Sunday, October 30, 2011

अपनी पीढ़ी को शब्द दना मामूली काम नही हैः केदारनाथ सिंह

अपनी पीढी को शब्द देना मामूली बात नही हैः केदारनाथ सिंह

प्रेम सागर सिंह

अपने पिछले पोस्ट में मैंने भोजपुरी का संस्कारी पुरूष श्री मिथिलेश्वर जी के बारें चर्चा किया था एवं बलॉगर बंधुओं को यह पोस्ट अच्छा लगा था । इसी क्रम में आज मैं एक ऐसे कवि के बारे में बताने जा रहा हूँ जिनकी कविताएं साहित्य-जगत की अनमोल थाती सिद्ध होती जा रही हैं एवं उनके समकालीनों ने इसे स्वीकार्य भी किया है । ऐसे ही एक कवि हैं केदारनाथ सिंह जिनकी लेखनी का जादू जिस पर चल गया, वह उन्ही का होकर रह गया । सबमें से मैं भी एक हूँ जो उनकी रचनाओं के साथ जिया एवं उनके साथ अब तक जुड़ा रहा । कवि केदारनाथ को समझना एक बहुत बड़ी बात होगी क्योंकि उन्होंने वर्तमान युग के साहित्यकारों की पीढ़ी को अपनी अभिव्यक्ति के लिए शब्द दिया है । केदार नाथ सिंह के लिए कविता ठहरी हुई अथवा अपरिचित दान में मिली हुई जड़ वस्तु नही है । इसके ठीक विपरीत समय का पीछा करती हुई, उनके अमानवीय चेहरे को बेनकाब करती एक जीवंत प्रक्रिया है । इसके अंतर्गत शब्द अपना क्षितिज क्रमशः विस्तृत करते गए हैं । केदार समय के साथ लगातार जिरह करने वाले कवियों में रहे हैं । आधुनिक हिंदी कविता का विकास उन सारी परिस्थितियों से अलग नही है जिनमे हिंदी भाषा के क्षेत्र मे बीसवीं शताब्दी में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए और स्वभाविक ही उनकी गति बेहद तीब्र है। इन परिस्थितियों में समकालीन यथार्थ से हुई अंतर्क्रिया से हिंदी कविता को जो संघर्ष, जो दुविधाएं, जो सफलताएं, जो असफलताएं झेलनी पड़ी, उनको केदारनाथ सिंह की कविताएँ बेहद पारदर्शी रूप में व्यक्त करती है । आधुनिक समय में भारतीय कवियों को, जिनकी एक समृद्ध और हजारों वर्ष पुरानी दृढ़ परंपरा है, लगभग अचानक पाश्चात्य आधुनिकता से मुठभेड़ करनी पड़ी । इस मुठभेड़ में कुछ टूटा, कुछ बना, बहुत सारी चीजें बहुत उलझी हुई और धुंधली बनी रहीं । इन सबके बीच में एक स्पष्ट भारतीय आधुनिक कविता अर्जित करने की कोशिश एक आधुनिक भारतीय कवि की रही है। इस संदर्भ में केदारनाथ सिंह की कविताएँ एक आलोचक की तरह नही, एक युवा कवि की तरह जिसमे वे अपनी भाषा को कविता के साथ अतीत के संघर्ष को विश्लेषित करने की विनम्र कोशिश करते हैं । केदारनाथ सिंह की कविताएँ आज की वास्तविक स्थिति के कठोर साक्षात्कार की कविताएँ हैं- इसी दिशा में वे काव्य-प्रक्रिया की जटिलता को और उसके पीछे कार्यरत रचनात्मक संघर्ष को प्रमाणित करती है । कवि यह जानता है कि वर्तमान स्थितियों में श्रेयस्कर यही है कि समय और परिस्थिति के बारे में अपनी समझ को उन छोटे-छोटे मामूली सी दिखाई पड़ने वाले संदर्भों से जोड़ा जाए जिनमें व्यापक राजनीतिक आशय और अकथ मानवीय पीड़ा छिपी हुई है । उनकी कविताएं आज के आतंक की स्थिति में चारो ओर व्याप्त चुप्पी और समझौते की प्रवृति का संकेत करती है । उनमें अपने दौर के साथ होने की तीव्र ललक भी है । वे गीत लिखने के साथ-साथ यह भी सोचते रहे थे कि- आज न भटकूंगा उस शिरीष के रास्ते । वे उस तरह के कवि नही हैं जो यथार्थ से पलायन करते हैं, बल्कि उससे मुठभेड़ ही में उनकी खास रूचि है। वे स्वप्नद्रष्टा हैं, स्वप्नजीवी नही । केदारनाथ सिंह का युग-बोध अनिश्चयवादियों से भिन्न है । अनिश्चयवादी संकट का नारा लगाते हैं, संक्रांति की घोषणा करते हैं। मांझी के पुल कविता में पुल अजन्मे हैं लेकिन हवाओं में तैरते हैं । अर्थ यदि भविष्य है तो केदारनाथ सिंह के लिए कोई काल्पनिक स्वप्न