रात आधी, खींच कर
मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।
(हरिवंश
राय बच्चन)
प्रस्तुतकर्ता
: प्रेम
सागर सिंह
रात
आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।
फ़ासला
था कुछ हमारे बिस्तरों में
और
चारों ओर दुनिया सो रही थी,
तारिकाएँ
ही गगन की जानती हैं
जो दशा
दिल की तुम्हारे हो रही थी,
मैं तुम्हारे पास होकर दूर
तुमसे
अधजगा-सा और अधसोया हुआ सा,
रात आधी, खींच कर मेरी हथेली
एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।
अधजगा-सा और अधसोया हुआ सा,
रात आधी, खींच कर मेरी हथेली
एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।
एक
बिजली छू गई, सहसा जगा मैं,
कृष्णपक्षी
चाँद निकला था गगन में,
इस तरह
करवट पड़ी थी तुम कि आँसू
बह रहे
थे इस नयन से उस नयन में,
मैं
लगा दूँ आग इस संसार में है
प्यार
जिसमें इस तरह असमर्थ कातर,
जानती
हो, उस समय क्या कर गुज़रने
के लिए
था कर दिया तैयार तुमने!
रात आधी, खींच
कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।
प्रात
ही की ओर को है रात चलती
औ’ उजाले
में अंधेरा डूब जाता,
मंच ही
पूरा बदलता कौन ऐसी,
खूबियों
के साथ परदे को उठाता,
एक चेहरा-सा लगा तुमने लिया था,
और मैंने था उतारा एक चेहरा,
वो निशा का स्वप्न मेरा था कि अपने पर
ग़ज़ब का था किया अधिकार तुमने।
रात
आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।
और
उतने फ़ासले पर आज तक सौ
यत्न
करके भी न आये फिर कभी हम,
फिर न
आया वक्त वैसा, फिर न मौका
उस तरह
का, फिर न लौटा चाँद निर्मम,
और अपनी वेदना मैं क्या बताऊँ,
क्या
नहीं ये पंक्तियाँ खुद बोलती हैं--
बुझ नहीं पाया अभी तक उस समय जो
रख दिया था हाथ पर अंगार तुमने।
रात
आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।
**********************************************************************************************************************
कृष्णपक्षी चाँद निकला था गगन में,
ReplyDeleteइस तरह करवट पड़ी थी तुम कि आँसू
बह रहे थे इस नयन से उस नयन में,
अद्भुत दृश्यात्मकता है इस कविता में...
डॉ. शरद सिंह जी, आपके आगमन से मेरा मनोबल बढ़ा है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ..............
ReplyDeleteबच्चन जी की ये रचना रूमानियत से लबरेज है..........
मुझे बहुत पसंद है....
शुक्रिया सर
सादर.
मेरा चयन आपको अच्छा लगा, मेरे लिए यही काफी है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबच्चन जी कि कविता पढवाने के लिए आभार आपका ....!!
ReplyDeleteसार्थक प्रयास जरी रहे .....
शुभकामनायें ...!!
एक बिजली छू गई, सहसा जगा मैं,
ReplyDeleteकृष्णपक्षी चाँद निकला था गगन में,
इस तरह करवट पड़ी थी तुम कि आँसू
बह रहे थे इस नयन से उस नयन में,
बहुत सुंदर प्रस्तुति,..
बच्चन जी की कविता पढवाने के लिए,..आभार
MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....
कालजयी रचना को प्रस्तुत करने का आभार..... ये तो ऐसी रचनाएँ हैं जिन्हें जितनी बार पढो हर बार नया एहसास.
ReplyDeleteआभार ||
ReplyDeleteसरल शब्द में बंध रहा, प्रेम-सरोवर-चाँद ।
खड़ी थी ऊंची रूढ़ियाँ, कैसे जाये फांद ।।
उच्च रूढ़ियाँ थीं खड़ी, कैसे जाये फांद ।।
Deleteएक अनपढ़ी पर उत्कृष्ट रचना पढ़वाने का आभार..
ReplyDeleteप्रेम और समर्पण की पराकाष्ठा ...हमेशा से ही हमारी पसंदीदा कविताओं में से रही है ......आभार इसे पुन: याद दिलाने के लिए ...!
