हिंदी
मानस की सीता है तो साकेत की उर्मिला भी
प्रस्तुतकर्ता : प्रेम सागर सिंह
(प्रेम सरोवर)
भाषा एक माध्यम भर
नही है, वह मनुष्य की समूची विकास परंपरा है । उसकी संपूर्ण संस्कृति की भारसाधक
और आधारभूत शक्ति का नाम भाषा होता है। भाषा के माध्यम से मनुष्य अपनी, अपने युग
की, अपने परिवेश की तमाम आशाओं, आकांक्षाओं, उपलब्धियों, प्रवृतियों, सफलताओं, असफलताओं
को सँजोकर ही नही रखता, वल्कि अतीत की स्मृतियों और भविष्य की नीहारिकाओं को भी
अनुभव करता है। भाषा एक भौतिक माध्यम भर नही है।वह विचारों और अनुभवों के
ताल-मेल से निर्मित एक जीवनचर्या भी है। हिंदी की ग्राह्यता और सरलता को फिल्मों के
माध्यम से भी अनुभव किया जा सकता है। हिंदी फिल्मों के गानों ने तो भारत के
कोने-कोने में अपनी पैठ बना ली है। हिंदी भारत की अस्मिता की अभिव्यक्ति ही नही
है, वह भारतीय अस्मिता को संरक्षित करने वाली भाषा भी है। आज इस बात को बहुत ही
गहराई से अनुभव किया जा रहा है कि जब अंग्रेजी भाषा ने हमें भारतीय संस्कारों से
अलग-अलग कर दिया है तो एसे समय में यदि किसी भाषा में भारतीय संस्कारों को सुदृढ़ ऱखने
व उन्हे युगानुरूप विकल्प देने की क्षमता है, तो वह भाषा हिंदी ही है, क्योंकि उसे
अपनी विकास यात्रा में समूचे देश की समूची संस्कृति को अपनी अस्मिता में समेटा है
। आज यह यथार्य बन कर उभर रहा है कि देश की भाषाओं में और विश्व की और भाषाओ में
भारत की हिंदी एक ऐसी प्रसिद्धि प्राप्त करती जा रही है जो सभी को अपने रंग में रंगती
जा रही है। परिणामस्वरूप, आज विश्व में एक ऐसा माहौल बन गया है कि झटपट हिंदी
सीखो, जल्दी से जल्दी अपना काम हिंदी में करो और अपना रोजगार आगे बढ़ाओ। आज सरकारी
हिंदी विकास की वह गति नही पकड़ रही है जिसका पिछले कई वर्षों से इंतजार हो रहा है और जनता की
हिंदी जाग रही है तथापि यह भी तो यथार्थ जानना चाहिए कि हिंदी के लिए राष्ट्रीयसहयोग
किस सीमा तक का है । जनता ने हिंदी को राष्ट्रभाषा का स्थान दिया है। साथ-साथ हिंदी आज से ही नही,
ठेठ मध्य-काल से संपर्क भाषा है । देश के किसी भी क्षेत्र में चले जाएं, वहां अपनी
मातृभाषा काम न कर रही हो, तब इस टूटी-फूटी अंग्रेजी का प्रयोग करते, या कर लेते
हैं । लेकिन अधिकांश लोगों के लिए आज भी हिंदी सहज स्वभाविक -भाषा है ही । बातचीत
के संबंध में लेखन में टूटी - फूटी भाषा आज समूचे राष्ट्र में व्यवहार में है।
कहने का अभिप्राय है कि जो काम शासन, संविधान नही कर पाया वह जनता ने कर दिखाया।
भविष्य में हिंदी राजसत्ता के सिंहासन पर बैठेगी तो जनता के द्वारा ही न कि शासन
के द्वारा । हिंदी के जितने भी मठाधीश हैं, वह सभी अपने-अपने मठों में बैठकर हिंदी
के नाम की दुकानें चला कर सिर्फ अर्थ अर्जन कर रहे हैं तथा ऐसे मठाधीश ही हिंदी के
लिए हमेशा घड़ियाली आँसू बहाते नही थकते हैं। अब जरूरत है कि ऐसे लोग अपना नजरिया
बदलें, अन्यथा वह दिन दूर नही जब जनता इन मठाधीशों को रद्द कर देगी । आज आम जनता
की हिंदी बड़ी ही द्रुत गति से विकास की ओर अग्रसर हो रही है। हिंदी समाचार के
जितने चैनेल हैं, अंग्रेजी चैनलों के लिए उतने दर्शक भी नही हैं। कल तक हिंदी का
स्थान साहित्य की भाषा के तौर पर सर्वाधिक था। देश के ज्यादातर क्षेत्रों में
हिंदी मे लेखन, साहित्य सृजन होता रहा है। तथापि एक संपर्क भाषा भी तो यही भाषा थी. ठेठ अमीर खुसरो के काल से।
लेकिन “मेकाले” ने ठीक इसका उल्टा कर दिया । लार्ड मेकाले को गुलामी की जरूरत थी एवं गुलाम
तभी बन सकते हैं, जब आप उनकी भाषा तथा उनकी संस्कृति का आमूल विनाश कर दें । वही
कार्य मेकाले ने किया तथा आजादी के करीब 64 सालों तक आज के “काले मेकाले” इसे करते आ रहे हैं । लेकिन आज वैश्वीकरण के जो
भी लाभ-हानि हो इससे हिंदी का तो भला ही हो रहा है । आज हिंदी के धांसूपन की नींव
आज के इस वैश्वीकरण के विज्ञापनों से हो रही है । हिंदी का विज्ञापन कई हजारों में
बिकता है तो अंग्रेजी के विज्ञापन को कोई एक सौ रूपया देने को तैयार नही । इसीलिए