नही बल्कि वर्तमान के बीच उदभाषित होने वाली रेखा है । इस अनिश्चय में भी उन्हे इतना निश्चय तो है ही कि वह आस-पास यहीं कहीं है । केदारनाथ सिंह अक्सर यथार्थ जगत में ऐसे अंतराल ढूढते हैं । जिस वस्तु को हम उपस्थित देख रहे हैं, उस पर उसके विगत का एक भयावह रूप लदा है, भविष्य में भी पुनः इस्तेमाल करने की प्रक्रिया में उसका अर्थ संकुचन हो जाएगा । केदार उन दो तीन कवियों में हैं जिन्होंने नई कविता को चलने योग्य नए शब्द दिए हैं और जिन्हे सचमुच ही समकालीनों ने अपना लिया । अपनी पीढ़ी को शब्द देना मामूली बात नही है । उनकी मान्यता है कि कविता का सीधा संबंध भाषा से है । भाषा प्रेषणीयता का सर्वसुलभ माध्यम है । लयविधान और छंद की दृष्टि से केदारनाथ सिंह का अपना निजी मुहावरा है । जिस पर लोक गीतों का प्रभाव दृष्टिगत होता है । भाषा की नयी अदा केदारनाथ जी की कविताओं में नयी ऊर्जा और तेवर देती हैं । यह नयापन केदार जी के जीवन के साथ जिंदा लगाव और अनुभवों की ताजगी से प्राप्त से प्राप्त किया है । इतना ही नही विभिन्न प्रकार के अनुभवों को वे अपनी रचना प्रक्रिया में समन्वित करते हैं, जिससे अलग-अलग सदियों की भाषा एक साथ होकर काव्य को अधिक असरदार बना देती है । केदारनाथ सिंह की कविताएं समय के साथ संवाद करती हुई कविताएँ हैं । उनकी कविताओं में एक तरह की प्रश्नाकुलता दिखाई देती है । ऐसी प्रश्नाकुलता जो कहीं गहरे पैठ कर पाठक को बेचैन कर देती है । इनके काव्योदधि में जितने गहरे तक डूबने का प्रयास किया जाए, उतने श्रेष्ठ मौक्तिकों से अपनी संबेदना को समृद्ध किया जा सकता है । इनकी कविता के सौंदर्यात्मक सत्य के उदघाटन के लिए पाठक को अपने संवेदनात्मक धरातल को उस ऊचाई तक ऊठाना पड़ता है, जहाँ वह कवि की संवेदना से मिल जाता है और पूर्ण विश्व की संवेदना से एकाकार हो जाता है। केदारजी की कविताएँ उनके निजी परिवेश और जमीनी जुड़ा़व की ऊपज है । जिनमे तो एक तरफ धूल-मिट्टी है, खेत, खलिहान, बाग, बगीचा, गा्म्य-लोककथा, नदी, कछार, अपनों का सामीप्य और गांव से जुड़े तमाम समृति बिंब घुले मिले हैं जिनमें कवि के व्यक्तित्व का निर्माण हुआ । वे पिछले दो दशकों के कुछ कवियों में हैं जिन्होंने मानवद्रोही तथा रूग्ण पाखंडों से अपनी कविता को मुक्त रखा है । उनकी कविताएँ इसलिए आदमी की आदमीयत की खोज, उसमें गहरी आस्था और उसके प्रति अदम्य प्रतिबद्धता की कविताएँ हैं । केदारनाथ सिंह आधुनिक कवियों में सर्वाधिक तीक्ष्ण संवेदना के एवं पारदर्शी कवि हैं । ये पारदर्शी इस अर्थ में हैं कि ये हमें सपने में उलझाते नही हैं और हमें कविता की सप्रेष्य वस्तु तक ले जाते हैं । केदार जी में जो मानवता है, उनमें जो तीक्ष्ण संवेदना है, उनमें जो बिंबों का रचाव है, वह उन्हे शमशेर बहादुर के बाद हिंदी का दूसरा अत्यंत विशिष्ट कवि बनाता है । शमशेर की ही तरह उनकी कविताएँ हिंदी आलोचना के लिए चुनौती है । मेरा अटल विश्वास है कि आप सब भी इनकी कृतियों के साथ न्याय करेंगे । आज नई कविता के बारे में जितना भी कुछ कहा जाए, केदारनाथ सिंह के योगदान को हाशिए पर रखे जाने की हिम्मत किसी भी आलोचक के लिए एक कठिन कार्य होगा । यह मेरी अपनी अभिव्यक्ति है एवं किसी के आलोचना एवं टिप्पणी के लिए किसी भी विंदु पर किसी को वाध्य नही करती है । अनुरोध है कि इन कथ्यों के साथ अपने विचारों को खंगालकर अपनी टिप्पणी देने की कृपा करें ताकि भविष्य में मैं कुछ इन जैसे कवियों के बारे में जो भी ज्ञान मेर पास है, उसे आप सबके समक्ष प्रस्तुत कर सकूँ । आप सबके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद

