Saturday, January 5, 2013

दिल्ली की दरिंदगी



  इतिहास को कलंकित करता दिल्ली की दरिंदगी का भयानक कृत्य

                                                      
                                                                (प्रेम सागर सिंह)
                                                    
   16 दिसंबर, 2012 का दिन भारतीय इतिहास को जिस तरह कलंकित कर गया उसका दूसरा कोई उदाहरण नही मिलता। दिल्ली में सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई लड़की को बचाया नही जा सका। उसने अपने पीछे न जाने कितने लोगों की आंखों में आंसूओं के अलावा उनके मन में ढेर सारे सवाल छो़ड़े हैं। यों ये सवाल नए नही हैं, पर शायद पहली बार इनकी गूंज हर तरफ सुनाई दे रही है। इसलिए की बलात्कार की इस घटना पर देश स्तब्ध रह गया। पर लोगों की मुखर प्रतिक्रिया के पीछे इस घटना से पहुंचे सदमें के अलावा और भी ऐसी तमाम घटनाओं पर उनका संचित रोष रहा। इन परिस्थतियों एवं वर्तमान परिदृश्य को ध्यान में ऱखते हुए मुझे मुक्तिबोध की भूल गलती कविता याद आ रही है। यही हमारी गलती गंदा लिबास पहन कर हमारे ऊपर राज कर रही है  और उसका प्रभाव ऐसा है कि अच्छे शायर, सूफी एवं भिन्न-भिन्न अखाड़ों के साधु-संत सभी खामोश हैं। उनकी यह खामोशी बहुत साल रही है, इसलिए कि जो परिस्थितियां जनता के सामने हैं, वे बहुत डराने वाली हैं। आज परिस्थितियां ऐसी हो गई है कि कभी भी किसी आदमी की बेटी, बहन, पत्नी, मां या दोस्त को उसके सामने ही ऊठाया जा सकता है, क्रूर से क्रूरतम अपराध उनके साथ सरेराह किया जा सकता है। अधुनातन और सभ्य कहा जाने वाला समाज बर्बरता के अंधेरे में जाने के लिए विवश किया जा रहा है।
 आज जब जनता के भीतर लंबे समय से पनपता असंतोष इस जघन्य घटना से हद पार करके सामने आया है तो इसे समझने के बजाय रोकने पर बल दिया जा रहा है। लाठीचार्ज, आँसू गैस और पानी की बौछार से उन्हे हटाने का प्रयास होता है। जबकि इसमें सबल पक्ष यह है कि यह जन-आक्रोश किसी राजनीति या धर्म से प्रभावित नही है। हमारे देश में गूगल के माध्यम से ढूढ़ी गई सामग्री में सनी लियोन और पूनम पांडेय के कामोत्तेजक चित्र शामिल है, वहां बलात्कार को लेकर भीड़, विशेषकर युवाओं का क्रोध निष्प्रभावी प्रतिकार ही सिद्ध होता है। सड़कों पर बलात्कारियों को फांसी पर चढ़ाने की मांग को लेकर एकत्रित भीड़ को खुद से प्रश्न करना चाहिए कि अगर दिल्ली की घटना के बलात्कारियों को फांसी पर लटका भी दिया जाए, तो क्या इससे हमारा देश भविष्य में किसी भी किस्म के बलात्कार से मुक्ति पा लेगा ! क्या दिल्ली के अपराधी जन्म से ही यौन-अपराध का प्रशिक्षण लेकर पैदा हुए थे ! उनमें जो वीभत्सता घर कर गई थी, क्या वह उनके स्वत: ज्ञान से संभव हो सका था !
 आश्चर्य इस बात पर होता है कि 16 दिसंबर को हैवानियत की चरम सीमा पार कर देने वाला सामूहिक बलात्कार भारतवर्ष की राजधानी दिल्ली की चलती सड़क पर होता है। इस दरिंदगी का भयानक कृत्य पूरे देश को हिला कर रख देता है। युवा अपनी सुरक्षा का मांग करता सड़कों पर उतर आता है, पर शायर और सूफी संवेदनशील बने न जाने कहां रह जाते हैं! फिर भी उम्मीद का दामन नही छोड़ा जा सकता। शायद आगे इस बात पर हो। आखिर उनकी और उनके बच्चों की सुरक्षा का मसला भी तो इससे जुड़ा हुआ है। अब जो हालात दिल्ली में ही नही पूरे देश में बनते जा रहे हैं, उन्होंने युवा वर्ग के साथ-साथ मातापिता को भी चिंता में डाल दिया है। अपनी लड़कियों को पढने के लिए, नौकरी के लिए बाहर भेजना खतरे से खाली नही है। देश के विभिन्न भागों से प्राय: प्रतिदिन बलात्कार की घटनाएं सुनने में आ रही हैं। और फिर यह तो कहा जाता है कि यह दिल वालों की दिल्ली है, देश की राजधानी जो इस समय शिक्षा की राजधानी भी बनी हुई है। नौकरियों के लिए बहुत सी संभावनाएं यहां बनी हुई हैं, जो दूर-दूर से युवाओं को खीचे ला रही है। देश के बड़े-बड़े नेताओं का यहां निवास है। ऐसे में यहां तो व्यवस्था चाक-चौबंद होनी चाहिए थी। बैरीकेड पर सिपाही का तैनात न होना और किसी ऐसी बस का वहां से महफूज गुजर जाना या उसका नंबर नोट करके, उससे टोल टैक्स लेकर उसे छोड़ दिए जाना, कानून-व्यवस्था और प्रशासन पर सवाल खड़े करता है।
 दिल्ली में स्त्रियों के प्रति अपराध खतरनाक तरीके से बढ़े हैं लेकिन प्रशासन की कुंभकर्णी नींद नही टूटी। दरिंदगी के इस कृत्य ने एक बार फिर भय का माहौल तैयार किया है। इस भय के दायरे में लड़कियां भी नही आती, वे युवा लड़के भी आ जाएंगे, जो अपने आप को सामंती सोच से कुछ मुक्त करते हुए अपनी महिला मित्रों के साथ समान व्यवहार करते हैं और इस तरह के हिंसक आक्रमण के दौरान उनके साथ लड़ने का हौसला भी रखते हैं।