आज चीन जापान भी हिंदी सीखने के लिए तैयार हो रहे हैं । दूसरी ओर
अमेरिका के राष्ट्रपति बाराक ओबामा ने यहां तक घोषणा कर दी है कि अपने उत्पाद को बेचने के लिए फटाफट हिंदी को
सीख लो ,क्योंकि विश्व में भारत से दूसरा बड़ा बाजार कहीं नही है .हमारे हिंदी के
मठाधीश कितना भी जोर जोर से चिल्ला कर कह रहे है कि हिंदी की दुर्दशा हो रही है, हिंदी
मर रही है, किंतु यथार्थ ठीक इसके विपरीत है। आज प्रत्येक राज्य से हिंदी के अखबार
तथा पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं । “वार्ता” एक
ऐसी पत्रिका है जो आंध्र प्रदेश के प्रत्येक
जिले से प्रकाशित हो रही है। भारत का फिल्म उद्योग इसी भाषा के बल पर दिन प्रतिदिन
विश्व में अपनी पहचान बनाते जा रहा है । यहां फिल्म के लेखक ,कवि, पटकथा लेखक,
नायक-नायिकाएं छोटे-बड़े पात्र तथा हजारों की तादाद में काम करने वाले मजदूरों के
संवाद का माध्यम हिंदी ही है। जब इन फिल्मों को पर्दे पर दिखाया जाता है तो सारा
भारत एक हो जाता है और भाषाई एकता का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत होता है । इस प्रकार
यह कहना समीचीन होगा कि आज के वैश्विक वातावरण में हिंदी भाषा केवल साहित्य की भाषा न रहकर यह भाषा
उद्योगों की भाषा बन गयी है। अत: हम कह सकते है कि हिंदी भाषा एक वैश्विक उद्योग क्षेत्र की भाषा बन कर अपने
साहित्यकारों के साथ आगे बढ़ती जा रही है । इसके साथ-साथ हिंदी का महत्व, हिंदी की
उपयोगिता, हिंदी की राष्ट्रीयता भारतीय संस्कारों से संपन्न संस्कृति का भी स्वागत
हो रहा है । यह सब हिंदी और भारत की क्षेत्रीय भाषाओं के कारण ही है। हिंदी
स्वभाविक संवर्द्धन की भाषा है। जब-जब इसके ऊपर राजकीय अनाचारों का शिकंजा कसा, तब-तब
महत्तम काव्यों की रचना हुई।“पृथ्वीराज रासो”,“आल्हा खंड, “पद्मावत”, “रामचरित मानस”,“सूर का भ्रमर गीत” और
“कबीर का दोहा”,“रीतिकाल की विरूदावली”,“द्विवेदी-युग का इतिवृत्तात्मक साहित्य” और “भारत भारती का प्रलाप” और
“छायावाद की अमूर्त
चेतना” इसका उदाहरण है। इतिहास
साक्षी है कि हिंदी सर्वदा संघर्षों से खेलने वाली भाषा रही है। यह नही जानती हार
मानना । यह केवल जन की ही नही, जन-जन की भाषा है। इसीलिए भारतीय उद्योग की समग्र-समर्थ
भाषा भी आज हिंदी ही है क्योंकि हिंदी को अपने विकास के लिए किसी प्रकार के प्रलेप
की जरूरत नही है। यह स्वयं चिनगारी है । हिंदी का विकास इसकी विशिष्ट जिजीविषा का
वह लेख है, जो दूसरी भाषाओं के सामने घनघोर तिमिर के बीच एक ज्योति कलश बन कर
उपस्थित हो जाती है। यह कहना समीचीन होगा कि अब इक्कीसवीं सदी में हिंदी भाषा अपनी
प्रतिभा और बल बूते पर तीव्र गति से आगे बढ़ती जा रही है और बहुत ही जल्द मठाधीशों
की गुलामी से मुक्त होकर समस्त भारत को एकता के सूत्र में बांधने वाली साबित होगी ।
इसे भारत के संसद भवन में या संविधान में प्रशासकीय तौर पर राष्ट्रभाषा की हैसियत
मिले या न मिले यह बात तो अलग है लेकिन राष्ट्रीयता के परिप्रेक्ष्य में भारत में
या विदेशों में गंगा के गौरव के समान ही राष्ट्रीय गौरव का रूप ग्रहण कर भारत की
हिंदी भाषा की राष्ट्रीय बुलंदी के साथ अभिवृद्धि हो रही है । हिंदी एक भाषा का
नाम नही है। अनेक विद्वानों की अपनी व्याख्या रही है कि हिंदी खेत से गांव लौटते
बैलों की घंटी का स्वर है, जिसे सुनकर धनिया घर से देहरी पर आ जाती है और अपने
सामने होरी को पाकर सब कुछ पा लेने की गरिमा से भर जाती है । यह कदंब के पेड़ से
गुंजरित बाँसुरी का वह पावन निनाद है जिसे सुनते ही गोपियां घर का सारा काम छोड़
कर उसी कदंब के पेड़ की ओर दौड़ती चली जाती हैं । इसके साथ-साथ यह यह सबरी की
तपस्या है ,सुहाग की बिंदी है, आम्रपाली की थिरकन एवं चित्रलेखा की प्रतूलिका भी
है । अंत में, यह मानस की सीता है, तो साकेत की उर्मिला भी तो यही है ।
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हिंदी तन मन प्राण, राष्ट्र की मंगल-रेखा |
ReplyDelete'हिंदी तन मन प्राण, राष्ट्र की मंगल-रेखा |'
ReplyDelete- समर्थन करती हूँ !
