तुम्हे प्यार करते-करते कहीं मेरी उम्र न बीत जाए
ख़ून से लथपथ हवाएँ ख़ौफ-सी उड़ती रहीं
आँसुओं से नम मिली वातास तो अच्छा लगा
है नहीं कुछ और बस इंसान तो इंसान है
है जगा यह आपमें अहसास तो अच्छा लगा
हँसी हँसते हाट की इन मरमरी महलों के बीच
हँस रहा घर-सा कोई आवास तो अच्छा लगा
रात कितनी भी धनी हो सुबह आयेगी ज़रूर
लौट आया आपका विश्वास तो अच्छा लगा
आ गया हूँ बाद मुद्दत के शहर से गाँव में
आज देखा चँदनी का हास तो अच्छा लगा
दोस्तों की दाद तो मिलती ही रहती है सदा
आज दुश्मन ने कहा–शाबाश तो अच्छा लगा ।
(राम दरश मिश्र)
प्रस्तुतकर्ताः
प्रेम सागर सिंह
रामदरश मिश्र जी का जन्म 15 अगस्त, 1924 को गोरखपुर जिले के डुमरी
गांव में हुआ।
उन्होंने एम.ए.,पीएच.डी. तक
शिक्षा प्राप्त की। संप्रति :
दिल्ली विश्वविद्यालय (हिंदी विभाग) के प्रोफेसर के पद से सेवा मुक्त। सर्जनात्मक रचनाओं
के रूप में उन्होंने साहित्य की सभी विधाओं में साहित्य रचना की। उनके
प्रमुख सर्जनात्मक रचनाएँ निम्न हैं–
काव्य-संग्रह– पथ के गीत, बैरंग-बेनाम चिट्ठियां, पक गई है धूप, कंधे पर सूरज, दिन एक नदी बन गया, मेरे प्रिय गीत, हंसी ओठ पर आंखें नम हैं (ग़ज़ल-संग्रह), जुलूस कहां जा रहा है ?,
कविताः- प्रतिनिधि कविताएं, आग कुछ नहीं बोलती, शब्द सेतु, बारिश में भीगते बच्चे, ऐसे में जब कभी, बाजार को निकले हैं लोग
(ग़ज़ल-संग्रह), आम के पत्ते, तू ही बता ऐ जिंदगी (ग़ज़ल-संग्रह);
उपन्यास- पानी के
प्राचीर, जल टूटता हुआ, बीच का समय, सूखता हुआ तालाब, अपने लोग, रात का सफर, आकाश की छत, आदिम राग (बीच का समय), बिना दरवाजे का मकान, दूसरा घर, थकी हुई सुबह, बीस बरस, परिवार;
कहानी-संग्रह - खाली घर, एक वह, दिनचर्या, सर्पदंश, वसंत का एक दिन, इकसठ कहानियां, अपने लिए, मेरी प्रिय कहानियां, चर्चित कहानियां,श्रेष्ठ आंचलिक कहानियां, आज का दिन भी, फिर कब आएंगे ?, एक कहानी लगातार, विदूषक, दिन के साथ, 10 प्रतिनिधि कहानियां, मेरी तेरह कहानियां, विरासत;
ललित निबंध-संग्रह- कितने बजे हैं, बबूल और कैक्टस, घर-परिवेश, छोटे-छोटे सुख,
यात्रा-वर्णन- तना हुआ इंद्रधनुष, भोर का सपना, पड़ोस की खुशबू;
आत्मकथा- सहचर है, समय, फुरसत के दिन,
संस्मरण- स्मृतियों के
छंद, अपने-अपने
रास्ते, एक दुनिया
अपनी
चुनी हुई रचनाएं- बूंद-बूंद नदी, दर्द की हँसी, नदी बहती है।
साथ ही मिश्र जी ने अभी
तक ग्यारह पुस्तकों की समीक्षा भी की है।
रामदरश
मिश्र जी की एक कविता
आज धरती पर झुका आकाश तो अच्छा लगा
सिर किये ऊँचा खड़ी है घास तो अच्छा लगा
आज फिर लौटा सलामत राम कोई अवध में
हो गया पूरा कड़ा बनवास तो अच्छा लगा
था पढ़ाया मांज कर बरतन घरों में रात-दिन
हो गया बुधिया का बेटा पास तो अच्छा लगा
लोग यों तो रोज़ ही आते रहे, आते रहे
आज लेकिन आप आये पास तो अच्छा लगा
क़त्ल, चोरी, रहज़नी व्यभिचार से दिन थे मुखर
चुप रहा कुछ आज का दिन ख़ास तो अच्छा लगा ।
सिर किये ऊँचा खड़ी है घास तो अच्छा लगा
आज फिर लौटा सलामत राम कोई अवध में
हो गया पूरा कड़ा बनवास तो अच्छा लगा
था पढ़ाया मांज कर बरतन घरों में रात-दिन
हो गया बुधिया का बेटा पास तो अच्छा लगा
लोग यों तो रोज़ ही आते रहे, आते रहे
आज लेकिन आप आये पास तो अच्छा लगा
क़त्ल, चोरी, रहज़नी व्यभिचार से दिन थे मुखर
चुप रहा कुछ आज का दिन ख़ास तो अच्छा लगा ।
ख़ून से लथपथ हवाएँ ख़ौफ-सी उड़ती रहीं
आँसुओं से नम मिली वातास तो अच्छा लगा
है नहीं कुछ और बस इंसान तो इंसान है
है जगा यह आपमें अहसास तो अच्छा लगा
