Monday, January 21, 2013

किशोर कानून


किशोर न्याय कानून में परिवर्तन की मांग


                                                        
                                                       प्रेम सागर सिंह

दिल वालों की दिल्ली में तेईस वर्षीय छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना ने देश को हिला कर रख दिया है। ऐसा नही है कि सामूहिक बलात्कार की यह पहली घटना हुई है। सामूहिक बलात्कार की घटनाएं देश में लगातार बढ़ रही हैं। लेकिन प्रशासन और पुलिस की लापरवाही से समाज का गुस्सा चरम पर पहुंच गया है। इसलिए दिल्ली में हुई इस घटना का गुस्सा पूरे देश में फूटा। यह कहा जा सकता है कि पिछले वर्षों में इस तरह की कई घटनाएं हुई हैं जिसके कारण जनता का गुस्सा बढ़ रहा है। अण्णा के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में जिस प्रकार देश भर में लोग सड़कों पर आ गए थे, उसकी पुनरावृति सामूहिक बलात्कार की इस घटना के बाद दिखी। सरकार की हीला-हवाली ने जनता का गुस्सा और बढा दिया। बाबा रामदेव और अण्णा हजारे का आंदोलन सरकारी तरीको से कुचलने में सफल रहे शासक शायद यह समझते हैं कि सड़कों पर उतरने वाला मध्यवर्गीय जनता उनका मतदाता नही है। इसीलिए बलात्कार के खिलाफ उमड़े जनाक्रोश को भी उन्ही तरीकों से कुचलने की कोशिश की गई। संभवत: सत्ता के पद पर आसीन कुछ लोग यह समझते हैं कि वे गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करने वाली आबादी के बूते पर ही सत्ता में आए हैं, लेकिन यह सच नही है। आजादी के समय दो चार फीसदी मतदाता मध्यवर्गीय थे। जबकि सत्तर फीसदी से ज्यादा मतदाता गरीबी रेखा से नीचे थे। यह सरकार मध्यवर्गीय मतदाताओं के बूते पर ही सत्ता में है। इसलिए अब मध्यवर्ग की भावनाओं को समझ कर ही सत्ता में बने रहा जा सकता है।