धन्यवाद
Deleteउत्कृष्ट विवेचना...
ReplyDeleteमन को सुकून देता लेख ...आम लोग हिन्दी के महत्त्व को समझें ...
ReplyDeleteआपकी उपस्थिति से मेरा मनोबल बढ़ा है । धन्यवाद ।
Deleteसार्थकता लिए हुए सटीक लेखन ...आभार ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सार्थक सटीक आलेख ,..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteMY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
गहरे तथ्यों को रेखांकित करता सुंदर आलेख...
ReplyDeleteसादर...
आपका मेरे पोस्ट पर अपनी प्रतिक्रिया देना अच्छा लगा । धन्यवाद
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteaisaa khoobsoorat vivran saajah karne ke liye shukriya!
ReplyDeleteआपके आगमन से मुझे एक नई ऊर्जा मिली है । धन्यवाद ।
Deleteसही कहा हिन्दी हमारे प्राण है और हमारी पहचान है..बहुत सुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आलेख
ReplyDeleteरविकर जी,
ReplyDeleteआप बहुत जल्द ही कुछ लिख डालते हैं जो बहुत अच्छा लगता है । धन्यवाद ।
बहुत अच्छी प्रस्तुति,......
ReplyDeleteMY RECENT POST,,,,फुहार....: बदनसीबी,.....
सुंदर विवेचना...आभार
ReplyDeleteखुबसूरत व समीचीन सृजन के लिए साधुवाद जी......
ReplyDeletesabhi rachnayen padhi sab acchi lagi......
ReplyDeleteहिंदी हमारा प्राण है..सुंदर आलेख..
ReplyDeleteसार्थक आलेख !
ReplyDeleteहिंदी हमारा प्राण है..सार्थक आलेख..
ReplyDeleteAaj hindi bhasha apna astitva khoti ja rahi hai.....
ReplyDeleteIndia Darpan par aakar apne vichar dene ke liye aabhar.
आभार..
ReplyDeletelog kuchh bhi kahen lekin main aapki baat se sahmat hun. beshak angrezi ko mahatv diya jata raha ho lekin hindi fir bhi sarvopari rahegi. ek bar ko ham english ko business/office language kah sakte hain lekin hame man hi man ye manNa hi padega ki bina hindi k ham goonge hain ya apni bat ki abhivyakti poorn roop se nahi kar pate. aaj bhi english song ki bajaye hindi song hi pasand kiye jate hain. theaters me english ki bajaye hindi movie jyada dekhi jati hain.
ReplyDeletesunder man ko khushi deta hua lekh. aabhar.
हिन्दी के शब्दों में कुछ तो बात होती है जिसकी वज़ह से वो सीधे अन्तर्मन को झिंझोर के रख देते हैं। आज के युवावर्ग से अपील है कि वे हिन्दी के महत्व को समझें।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक लेख ...
सर मैने ब्लोग के संसार में अभी अभी कदम रखा है
मेरे ब्लोग पर पधारें....स्वागत है
इसकी पावन धारा को तेज़ करने में ब्लॉगजगत भी योगदान कर सकता है। कई ऐसे लोग यहां हैं जो कहते हैं कि उनकी हिंदी इसलिए अच्छी नहीं है कि वे अंग्रेज़ी की पृष्ठभूमि से हैं। समझ में नहीं आता कि ऐसे लोगों के लिए टूटी-फूटी हिंदी में लिखना क्यों ज़रूरी है। कोई अंग्रेज़ी को इतने भ्रष्ट तरीक़े से लिख के दिखाए,उपहास उड़ते देर नहीं लगेगी। हिंदी में सब चलता है। इसलिए,वास्तविक खतरा हिंदी को ही है। केवल बड़ी-बड़ी बातें करने से नहीं होगा,काम होना चाहिए।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआप प्रभावित करते हैं ...
ReplyDeleteशुभकामनायें !
बहुत ही बेहतरीन विवेचना की है आपने...
ReplyDeleteउत्कृष्ट आलेख...