एक बूंद
(अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध)
ज्यों निकल कर बादलों की गोद से
थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी। सोचने फिर-फिर यही जी में लगी, आह ! क्यों घर छोड़कर मैं यों कढ़ी ? देव मेरे भाग्य में क्या है बदा, मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में ? या जलूँगी फिर अंगारे पर किसी, चू पडूँगी या कमल के फूल में ? बह गयी उस काल एक ऐसी हवा वह समुन्दर ओर आई अनमनी। एक सुन्दर सीप का मुँह था खुला वह उसी में जा पड़ी मोती बनी । लोग यों ही हैं झिझकते, सोचते जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर किन्तु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें बूँद लौं कुछ और ही देता है कर । (www.premsarowar.blogspot.com) ************************************************************************** |
मेरे उस दिन न होने पर भी मेरी कविताएं तो होंगी! गीत होंगे ! सूरज की ओर मुंह किए खडा कनैल का झाड़ तो होगा!
Thursday, January 24, 2013
बचपन की एक प्रिय कविता
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(अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध)जी
ReplyDeleteकी सुन्दर रचना साझा करने के लिए आभार,,,,प्रेमसागर जी ,,,
recent post: गुलामी का असर,,,
सुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteअहा, आनन्द आ गया.
ReplyDeleteबचपन याद आ गया ...:)
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई...६४वें गणतंत्र दिवस पर शुभकामनाएं...
ReplyDeleteये कविता मुझे भी पसंद है.आभार इस प्रस्तुति का.
ReplyDeleteअति सुन्दर ,भावपूर्ण रचना ...
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