इन हालातों को ध्यान में रखते हुए क्या प्रशासन तंत्र में आमूल परिवर्तन की जरूरत है ! क्या कानूनों में परिवर्तन की जरूरत है! क्या पुलिस तंत्र को ब्रिटिश मानसिकता से बाहर लाने की जरूरत है! सरकार और सभी राजनीतिक दलों को दलगत राजनीति से ऊपर ऊठकर इन मुद्दों पर विचार करना चाहिए। देश के बहुमत के सब्र का प्याला भर गया है।, कहीं ऐसा न हो किजनता लोकतांत्रिक व्यवस्था से अपनी आस्था समाप्त कर दे। जनता का गुस्सा इस कदर है कि बलात्कारियों में से एक की उम्र अठारह वर्ष से कम बताए जाने पर किशोर न्याय कानून में परिवर्तन की मांग उठने लगी है। गृह मंत्रालय की ओर से राज्यों के मुख्य सचिवों एवं पुलिस महानिदेशकों की बैठक में छह राज्यों ने किशोर न्याय कानून में परिवर्तन कर बालक की कानूनी आयु सीमा घटाने की सफारिष कर दी। दिल्ली सरकार अपने रा्य में आए दिन होने वाले बलात्कार की घटनाओं को रोकने में नाकाम हो रही है जिसका ठीकरा वह केंद्र सरकार के अधीन आने वाले पुलिस के सिर फोड़ती है। लेकिन जनता के गुस्से को शांत करने के लिए किशोर न्याय कानून में तय नाबाविग की आयु अठारह वर्ष से घटाकर सोलह वर्ष करन की सिफारिश सबसे पहले कर देती है।
जिन छह राज्यों में केंद्र से किशोर न्याय कानून में परिवर्तन की सफारिश की है, उनमें दिल्ली के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश, ओडिसा, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, और गोवा शामिल है। इस मामले में सभी राजनीतिक दलों का नजरिया अपरिपक्वता को ही दर्शाता है। सभी राज्य सरकारों एवं देश क राजनीतिक दलों को यह मालूम होना चाहिए कि हमने संयुक्त राष्ट्र के उस प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमे नाबालिग की आयु सीमा अठारह वर्ष मानी गई है। इसीलिए किशोर न्याय कानून में बच्चों की यही आयु सीमा रखी गई। हम दुनिया के सामने दोहरा चरित्र नही दिखा सकते। यह इतना आसान भी नही है कि हम किशोर न्याय कानून में परिवर्तन करके बच्चे की अधिकतम आयु अठारह वर्ष से घटा कर सोलह वर्ष कर दे। जो राज्य सरकारें या आंदोलनकारी ऐसी मांग कर रहे हैं, संभवत: वे इसके दूगगामी परिणाम को नही जानते। ऐसा भी नही है कि मौजूदा समस्या से आँखें मूंदी जा सकती है। कई बार ऐसा होता है कि शुरू में अपराधी की आयु पर भ्रम हो जाता है। किशोर न्याय कानून में इतना सा परिवर्तन क्यों नही किया जा सकता कि सोलह वर्ष  से ऊपर की आयु के बालक अगर बलात्कार और हत्या के आरोप में पकड़े जाते हैं. तो उन पर सामान्य कानूनों के अनुसार मुकदमा चलेगा। दुनिया के कई देशों के कानून हमारे लिए आदर्श साबित हो सकते हैं। आज यह मुद्दा हम सबके सामने एक ऐसे समय में सामने आया है जब पूरा देश इस कानून के विस्तृत संसोधन के बारे में सोच रहा है। मेरा भी मानना है कि सरकार को इस दिशा में अच्छी शुरूआत करने की जरूरत है।
                               
                                (www.premsarowar.blogspot.com)

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11 comments:

  1. बढ़िया है आदरणीय प्रेम जी ||

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  2. सच कहा आपने, संशोधन की आवश्यकता है।

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  3. अवश्य होना चाहिये और अब इसे घटाकर बारह वर्ष करना चाहिये.

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  4. भारतीय कानून 1860 में बने थे अब इन्‍हें बदलाव की आवश्‍यकता है।

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  5. आपके तर्क सही हैं किशोरों की आयु को कम करना इतना आसान नहीं...
    लेकिन प्रेम जी आजकल १८ साल के बच्चे तो हमारे बाप होते जा रहे हैं वो किशोर कहाँ रह गए.

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  6. अब तो कुछ बदलाव जरूरी है ...और सबसे जरूरी कि हम खुद को बदलें ...अपने संस्कारों को बदलें ...क्यूंकि ये दुष्कर्म करने वाले भी इंसान की औलादे ही हैं ...
    "अब तो खुद को बदलो ये इंसानों
    कोई तो नया कदम उठाओ,
    क्यूँ किसी के हांथो को देखना
    कि अब खुद ही को समझाओ।।"

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  7. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 22/1/13 को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है

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  8. क़ानून में बदलाव की आवश्‍यकता है।लेकिन क्या ये संभव है,,,,
    क़ानून बन भी गया तो क्या अपराध ख़त्म हो जायेगें,,,नही,
    इसके लिए पहले खुद को बदलना होगा,,और बच्चो को अच्छे
    संस्कार देने होगे,,,,

    WELCOME TO MY recent post : बस्तर-बाला,,,

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  9. जब पूरा देश इस कानून के विस्तृत संसोधन के बारे में सोच रहा है। मेरा भी मानना है कि सरकार को इस दिशा में अच्छी शुरूआत करने की जरूरत है।

    IT MUST BE

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  10. सहमत हूं आपकी बात से...अब सरकार को इस विषय में फिरसे मंथन करना ही होगा।।।

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  11. अवश्य....गंभीर समस्या पर सामयिक सटीक आलेख...बहुत बहुत बधाई...

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