जाके परदेशवा में भुलाई गईल राजा जी
प्रस्तुतकर्ताः प्रेम सागर सिंह
भोजपुरी दुनिया में कहने के
लिए एक फैशन है कि सात समुंदर पार गए हुए गिरमिटियामजदूरों के परिवारों से रचा-बसा,
फूला-फला मारीशस आज भी भोजपुरी भाषा, संस्कार सभ्यता और संस्कृति को मारीशस में
जीवित रखा है। इसका उल्लेख करके हम अपने आप को आश्वासित कर देते हैं कि कहीं न
कहीं भोजपुरी भाषा जीवित तो है लेकिन जब हम अपने देश को ध्यान में रखते हुए इसका
विश्लेषण करते हैं तब पता चलता है कि इस भाषा की वास्तविक स्थिति क्या है एवं भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची (Eighth Schedule of the
Constitution of India) में शामिल करने की संभावना
निकट भविष्य में संभव है या नही । हम लोग अपने भाषा-मोह के कारण काल्पनिक दुनिया
में जी रहे हैं लेकिन नई पीढ़ी का हार्दिक लगाव वर्तमान समय में भोजपुरी से अलग
होता सा प्रतीत हो रहा है । अपने देश में टी.वी.का ‘महुआ” चैनेल इसे भोजपुरी का चैनेल कहता है लेकिन उस पर भोजपुरी का क्या हाल है कभी एक दो घंटे आराम से
बैठ कर देखिए तो वास्तविक स्थिति से परिचित होने में देर नही लगेगी । कुछ दिनों
पहले कौन बनेगा करोड़पति देखा तो मन को काफी दुख हुआ। भोजपुरी भाषा के नाम पर पैसा
कमाने वाले लोग इस भाषा से अलग होकर हिंदी में बातें कर रहे थे। इस शो का एंकर
भोजपुरी न बोल पाने के कारण बीच-बीच में कुछ रटा-रटाया भोजपुरी शब्द बोल देता था।
रबि किशन, निरहुआ, मनोज तिवारी जैसे लोग यदि महुआ चैनेल पर खड़ी हिंदी बोलते हैं तो इससे यह अर्थ
भी निकाला जाता है कि ये लोग भोजपुरिया लोगों को बेवकूफ बनाने के सिवाय और कुछ नही
करते हैं बल्कि भोजपुरी के नाम पर अपना रोटी सेंक रहे हैं। न जाने मन बहक सा गया एवं लीक से हट गया था जो अक्सर किसी से भी हो जाता है।
बात चल रहा था मारीशस का एवं उसी विषय पर लौट रहा हूँ। मारीशस को लघु भारत भी कहा जाता है।अपनी भाषा सभ्यता संस्कृति को आज तक थोड़ा
ही सही अक्षुण्ण बनाए रखने वाले देश के बारे में किसी लेखक ने “हिंद
महासागर में एक छोटा सा हिंदुस्तान” नामक पुस्तक भी लिखा है । भारत और मारीशस में ज्यादा अंतर नही है ,अंतर यही है कि भारत में अंग्रेजी शब्द का बहुतायत है तो वहां फ्रेंच का ।
मारीशस में क्रिओल में फ्रेंच, डच, चीनी, हिंदी, भोजपुरी आदि भाषाओं का प्रभाव
थोड़ा बहुत देखने को मिलता है लेकिन क्रिओल का भोजपुरी से सौतिया डाह पूरे विश्व
को मालूम है । इस देश में करीब एक लाख बासठ हजार टीनेजर या नवयुवक है। यहां टीनेजर
उस उम्र के लोगों को कहा जाता है जिन लोगों में टीन लगा होता है जैसे-थर्टीन,
फोर्टीन, फिफ्टीन से लेकर नाइन्टीन तक। इस“टीन” का सामाजिक महत्व अधिक है क्योंकि ये लोग उस देश की भावी पीढ़ी है एवं वहां की
कुल आबादी का आठवां हिस्सा भी हैं । एक रिपोर्ट में कभी पढ़ा था कि भोजपुरी अब
तेजी से अपना जगह छोड़ रही है एवं उसके स्थान पर क्रिओल और अंग्रेजी भाषाएं वहां
के घरों में अपना स्थान ले रही है । इसके मूल में शायद यह बात निहित रही हो कि
वहां की बिखरती पारिवारिक मूल्य, अंतर-सामुदायिक शादी और ब्याह के चलते हो सकता है
कि बाप का भाषा कुछ और हो एवं मां का कुछ और एवं अब वहां के परिवारों में क्रिओल
या अंग्रेजी का प्रयोग सहज लगने लगा हो । सच्चाई यह है कि भोजपुरी का महत्व
दिन-प्रतिदिन घटता जा रहा है एवं हम लोग इससे अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं । वर्तमान