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38 comments:

  1. केदारनाथ सिंह की कविताएं समय के साथ संवाद करती हुई कविताएँ हैं ।
    सटीक कथ्य!
    इस आलेख के माध्यम से आपने बहुत सुन्दर परिचय करवाया है कवि और उसके रचनाकर्म से...!!!
    उनकी कविता 'नए कवि का दुःख' कितनी सुन्दरता से संवाद करती हुई हृदय को झकझोरती है-
    दुख हूँ मैं एक नये हिन्दी कवि का
    बाँधो
    मुझे बाँधो
    पर कहाँ बाँधोगे
    किस लय, किस छन्द में?

    ये छोटे छोटे घर
    ये बौने दरवाजे
    ताले ये इतने पुराने
    और साँकल इतनी जर्जर
    आसमान इतना जरा सा
    और हवा इतनी कम कम
    नफरतयह इतनी गुमसुम सी
    और प्यार यह इतना अकेला
    और गोल -मोल
    बाँधो
    मुझे बाँधो
    पर कहाँ बाँधोगे
    किस लय , किस छन्द में?

    क्या जीवन इसी तरह बीतेगा
    शब्दों से शब्दों तक
    जीने
    और जीने और जीने ‌‌और जीने के
    लगातार द्वन्द में?
    (-केदारनाथ सिंह)

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  2. समय के साथ संवाद करने कारण ही उनकी कविताओं में एक तरह की प्रश्नाकुलता दिखाई देती है । ऐसी प्रश्नाकुलता जो कहीं गहरे पैठ कर पाठकों के गूंगे कंठ को बरबस ही खोल देती हैं । अनुमा पाठक जी आपने तो उनकी कविता प्रस्तुत कर इस पोस्ट को संपूर्णता प्रदान कर दिया है । धन्यवाद ।

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  3. bahut achcha kedarnath ji ki kavitaon ke vishya me kafi jankari mili.anupama ji ki post ki hui kavita bahut achchi hai.aap dono ka aabhar.

