“ मुझे मेरे गाँव में गांव का निशाँ नही मिलता ”
प्रेम सागर सिंह
(हृदयकुंज में वापसी)
अपने पिछले पोस्ट में मैने “मुझे मेरे गांव में गाँव का निशा नही मिलता ” में बचपन की यादों एवं गांव के बदलते स्वरूप को चित्रित किया था, किंतु यह चित्रण अपनी समग्रता में पू्र्ण नही था । मेरी अक्षत स्मृतियों के पिटारे में कुछ ऐसी विगत स्मृतियां हैं जो अभिव्यक्ति के लिए सर्वदा बेचैन रहती हैं । आज अचानक एक छोटी सी स्मृति ने झकझोर दिया एवं मन अभिव्यक्ति के लिए बेचैन हो उठा । अपने जीवन की स्मृतियों को खोलने लगा तो बचपन में बटबृक्ष की तरह स्नेहमयी शीतल छाया प्रदान करने वाली मां का अतिम दिन याद आने लगा । उस समय मैं गांव पर ही पढ़ता था । मेरा गांव डुमरांव स्टेशन से करीब 3 कि.मी. दक्षिण दिशा की ओर है । हमसे तीन बड़े भाई कलकत्ता में रहते थे । मां एवं बाबूजी से बहुत जिद करता था कि मैं भी कलकत्ता मे पढ़ूंगा लेकिन उम्र में छोटा होने के कारण मुझे इसकी इजाजत न मिल सकी । बचपन में मुझे किसी भी चीज का अभाव नही हुआ, जो चाहा उसे मां और बाबूजी ने दिया । एक दिन मां बीमार पड़ गयी । सावन का महीना था । गांव के चारो तरफ पानी भर गया था एवं बरसात थमने का नाम नही ले रहा था । जब से मां बीमार पड़ी थी, ऐसा प्रतीत होता था कि किसी ने मेरा बचपन मुझसे छीन लिया है । थोड़े समय हमउम्र लड़कों के साथ खेलता एवं मां की याद आते ही खेल को बीच में ही छोड़ कर उनके पास आ जाता था । जिस भाव से मां आपना हाथ मेरे सिर पर रखती थी मुझे आज एहसास होता है कि चारपाई पर रूग्णावस्था मे पड़ी मां के लिए यह बड़ा ही दुष्कर कार्य था । मुझे देख कर बहुत रोती थी. मैं भी रोने लगता था । आज इस उम्र की दहलीज पर पहुंच कर ऐसा लगता है कि अपनी असहनीय पीड़ा को अनुभव कर मां के मन में शायद यह बात घर कर गयी होगी कि अब वह नही बचेगी । जब दिन-प्रति दिन शोचनीय अवस्था होती गयी तो पड़ोस के गांव से डॉक्टर को बुलाया गया था । मां को देखने के बाद उन्होंने कहा कि इन्हे ‘टेटनस’ हो गया है एवं “गुलजारबाग टेटनस हॉस्पीटल” (बिहार) में भर्ती करवाना अति आवश्यक है, नही तो कुछ भी हो सकता है । उसी दिन बाबूजी मुझे मां एवं गांव के कुछ लोगों के साथ गुलजार बाग के लिए ट्रेन पकड़ाने के लिए स्टेशन तक आए थे । ट्रेन आने वाली थी, मां ने बाबूजी का हाथ पकड़ कर दबे आवाज मे कहा था- “मेरे सिर पर हाथ रख दीजिए।“ बाबूजी ने ठीक वैसा ही किया एवं अपने आंखों से निकलते हुए आंसू को रोक नही पाए । उस समय मेर बाल-मन में क्या बीत रही थी, उसकी याद आते ही अब ऐसा प्रतीत होता है कि मां की अवस्था ने मुझे उस समय अपनी उम्र के हिसाब से बड़ा और परिपक्व कर दिया था ।समय का खेल भी बड़ा विचित्र होता है।हम सब मां को लेकर गुलजार बाग हॉस्पीटल पहुँच गए एवं उनको दाखिला करा दिया गया । सब कुछ जाँचने के बाद डॉक्टरों ने कहा कि उपचार शुरू हुआ है, भगवान करेंगे तो कुछ दिनों में स्वस्थ हो जाएगी । हर कोई जैसा सोचता है वैसा ही होने लगे तो दुख किस बात का रहता । मां ने कहा था बबुआ मैं ठीक हो जाउंगी । कल तुम्हारे बाबूजी आएंगे तो हम लोग उन्ही के साथ वापस गांव चले जाएंगे । शायद मेरी उनींदी आंखों को देखकर उन्होंने कहा कि तुम सो जाओ । गांव के लोग बाहर बैठकर बातें कर रहे थे एवं मैं हॉस्पीटल में ही उनके बेड के पास ही जमीन पर सो गया था । थोड़ी देर बाद कुछ गजब सी आवाज ने मुझे जगा दिया, देखा तो हमसे बड़े भाई एवं गांव के कुछ लोग मां के बेड के पास खड़े थे । दो डॉक्टर भी उनका परीक्षण कर रहे थे । कुछ देर मौन रहने के बाद डाक्टरों ने भैया की ओर देखते हुए कहा- ‘सॉरी, आपकी मां अब इस दुनिया में न रही ।