समय में इस भाषा के विकास के लिए भोजपुरी भाषा के परचम फहराने वाले लोगों को इस
भाषा के बारे में आत्म-मंथन करना चाहिए एवं इसे साकार करने के लिए कुछ ठोस उपाय भी
करना चाहिए। उद्देश्य होना चाहिए कि इस भाषा को रोजी रोजगार का भाषा बनाना चाहिए क्योंकि
जब तक भोजपुरी भाषा ऱोजी रोजगार की भाषा नही बनती है तब तक इसके भविष्य पर अहर्निश
बदली छायी रहेगी । भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता दिलाने से अधिक जरूरत है इस भाषा
में अधिक से अधिक साहित्य की रचना, दूसरी भाषाओं से ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकों का
भोजपुरी अनुवाद तथा हर तरह का साहित्य उपलब्ध कराने का निरंतर प्रयास । मेरा अपना
विचार है कि सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के कारण आज अधिक से अधिक लोग इंटरनेट से
जुड़ रहे हैं। यदि हम इस माध्यम को अपनाते हैं तो दूर-दराज देशों में बैठे लोग भी
इससे जुड़ सकेंगे एवं उन्हें इस क्षेत्र में अपनी प्रतिभा प्रदर्शन के लिए एक सुलभ
मंच भी मिलेगा । हमें पूरा विश्वास है कि विश्व में अनेक लोग ऐसे होंगे जो भोजपुरी
जानते होंगे एवं भोजपुरिया लोगों का सामीप्य न मिलने के काऱण इससे मन से जुड़ नही
पाते हैं । गिरमिटिया मजदूरों के नाम पर विदेश ले जाने वाले लोगों ने उनके साथ
अन्याय किया, उनका शोषण किया एवं न जाने कितने जुल्मों सितम ढाहे। यदि मारीशस,
घाना, ट्रीनीडाड, क्यूबा, फीजी सूरीनाम की माटी बोल पाती तो न जाने उन अशिक्षित
निरीह लोगों की कितनी कहानियां
हमारे हमारे सामने उभर कर आई होती। मेरे गांव के कुछ ‘सहाय’ जाति के लोगों को मारीशस एवं सूरीनाम ले जाया गया एवं वे जो एक बार गए तो वहीं
के होकर रह गए। उनकी नवयौवना व्याहता पत्निया इंतजार करती रही कि आजादी के बाद
उन्हे वापस भारत आने का सौभाग्य मिल पाएगा किंतु उन दिनों सत्ता के लोलुप लोगों के
कारण यह संभव न हो सका न किसी ने इस मुद्दे पर कोई ठोस पहल ही की। मैने अपने
बाबूजी के मुंह से सुना था कि उनकी पत्निया अपनी जीविका के लिए शादी या अन्य
अवसरों पर गांव के घरों में ही गीत गाकर जो कुछ मिलता था अपने परिवार का भरण-पोषण
करती थीं। विरह की विषम वेदना से ब्यथित उन स्त्रियों को मेरे गांव के लोग आदर और
सम्मान देते थे एवं उन चार स्त्रियों को प्रत्येक जाति के लोग “उर्मिला” कह कर संबोधित करते थे। आशय था भरत एवं उर्मिला का
प्रसंग। लोगों का अपना अभिमत था कि उर्मिला भरत जी का घर के चौखट पर फूल और दिया
लेकर चौदह वर्ष तक इंतजार करती रहीं लेकिन इन लोगों ने तो चौदह वर्ष से भी अधिक
इंतजार किया। उन लोगों का प्रिय भोजपुरी गीत था –
जाके परदेशवा में भुलाई गईल
राजा जी,
सपना के झुलुवा झुलाई गईल
राजा जी . . . . .......................
उस समय इस गीत को सुनकर
संवेदनशील लोगों की आखें नम हो जाती थीं। न जाने और अपने देश के कितने लोग विदेशों
में होंगे जो आज तक गुमनामी की
जिंदगी जी रहे हैं । ऐसे लोगों के प्रति मेरी असीम श्रद्धा एवं सहानुभूति है ।
आज से लगभग १५ वर्ष पूर्व एक उपन्यास पढ़ी थी ।
ReplyDeleteजिसकी नायिका देवंती नाम की बाला थी ।
गिरमिटिया
पर एक सटीक प्रस्तुति ।
संघर्ष की दास्तान ।
बढ़िया लेख ।
शुभकामनाएं ।।
भाई जी बतलाएगें यह रामायण कब बदली ?
ReplyDeleteभरत संग उर्मिला कथा,भी अपने मन से लिखली ?
