आती थी ।
हम बिछुड़ गए दुर्भाग्य
रहा,
विधि का भी शायद हाथ रहा ।
लिखा भाग्य
में जो कुछ था,
हम
दोनों के ही साथ रहा ।
सपने तो अब आते
ही नहीं,
फिर भी उसे हम बुनते रहे ।
जो पीर दिया था अपनों ने,
उसको ही सदा हम गुनते रहे ।
अंतर्मन में समाहित रूप
तुम्हारा,
अचेतन मन को उकसाया करता
है ।
लाख भुलाने
पर भी वह मन,
प्रतिपल ही
लुभाया करता है ।
तुम जहां भी
रहो आबाद रहो,
वैभव, सुख-शांति साथ रहे
।
पुनीत
हृदय से कहता
हूं ,
जग
की खुशियां पास
रहे ।
.....................................................................................
यादों को संजोने और उसे इस प्रकार अभिव्यक्त करना.. सचमुच मन को स्पर्श कर गयी यह रचना..
ReplyDeleteankhon ke raste sidhe dil men utar janewali aur ghar kar lenewali rachnaen.
Deleteआपकी प्रतिक्रिया अच्छी लगी ।धन्यवाद ।
Deletedono kavita bahut achchhi lagi, sukoon deti hui. aapko aur Deepak ji ko badhai.
Deleteआप दोनों की कविताएं बहुत अच्छी हैं।
ReplyDeleteदीपक जी से परिचय कराने के लिए आभार।
यादों को बहुत सुन्दर कविता में संजोया है...
ReplyDeleteसादर.
बहुत ही सुन्दर कविता..
ReplyDeleteWaah...!!
ReplyDeleteShaandaar prastuti.
Aabhaar...!!
vah prem ji bahut hi sundar pravishti hai .....bahut bahut abhar.
ReplyDeleteदोनों ही कवितायें दिल छू गयीं.
ReplyDeletesaarthak....aabhar..
ReplyDeleteदोनों रचनाएं सुंदर।
ReplyDeleteभावमयी प्रस्तुति।
आभार...
भाव-भीनी यादें दिल को सुकून देती हैं.....
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
सपने तो अब आते ही नहीं,
ReplyDeleteफिर भी उसे हम बुनते रहे ।
जो पीर दिया था अपनों ने,
उसको ही सदा हम गुनते रहे ...
बहुत खूब .. कभी कभी कुछ बातें बीते पल की याद बन जाती हैं ... और बहुत सताती भी हैं ... उदासी घेर लेती है अहिसे में ...
यादों को संजोती और प्रिय का हित दर्शाती भावुक सुंदर रचना!!!
ReplyDeleteधन्यवाद!!!
bahut khoobsurat kavitayen hain. sunder jankari.
ReplyDeletebahut sundar ......achhi post aabhar ...
ReplyDeleteपढ़कर बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteप्रेम भरी यादों में लिपटी हुई रचना ..
ReplyDeleteयादे हमेशा साथ रहती हैं। अच्छी कविता।
ReplyDeleteस्मृतियों के आँचल से बही सुन्दर कविता
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना!
ReplyDeleteदोनों कवितायें पुर -सुकून हैं .मन को सुकून देती हुई .यादों के समुन्दर बवंडर से आज भी उठतें हैं .क्योंकि यादें उनकी हैं जो हमारे न हुए ,ज़माने भर के हुए ,जिन्हें हम ता -उम्र हर तरफ देखा किये ऐसा ही होता है किशोरावस्था का प्यार ,सम्मोहन ,इन -फ़ेच्युएशन ,एक तरफ़ा ट्रेफिक सा ...बधाई सुन्दर लेखन के लिए भाव को बचाए रखने के लिए ...
ReplyDeleteVah prem ji...... lajbab prastuti ...badhai.
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति,बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई
ReplyDeletewelcome to new post...वाह रे मंहगाई
वे दिन भी बड़े ही स्नेहिल थे.
ReplyDeleteजब प्रेम सरोवर स्वतः उफनाता था।
उसके चिर फेनिल उच्छवासों से,
स्वप्निल मन भी जरा सकुचाता था।
अरे वाह! प्रेम सरोवर जी.
आपके अंदर प्रेम का सागर हिलोरे लेता है
यह आपकी प्रस्तुति से जाना.
सुन्दर भावभीनी प्रस्तुति के लिए आभार.
वाह बहुत ही खूबसूरत लिखा है आपने ...
ReplyDeleteदोनों कवितायें बहुत स्वाभाविक और सुन्दर हैं .अंतिम छंद की कामना मन को छू गई !
ReplyDeletelajawaab rachna sir
ReplyDeleteये प्रेम रोग तो व्यक्ति को प्रेम सरोवर में डुबो देता है। सुंदर कविता के लिए बधाई॥
ReplyDeleteतुम जहां भी रहो आबाद रहो,
Deleteवैभव, सुख-शांति साथ रहे ।
पुनीत हृदय से कहता हूं ,
जग की खुशियां पास रहे ।
Kitnee sundar dua hai!
Dono rachanayen aprateem hain!
@हो जाते हैं क्यूं आर्द्र नयन,
ReplyDeleteमन क्यूं अधीर हो जाता है ।
स्वयं का अतीत लहर बनकर,
तेरी ओर बहा ले जाता है ।
बहुत सुंदर कविता!
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteहमें आपकी कविता बहुत प्रभावित किया !
आभार !
सुंदर कविता...... बधाई.....
ReplyDeleteदोनों की कविताएं बहुत अच्छी हैं।
ReplyDeleteदोनों कवितायेँ सुन्दर हैं!
ReplyDeleteबधाई!
दोनों कविताये कमाल की है
ReplyDeleteयादो का बहुत सुन्दत चित्रण
अति उत्तम भाव रचना
बीते दिनों पर आज का वरदान या शुभकामनाएँ बरसाती ... ...
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