इस संबंध में यह कहना उचित होगा कि कानून व्यवस्था एक और विचारणीय पहलू है। बलात्कार की जितनी भी घटनाएं हो रही हैं, उनमें क्या अपराधियों को सजा मिल पा रही है! लंबी कानूनी प्रक्रिया पीड़ित और उसके परिवार को मानसिक और आर्थिक, दोनों तरह से तोड़ देती है। दूसरी ओर, जघन्य अपराधी बीसों साल दबंगई की जिंदगी जीता है। उसके बाद भी कुछ होगा यह तय नही होता। इस तरह आम आदमी के सामने कानून की असहायता रोज सिद्ध होती है। अपराधियों के हौसले बुलंद है। वे कुछ भी कर गुजरने और इसके नतीजे से बच निकलने के सारे रास्ते अपनी मुठ्ठी में समझते हैं।
 आज जनता और खासकर युवा वर्ग जिस न्याय की मांग कर रहे हैं, उसके लिए हमारे यहां सही कानून व्यवस्था नही है। न्याय की स्थिति तभी बनेगी, जब नया कानून आएगा, FAST TRACK COURTS  की स्थापना होगी और ऐसे सभी मामले एक निश्चित समय-सीमा में निपटाना आवश्यक होगा। जिस तरह का दिल दहला देने वाला दुर्लभतम अपराध यह है, उसकी सजा बलात्कार के अपराध के लिए तय की गई सामान्य सजा नही हो सकती। यह सजा कम है। दूसरे, पूरी प्रक्रिया जिस तरह की है उसमें बहुत सारे मामलों में न्याय की संभावना सीमित रह जाती है। इसलिए ताजा मामले में सख्त सजा के साथ-साथ सख्त कानून और त्वरित न्याय प्रक्रिया की मांग जायज है।


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15 comments:

  1. सख्त क़ानून और FAST TRACK COURTS की स्थापना के साथ२ त्वरित न्याय से ही ऐसे अपराधों में कमी आयेगी,,,,

    recent post: वह सुनयना थी,

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  2. सारगर्भित आलेख...

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  3. विचारपूर्ण सारगर्भित पोस्ट।

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  4. सार्थक पोस्ट...
    बस जल्द न्याय मिले तो ज़रा सुकून पाए ये आहत मन...

    सादर
    अनु

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  5. सारपूर्ण लेख ..अच्छी सोच विकसित हो समाज में ..सब तबके के लोग अपराध के खिलाफ़ आवाज बुलंद करें।
    recent poem : मायने बदल गऐ

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  6. सार्थक प्रस्तुति

    दिल्ली दिल वालों की है न की दरिंदों की इन्हें विदा करो इस संसार से एक स्वर में।

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  7. प्रभावी आलेख..

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  8. सामाजिक और राजनैतिक दोनों ही व्‍यवस्‍थाएं सड गयी है।

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  9. सार्थक पोस्ट..

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  10. देस के लगभग सारे तंत्र भ्रष्ट हो गये हैं -साथ ही व्यक्ति और समाज के दोहरे नैतिक मानदंड.इनसे उबरे बिना समस्या का हन निकलना संभव नहीं!

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  11. सार्थक पोस्ट!
    अपराध सामने, अपराधी सामने ... बस! अब न्याय सही होना चाहिए!
    ~सादर!!!

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