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  4. मेरा मनोबल बढाने के लिए राजेश कुमारी जी आपका आभार ।

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  5. इनको बहुत ही क्म पढ़ा है। विशेष कह नहीं सकता सिवाय इसके कि आलेख अच्छा लगा।

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  6. श्री मनोज कुमार जी आपका आभार ।

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  7. वर्तमान को व्यक्त करने में भविष्य की प्रतीक्षा रहेगी।

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  8. केदारनाथ जी के बारे में आपने बहुत ज्ञानपरक जानकारी दी आभार

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  9. केदार नाथ सिंह की जन्मशती पर अच्छी चर्चा की है आपने॥

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  10. अनुपमा पाठक जी ने अच्छा किया है कविता लगा कर. मेरे जैसे लोगों के लिए उपयोगी है जिन्होंने केदार जी को पढ़ने का मौका नहीं पाया है .कुछ जीवन परिचय उनका भी मिल जाता तो सर जी और ठीक होता.

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  11. केदार नाथ सिंह के साहित्य में योगदान पर बड़ी अच्छी विस्तृत जानकरी दी आपने. धन्यवाद, अनुपमा जी का आभार कि उन्होंने उनकी कविता भी उपलब्ध करा दी.. और पढने कि जिज्ञासा जगी है.

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  12. डॉ. ब्रज किशोर जी,
    केदारनाथ जी का साहित्यिक परिचय भी प्रस्तुत करूंगा । पोस्ट लंबा होने के कारण उनकी कविताओं को इसमें शामिल न कर सका । धन्यवाद ।

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  13. is sunder post ke liye aap badhayee ke patr hain.....

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  14. अच्छी जानकारी है ...केदार नाथ सिंह के लिए कविता ...समय का पीछा करती हुई, उनके अमानवीय चेहरे को बेनकाब करती एक जीवंत प्रक्रिया है ..
    ---कविता सिर्फ अमानवीय चहरे को बेनकाब करने के लिए ही नहीं होती जो आजकल के इन कवियों का शगल बन् गया है...अपितु एक समाधान भी होना चाहिए ..बिना समाधान के कविता का , साहित्य का कोई अर्थ नहीं होता ...
    ----- निम्न प्रस्तुत कविता में कवि क्या कहना चाहता है ....क्या लय-छंद त्याज्य हैं ?...क्या पुरातन त्याज्य है ?...क्या जीवन में द्वंद्व नहीं होने चाहिए ...द्वंद्व ही तो जीवन है ...

    दुख हूँ मैं एक नये हिन्दी कवि का
    बाँधो
    मुझे बाँधो
    पर कहाँ बाँधोगे
    किस लय, किस छन्द में?

    ये छोटे छोटे घर
    ये बौने दरवाजे
    ताले ये इतने पुराने
    और साँकल इतनी जर्जर
    आसमान इतना जरा सा
    और हवा इतनी कम कम
    नफरतयह इतनी गुमसुम सी
    और प्यार यह इतना अकेला
    और गोल -मोल
    बाँधो
    मुझे बाँधो
    पर कहाँ बाँधोगे
    किस लय , किस छन्द में?

    क्या जीवन इसी तरह बीतेगा
    शब्दों से शब्दों तक
    जीने
    और जीने और जीने ‌‌और जीने के
    लगातार द्वन्द में?
    -----वस्तुतः यह पलायनवाद है, वास्तविक साहित्यकार, कवि को समाज की वर्त्तमान स्थिति के साथ समाधान की दिशा अवश्य देनी चाहिए ....सिर्फ रोना-गाना नहीं ....

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  15. केदारनाथ जी के माध्यम से सुन्दर व सार्थक विमर्श हो गयी.आपका आभार आलेख के लिए.

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  16. प्रेम जी ,
    केदारनाथ जी के बारे में पढ़कर अच्छा लगा.
    सार्थक आलेख के लिए आभार.

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  17. अमृता तन्मय एवं विशाल जी आप दोनों का आभार ।

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  18. Mere liye to ye puri tarah se naya parichay tha...Rachnayein shayad padhi thi par itna kuch pata nahi tha..

    Baki Pratikriyaon mein bhi achhi jankari prapt hui..

    Dhanyavaad !!!

    www.poeticprakash.com

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  19. कवि केदार की कुछ रचनाएँ पढ़ी हैं ... आपने उनका विस्तृत परिचय दिया .. सार्थक लेख ...अच्छा लगा

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  20. संगीता स्वरूप जी आपका आभार ।

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  21. आना
    जब समय मिले
    जब समय ना मिले
    तब भी आना.....