हँसी हँसते हाट की इन मरमरी महलों के बीच
हँस रहा घर-सा कोई आवास तो अच्छा लगा
रात कितनी भी धनी हो सुबह आयेगी ज़रूर
लौट आया आपका विश्वास तो अच्छा लगा
आ गया हूँ बाद मुद्दत के शहर से गाँव में
आज देखा चँदनी का हास तो अच्छा लगा
दोस्तों की दाद तो मिलती ही रहती है सदा
आज दुश्मन ने कहा–शाबाश तो अच्छा लगा ।
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आपकी रचना अच्छी लगी। मेरे ब्लॉग 'बूंद-बूंद इतिहास' और 'गूंजअनुगूंज' पर आपकी प्रतीक्षा है।
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक बधाई बधिया प्र्स्तुति राम दरश जी से परिचय कराने का धन्यवाद्।
ReplyDeleteअच्छी लगी आपकी रचना| राम दरश जी से परिचय कराने का धन्यवाद्।
ReplyDeleteमिश्र जी की जीवनी प्रकाश तो अच्छा लगा।
ReplyDeleteजो प्रकाशित की गजल यह खास तो अच्छा लगा।
दिनेश जी आपका आभार ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया....
ReplyDeleteमिश्र जी को मैंने काफी पढ़ा है...
दोस्तों की दाद तो मिलती ही रहती है सदा
आज दुश्मन ने कहा–शाबाश तो अच्छा लगा ।
ये मेरा पसंदीदा शेर है...
शुक्रिया.
दोस्तों की दाद तो मिलती ही रहती है सदा
ReplyDeleteआज दुश्मन ने कहा–शाबाश तो अच्छा लगा ।
bahut badhiya .....
दोस्तों की दाद तो मिलती ही रहती है सदा
ReplyDeleteआज दुश्मन ने कहा–शाबाश तो अच्छा लगा ।
सरल शब्दों में गहरे भाव उकेरे हैं उन्होंने ...!
बहुत सुन्दर ..!
श्री रामदरश मिश्र जी के व्यक्तित्व और कृतित्व की विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई।
ReplyDeleteउनकी प्रस्तुत की गई रचना शानदार है।
आभार आपका।
kitne prabuddh jano ko hum log jaan nahin paate. Ram Darash ji ko aapke lekhni ke maadhyam se jana, dhanyawaad.
ReplyDeleteश्री रामदरश मिश्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई।
ReplyDeleteप्रस्तुत रचना शानदार है,आभार|
रात कितनी भी धनी हो सुबह आयेगी ज़रूर
ReplyDeleteलौट आया आपका विश्वास तो अच्छा लगा
...श्री मिश्र जी के परिचय और उनकी उत्कृष्ट रचना पढवाने के लिये आभार....
prem ji aap gautam toli ke hain aur main apko janta bhi hoon yah baat alag hai ki aap mujhe nahin jante hain.main bihari singh ke bhaee janardan singh ka sala hoon aur sainkadon baar aapke ganv ja chuka hoon.jahan tak ram daras ji ka sawal hai to main bhi unka bahut bada murid hoon aur unki kavita 'na kisi ko dhakela na khud ko uchhala kata zindagi ka safar dhire-2;jahan aap pahunche chhalange lagakar vahan main bhi pahuncha magar dhire-2' mujhe atyadhik priya hai.
ReplyDeleteacchi jankari. kavita bahut acchhi lagi.
ReplyDeleteरामदरश मिश्र जी के विस्तृत परिचय और शानदार रचना के लिये आभार!
ReplyDeleteमिश्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए धन्यवाद .
ReplyDeleteसुन्दर रचना .
रामदरश मिश्र जी के बारे में जानकर और उनकी रचना पढकर बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार जी.
श्री मिश्र जी से परिचय बहुत सुखद है...
ReplyDeleteऔर उनकी रचना तो क्या कहने...
सिर किये ऊँचा खड़ी है घास तो अच्छा लगा
बहुत ही खास है....
सादर..
रामदरश मिश्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए धन्यवाद . पढकर बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteरामदरश मिश्र जी के विषय में जानकारी के लिए
ReplyDeleteआभार