हर देश की लड़खड़ाती राजनीति का संबल साहित्य
है- रामधारी सिंह दिनकर
प्रस्तुतकर्ता:प्रेम सागर
सिंह
कहावत है – “कोई भी व्यक्ति कितना ही पाषाण हृदय का क्यों न
हो उसके भी दिल में एक कोमल भावुकता धड़कती है।“ ऐसे ही कोमल भावों के धनी रामधारी सिंह दिनकर
एवं तत्कालीन प्रधानमंत्री पं..जवाहरलाल नेहरू का कवि सम्मेलनों में विशेष अभिरूची
रहती थी। एक बार पं. जवाहरलाल नेहरू के प्रयासों से कवि सम्मेलन शुरू हुआ था। उस
समय राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जैसे महान रचनाकार इस सम्मेलन में शिरकत करते थे । एक बार जब कवि समेम्लन
आयोजित किया गया और काव्यपाठ के बाद जब समापन की बेला आई, उस समय पं. नेहरू और
दिनकर जी अपने साथियों के साथ वापस लौट रहे थे ।
लौटते समय दिनकर जी अपने मित्रों के साथ आगे थे और पं. नेहरू उनके पीछे।
सीढ़ियों से उतरते वक्त अचानक नेहरू जी का पैर फिसला और वे गिरते, इससे पहले ही उन्होंने
दिनकर जी के कंधे पर हाथ रख दिया। आभार व्यक्त करते हुए पं. नेहरू जी ने कहा- “दिनकर जी शुक्रिया, आज आपके कारण ही मैं हादसे
का शिकार होते - होते बच गया।“
मैत्री के भाव में दिनकर ने मुस्कराते हुए जवाब दिया- “कोई बात नही पंडित जी, जब-जब किसी देश की
राजनीति लड़खड़ाती है, साहित्य उसे सहारा देता है। साहित्य का धर्म है कि वह समाज
को सही दिशा की ओर उन्मुख करे। गौरतलब है कि रूस के साम्यवादी आंदोलन से लेकर
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम तक में साहित्यकारों ने समाज को जाग्रत और आंदोलित करने
में बड़ी भूमिका निभाई। यह भी की कई पुस्तकें इसलिए तत्कालीन तानाशाह सरकारों ने
जब्त कर लीं क्योंकि उनकी सामग्री न गलत दिशा में चली राजनीति को ठीक करने वाली
थी, अपितु उसके माध्यम से समाज को भी सही दिशा की ओर जाने के संकेत दिए गए थे। यह
सुनते ही पंडित जी मुस्करा दिए और दिनकर जी का हाथ पकड़ कर साथ-साथ चलने लगे।
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बहुत प्यारा संस्मरण.....
ReplyDeleteदिनकर जी ने बहुत अच्छा जवाब दिया...जबकि राजनीति से इतर नेहरु खुद अच्छे लेखक थे.
आभार इस प्यारी पोस्ट के लिए.
सादर
अनु
बहुत प्रेरक और सारगर्भित संस्मरण...
ReplyDeleteसार्थक भाव प्रेरक स्मरण,,,,के लिए प्रेम सरोवर जी बधाई,,,
ReplyDeleteRECENT POST ...: जिला अनुपपुर अपना,,,
रोचक संस्मरण
ReplyDeleteबढिया
24 karet sahi baat .sahity hi samaj ko sahi disha pradan karta hai kyonki sahity shabd ka tatpary hi hai -jo hitkari hai .rochak sansmaran .aabhar
ReplyDeleteधन्यवाद ।
ReplyDeleteसाहित्य अपना कर्म निश्चय ही निभायेगा।
ReplyDeleteदिनकर जी की याद दिलाने के लिए आभार आपका ...
ReplyDeleteबहुत प्रेरक और सारगर्भित संस्मरण के लिए आपका आभार
ReplyDeleteपं. नेहरू जी ने कहा- “दिनकर जी शुक्रिया, आज आपके कारण ही मैं हादसे का शिकार होते - होते बच गया।“
ReplyDeleteमैत्री के भाव में दिनकर ने मुस्कराते हुए जवाब दिया- “कोई बात नही पंडित जी, जब-जब किसी देश की राजनीति लड़खड़ाती है, साहित्य उसे सहारा देता है। साहित्य का धर्म है कि वह समाज को सही दिशा की ओर उन्मुख करे।
निर्भीक कथन
kaash ki aaj sahitya fir sey itna shaktishali ho jaye ki rajnaitik vyavsha badal jaye
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