ReplyDeleteकृष्णपक्षी चाँद निकला था गगन में,
ReplyDeleteइस तरह करवट पड़ी थी तुम कि आँसू
बह रहे थे इस नयन से उस नयन में,
इन पंक्तियों के भाव ... नि:शब्द कर गए ..आभार आपका इस उत्कृष्ट रचना को पढ़वाने के लिए ।
शानदार गहन भावपूर्ण प्रस्तुति.
ReplyDeleteपढवाने के लिए आभार ,प्रेम जी.
उस तरह का, फिर न लौटा चाँद निर्मम, .आभार आपका बच्चन जी की कविता उत्कृष्ट रचना को पढ़वाने के लिए ।
ReplyDeleteवाह...बहुत सुन्दर, सार्थक और सटीक!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बच्चन जी की एक अनुपम रचना पढवाने के लिये आभार...
ReplyDeleteबच्चन जी की एक उत्कृष्ट रचना प्रस्तुति के लिये आभार!
ReplyDeleteधन्यवाद ।
Deleteअद्भुत भाव से भरी बच्चन जी की रचना के लिए आपका बहुत-बहुत आभार...
ReplyDeleteधन्यवाद ।
Deleteएक बेहद रोचक गीत।
ReplyDeleteकविवर हरिवंश राय बच्चन जी की बेहतरीन रचना प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद ....
ReplyDeleteधन्यवाद ।
Deleteऔर उतने फ़ासले पर आज तक सौ
ReplyDeleteयत्न करके भी न आये फिर कभी हम,
फिर न आया वक्त वैसा, फिर न मौका
उस तरह का, फिर न लौटा चाँद निर्मम,
ये पंक्तियाँ खुद बोलती हैं
बेहतरीन रचना प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद
बच्चन जी एक अत्यंत खूबसूरत कविता से रूबरू कराया आपने बहुत शुक्रिया.
ReplyDeleteधन्यवाद ।
Deletebachchan ji ki yeh kavita kai baar padhi maine har baar utni hi achhi lagti hai.ek baar aur padhvaane ka aabhar.
ReplyDeleteबच्चन जी की अत्यंत खूबसूरत कविता के लिए आपका बहुत-बहुत आभार.......
ReplyDeleteआज कितने दिनों के बाद आपके सौजन्य से बच्चन जी की यह बेहद प्रभावी एवं अप्रतिम रचना पुन: पढ़ने का सुअवसर मिला है ! आपका बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद प्रेम सरोवर जी ! अत्यंत कोमल संवेदनाओं से परिपूर्ण बच्चन जी की यह रचना मेरी बहुत ही प्रिय रचनाओं में से एक है !
ReplyDeleteहरिवंशराय बच्चन जी की इतनी खूबसूरत रचना आपने पढवाई और मैने पेहली बार पढी । इतनी कोमल भावनाओं का इतना सूक्ष्म
ReplyDeleteचित्रण, बहुत ही अचछी लगी आपका बहुत आभार ।
बच्चन जी की ये कविता...बच्चन रिसाइट्स बच्चन में अमिताभ के मुख से सुनी थी...इस रचना को पुनर्जीवित करने के लिए...धन्यवाद...
ReplyDeleteधन्यवाद ।
Deletephir se padhwane ke liye aabhar.. bahut sudnar...
ReplyDeleteराय साहेब, आपके आगमन से मेरा मनोबल बढ़ा है । धन्यवाद ।
Deleteप्रात ही की ओर को है रात चलती
ReplyDeleteऔ’ उजाले में अंधेरा डूब जाता,
मंच ही पूरा बदलता कौन ऐसी,
खूबियों के साथ परदे को उठाता,
बहुत सुंदर ! आभार इस कविता की प्रस्तुति के लिये !
वाह वाह .. क्या बात है // मेरा भी कविता देखना दोस्तों एक बार कम से कम www.shabbirkumar.co.cc में खोले
ReplyDeleteशोभा चर्चा-मंच की, बढ़ा रहे हैं आप |
ReplyDeleteप्रस्तुति अपनी देखिये, करे संग आलाप ||
मंगलवारीय चर्चामंच ||
charchamanch.blogspot.com
धन्यवाद रविकर जी ।
ReplyDeleteनिशब्द....
ReplyDelete