एक नया
अनुभववव
(हरिवंश राय बच्चन)
प्रस्तुतकर्ता: प्रेम सागर सिंह
मैनें चिड़िया से कहा, मैं तुम पर एक
कविता लिखना चाहता हूँ।
चिड़िया नें मुझ से पूछा, 'तुम्हारे शब्दों में
मेरे परों की रंगीनी है?'
मैंने कहा, 'नहीं'।
'तुम्हारे शब्दों में मेरे कंठ का संगीत है?'
'नहीं।'
'तुम्हारे शब्दों में मेरे डैने की उड़ान है?'
'नहीं।'
'जान है?'
'नहीं।'
'तब तुम मुझ पर कविता क्या लिखोगे?'
मैनें कहा, 'पर तुमसे मुझे प्यार है'
चिड़िया बोली, 'प्यार का शब्दों से क्या सरोकार है?'
एक अनुभव हुआ नया।
मैं मौन हो गया!
कविता लिखना चाहता हूँ।
चिड़िया नें मुझ से पूछा, 'तुम्हारे शब्दों में
मेरे परों की रंगीनी है?'
मैंने कहा, 'नहीं'।
'तुम्हारे शब्दों में मेरे कंठ का संगीत है?'
'नहीं।'
'तुम्हारे शब्दों में मेरे डैने की उड़ान है?'
'नहीं।'
'जान है?'
'नहीं।'
'तब तुम मुझ पर कविता क्या लिखोगे?'
मैनें कहा, 'पर तुमसे मुझे प्यार है'
चिड़िया बोली, 'प्यार का शब्दों से क्या सरोकार है?'
एक अनुभव हुआ नया।
मैं मौन हो गया!
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bahut sundar bimb ke sath sundar kavita..
ReplyDeleteआपकी प्रतिक्रिया अच्छी लगी । धन्यवाद ।
Deleteप्यार की एक नयी परिभाषा.
ReplyDeleteशनै शनै बच्चन जी की सभी कविताओं से आप परिचय करा रहे हैं, आभार !
मेरे पिछले पोस्ट को भी देंखे । धन्यवाद ।
Delete'प्यार का शब्दों से क्या सरोकार है?'
ReplyDeleteएक अनुभव हुआ नया।
मैं मौन हो गया!
बच्चन जी की रचनाओं से परिचय कराने के लिए आभार,....
प्रेम को एक नयी परिभाषा दे गया चिड़िया और कवि का संवाद ..!
ReplyDeleteसाहित्य सागर से अनमोल मोती चुनकर हम तक पहुचाने के लिए आपका आभार....
ReplyDeleteआपकी प्रतिक्रिया अच्छी लगी । धन्यवाद ।
Deleteचिड़िया बोली, 'प्यार का शब्दों से क्या सरोकार है?'
ReplyDeleteमतलब प्यार
प्यार है ।
आभार ।।
शब्द-शब्द में सुंदर भाव...
ReplyDeleteआपकी प्रतिक्रिया अच्छी लगी । धन्यवाद ।
Deleteबिलकुल सही..
ReplyDeleteहम गुलाब की सुंदरता पर मुग्ध होते हैं और उस सुंदरता का वर्णन पंखुड़ियों में, रंगों में, खुशबू में करने लगते हैं.. किसी ने अगर सचमुच गुलाब की सुंदरता देखी होती तो बयान ही नहीं कर पाता.. बच्चन जी की यह रचना ईमानदारी से भरी और भावनाओं से सजी है!!
आपने अपनी टिप्पणी देकर इस कविता की सुंदरता में चार चाँद लगा दिया है । धन्यवाद ।
Deleteबच्चन जी की रचनाओं से परिचय कराने के लिए आभार,...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति,मन को प्रभावित करती सुंदर रचना,.....
MY RECENT POST.....काव्यान्जलि.....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
शब्दों के लिये इतना श्रंगार ढोना सच में कठिन हो जाता है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता..सुबह की धूप जैसी !
ReplyDeleteशब्द-शब्द में सुंदर भाव...प्रभावित करती सुंदर रचना,.....
ReplyDeleteचिड़िया बोली, 'प्यार का शब्दों से क्या सरोकार है?'
ReplyDeleteएक अनुभव हुआ नया।
मैं मौन हो गया!
....बिलकुल सच...एक सुन्दर रचना पढवाने के लिये आभार....
बहुत ही विचारोत्तेजक कविता है यह।
ReplyDeleteसूचनार्थ: ब्लॉग4वार्ता के पाठकों के लिए खुशखबरी है कि वार्ता का प्रकाशन नित्य प्रिंट मीडिया में भी किया जा रहा है, जिससे चिट्ठाकारों को अधिक पाठक उपलब्ध हो सकें।
ReplyDelete'प्यार का शब्दों से क्या सरोकार है?'
ReplyDeleteएक अनुभव हुआ नया।
मैं मौन हो गया!
मन को छूते हुए भाव कविता के ...आपका इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए आभार ।
बेहतरीन..
ReplyDeleteमैनें कहा, 'पर तुमसे मुझे प्यार है'
चिड़िया बोली, 'प्यार का शब्दों से क्या सरोकार है?'
एक अनुभव हुआ नया।
मैं मौन हो गया!
बहुत खूब....
अंतिम पंक्तियों ने दिल छु लिया....
ReplyDelete'प्यार का शब्दों से क्या सरोकार है?'……मौन मे ही तो प्रेम भासता है
ReplyDeleteवंदना जी सच ही कहा है आपने कि मौन में ही प्रेम का वास्तविक स्वरूप और रंग खिलते रहता हऐ। । आपकी प्रतिक्रिया अच्छी लगी । धन्यवाद ।
Deleteआपकी प्रतिक्रिया अच्छी लगी । धन्यवाद ।
ReplyDeleteअद्भुत रचना प्रस्तुत की है आपने प्रेम जी...वाह...
ReplyDeleteनीरज
चिड़िया बोली, 'प्यार का शब्दों से क्या सरोकार है?'
ReplyDeleteएक अनुभव हुआ नया।
मैं मौन हो गया!....bachchan ji ki umda rachna padhwane ke liye punh aabhar...