    शुक्रिया प्रेम जी....बेहतरीन कवि के विषय में विस्तृत जानकारी देने के लिए.

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  22. केदारनाथ जी की कविताओं के बारे में बहुत ही बढ़िया और महत्वपूर्ण जानकारी मिली! आपने बहुत सुन्दरता से विस्तारित रूप से प्रस्तुत किया है! बधाई!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  23. केदार नाथ सिंह के साहित्य के बारे में विस्तृत जानकरी देने के लिए धन्यवाद, अनुपमा जी का आभार कि उन्होंने उनकी कविता भी उपलब्ध करा दी|

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  24. बबली जी एवं ऋता शेखर ' मधु ' जी आप दोनों का आभार ।

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  25. बहुत बढ़िया, प्रेमजी!
    केदारनाथ जी की कुछ पंक्तियाँ भारत भवन, भोपाल में पढ़ी थी...ठीक से याद हैं तो कुछ यूं थीं :
    बच्चे फूल नहीं होते
    फूल स्कूल नहीं जाते
    स्कूल कत्लगाह नहीं होते

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  26. वाकई मामूली कार्य नहीं ... आपने एक अद्वितीय जानकारी दी है, अनुपमा जी ने चार चाँद लगा दिए

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  27. केदारनाथ जी के बारे में पढ़कर अच्छा लगा| धन्यवाद|

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  28. प्रेम सरोवर जी सबसे पहले मेरे ब्लॉग पे आने के लिये आपको धन्यबाद ! आपने जो केदार नाथ जी पे जो ये आलेख प्रस्तुत किया बेहद ज्ञानवर्धक रहा.
    बधाई स्वीकार करे ...आभार ..

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  29. kedar nath ji k bare me itni vistrit jankari aap ke lekh se prapt hui.

    aabhar.

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  30. आलेख अच्छा लगा.आभार.

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  31. केदारनाथ जी के बारे में बढ़िया जानकारी दी,सुंदर लेख....
    मेरा ब्लॉग...काव्यांजली देखे....

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  32. डॉ केदारनाथ के साथ ही हिन्दी कविता के मुख्य पडावों और प्रवृत्तियों पर एक प्रभावशाली आलेख -यहाँ कवि की एकाध रचनाये भी तो देनी थी ?

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  33. अरविंद मिश्रा जी इस पोस्ट के पूर्व उनकी एक कविता भी जोड़ने के बारे में विचार आया था किंतु मेरा पोस्ट लंबा हो जाता इस कारणवश उनकी कोई भी कविता को इसमें स्थान न दे सका । आश्वस्त करता हूं कि इसके बाद इस पोस्ट का संदर्भ देकर इनकी कुछ कविताएं पोस्ट करता रहूँगा । आपका सुझाव अच्छा लगा । धन्यवाद ।

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  34. thank you so much Kedar ji se milwane ke liye... wakai bahut acchha lagta hai jab bhi aise kisi kavi k bare mei janne ka mouka milta hai...
    ab jaa rahi hu, Mthilesh ji ke baare mei padhne... unhe bhi to janna hai...
    har baar jab bhi aise logon ko padhti hu, bahut kuch seekhti hu...
    Thank you so much again...

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  35. aadarniy sir
    vaise to maine manyvar kedar nath ji ki koi bhi kavita ab tak nahi padhi hai parantu aapke dwara unke baare me vistrit jankari mili.
    aapse vinamra anurodh hai ki aap unki rachnayen bhi prkashit karen taki hame bhi unhe padhne ka soubhagy mile.
    sadar naman
    dhanyvaad sahit
    poonam

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  36. संजय जी, पूजा जी एवं पूनम जी आप सबका आभाऱ । आप लोगों के विचार को ध्यान में रखते हुए मैं शीघ्र ही केदार नाथ सिंह की कविताओं को प्रस्तुत करूँगा ।

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  37. आपके लेखन के माध्यम केदार जी की अच्छी माहिती मिली |
    आपका आभार |
    आशा

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