लक्षमण थे जब वन में ,उर्मिल क्या करती थी ?
लक्षमन भूल भरत के चौखट में रहती थी ?
मत बदलो इतिहास भूल यह होगी भारी
नहीं करेगी माफ कभी भी कोई नारी
kripya bharat ji ki jagah Laxman padhe. Dhanyavad
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ReplyDeleteप्रस्तुति अच्छी लगी,...प्रेम जी अपने पोस्ट में भरत की जगह लक्ष्मण सुधार करे .....
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...
Sudhar kar diya hai. kripya upar dehen.Dhanyavad.
DeleteAchchi Jankari....Dhnaywad
ReplyDeleteएक बेहतरीन पोस्ट। आंचलिक खूबियों से परिचय कराती हुई।
ReplyDeleteपोस्ट में लक्षमण नहीं दिख रहे। ठीक कर लीजिए। एक भाई जी जगह-जगह जाकर आपकी दुष्प्रचार कर रहे हैं।
Sir,
DeleteMain Bharat ji ki jagah Laxman kar diya hun. 2012 men blog ki duniya mein padhare Mr. Madhuresh ji apna panditya pradarshan kar rahen hain. main Dhirendra ji ke blog par Apni pratikriya aur sanshodhan ke bare mein likh chuka hun. Dhanyabad.
अभी भी पोस्ट में सुधार नहीं हुआ है,सच कहना पांडित्व बघारना होता है तो यही मान लीजिये. मनोज कुमार जी ,''एक भाई जी जगह-जगह जाकर आपकी दुष्प्रचार कर रहे हैं।'' मैने धीरेन्द्र जी की टिपण्णी पर उन्हें आगाह करने के लिए लिखा था , मेरी समझ से रचना को बिना पढे उसकी तारीफ करना लेखक ने रचना के माध्यम से जो कहा उससे सहमत होना है.
Deleteसर अब भी संशोधन हुआ नहीं है...कुछ तकनीकी गडबडी है शायद...
ReplyDeleteआप रीपोस्ट कर दें......
ये पोस्ट शायद पहले भी पढ़ी है....पुरानी है क्या???
जो भी हो दोबारा पढ़ना भी भाया.
सादर.
अनु
आपकी यह प्रविष्टि कल दिनांक 23-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-858 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
ReplyDeleteमधुकलश जी की बात का जवाब मिलना ही चाहिए!
Deleteताकि हकीकत का पता लगे!
सहृदय होकर लिखी गई है यह पोस्ट .संवेदना से संसिक्त .ये गलतियां तो हर किसी से हो जातीं हैं .कभी कभार बहुत ज्यादा लिखने से भी ऐसा हो जाता है .
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ReplyDeleteगलतियों को सुधारने में भी परहेज नहीं होना चाहिए. भरत जी उर्मिला के जेठ थे ,मेरी समझ में नहीं आता की लेखक महोदय को पोस्ट में नाम बदलने में क्यू तकलीफ हो रही है ? ऐसा तो है नही की जो छप गया सो छप गया, बदला नहीं जा सकता.टंकन गलती सबसे होती है,यहाँ उस का अर्थ का अनर्थ निकल रहा है,, हर पाठक टिप्पणी नहीं पढता,और यह लेखक के हित में ही मैने मजाकिया लहजे में अपनी बात कही थी, उसे उन्होंने पांडित्व बघारना माना . धीरेन्द्र जी पोस्ट में इस लिए डाला था की क्यां टिपण्णी करते वक्त ठीक से पढा नहीं था ,उन्होंने बुरा मानने की जगह टिप्पनी हटा शब्द बदलने का अनुरोध किया . जब आप व लेखक जी यह सब होता रहता है वाली सोच के है तो मै क्यूँ बुरा बनू, अब कोई दशरथ के बाप राम,, भी अपने ब्लाग में लिखेगा तो स्वीकार कर लूगा...जान गया हूँ चलन,आखं मूद के तारीफ करो और पावो .
ReplyDeleteजो भी हो मै तो भोज पूरी आवाज बोल कर ही इस मुकाम पर पहुंचा हूँ ! आज भी कोलकाता के कई ऐसे अंचल है जहा भोजपुरी ही ज्यादा बोली जाती है !रसीले और मन लुभावन बोली ! दक्षिण में भी घुस गयी है ! सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteSIR HAM DILLI ME RAHILA..MAGAR AAPAN LOGAN K BICH BHOJPURI BOLE ME KABBO NA HICHKICHAILI..ANGREJI HMRA K AAWELA MAGAR BAS JAHWA ZARURAT PADELA UHAWE BOLILA...SIR AAPN APNE HOLA!!
ReplyDeleteहमेशा की तरह...सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteविवाद न होता तो बढ़िया लगता ...
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