“ जहाँ तक मुझे याद है उस समय रात के करीब दो बज रहे थे । उसी रात कार का इंतजाम हुआ एवं मां के मृत शरीर को लेकर हम लोग गांव के लिए प्रस्थान कर दिए । सुबह होने के पहले ही गांव के बाहर कार पहुंच चुकी थी । हम सबको देख कर आस-पास के लोग कार के पास आने लगे एवं मां की मृत्यु का समाचार पूरे गांव मे आग की तरह फैल गया । उस समय पूरा गांव ही शोक-संतप्त हो गया था । उम्र मे बहुत छोटा होने के कारण बाबूजी ने मुझे कार के पास रहने नही दिया और मुझे किसी के जरिए घर पर भेज दिया । उस रात पूरे गांव में किसी के घर खाना नही बना था । एक गजब सा सन्नाटा छा गया था । सभी लोग मेरी देख-भाल में लगे थे । चाचा,चाची और सगे संबंधी एक मिनट के लिए मुझे अकेले नही छोड़ते थे । एक गजब सी गमगीन हालत हो गई थी । दाह-संस्कार के लिए बक्सर ले जाया गया किंतु मुझे जाने के लिए सबने मना कर दिया । दाह संस्कार के बाद सब लोग गांव आ गए थे । मैं बाबूजी के पास अधिक समय व्यतीत करने लगा । कुछ दिनों बाद बाबूजी मुझे कलकत्ता लेकर आ गए । मेरी बचपन की यादें मेरी स्मृतियों के पिटारें में यही तक रह गयी । कभी–कभी यही सोचता हूँ कि आज बह गांव नही रहा जहाँ एक आदमी का सुख-दुख सबका सुख-दुख हुआ करता था, जब भी कोई बहन, बेटी ससुराल से आती थी तो पास-पड़ोस के लोग उससे गले मिलकर रोते थे, लेकिन आज वे संवेदनाएं नही दिखती । किसी की मृत्यु, शादी या कोई भी चीज आज महज खबर बन कर ही रह जाती है । आज गांव में महज औपचारिकता का ही निर्वाह हो रहा है । मन में आया लिख दिया एवं दिल पर जो यादें बोझ बन गयी थी, उन्हें थोड़ा सा हल्का कर लिया । मेरी बचपन की यादें ,बस मेरे लिए एक धरोहर बन कर रह गयी हैं। आज उम्र की इस दहलीज पर भगवान से यही विनती करता ङूँ कि मां को स्वर्ग में भी सुखी रखें । अब मैं अपने बचपन की करूण कहानी को यहीं विराम देता हूँ ।
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बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति जो मन को भीतर तक भिंगा गई।
ReplyDeleteमां को विनम्र श्रद्धांजलि।
बचपन की यादें आँखें नम कर जाती हैं. दिल को छूती सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteMa ko khone ka dukh
ReplyDeleteis aalekh se jhalk raha hai.
Maarmik prastui ke liye sadhuwaad.
dil ko choo lene wali prastuti...
ReplyDeleteमाँ को विनम्र श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteप्रेम सरवर जी , आपके इस पोस्ट में सारी संवेदनाये ह्रदय पर अंकित हो रही है.आपने तो रुला ही दिया ..आगे कौन सी बोल बोलूं...बस चुप हूँ..
ReplyDeleteसचमुच मन व्यथित हो गया....आपके लिए इसे लिखना कितना कठिन रहा होगा,यह भी महसूस हुआ.
ReplyDeleteमाँ को विनम्र श्रद्धांजलि
प्रेम जी, आपके शब्दों से उस बालक की पीड़ा को अनुभव कर सके। मार्मिक प्रस्तुति रही, माँ का आशीर्वाद तो सदा ही बच्चोंके साथ रहता है चाहे माँ अपने दैहिक रूप में हों चाहे प्रभु से एकाकार हो चुकी हों। यह बातें साझा करने का आभार!
ReplyDeletebahut hi sundar prastuti sir.
ReplyDeletekya kahu shabd nahi hai.samvednaein har jagah se khatam ho rahi hai....aur hum sab bas unhe khatam hote dekh rahe hain....
पढ़ते-पढ़ते पता नहीं क्या हो गया ? न माँ रही न वो गाँव...आपकी माँ को प्रणाम !
ReplyDeleteमार्मिक प्रस्तुती मन को व्यथित कर गई ...
ReplyDeleteअल्पावस्था में माँ को खोने से आपके मन को कितनी चोट पहुँची होगी समझ सकती हूँ । इतना दुखद प्रसंग आपने अपनी लेखनी से समक्ष खडा कर दिया । दर्दभरी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबचपन की यादें किसी फूल की तरह ताज़ा रहती हैं दिल के किसी कोने में ... आँखें नम हो आई ...
ReplyDeleteसुमन, आशा जोगेलकर, दिगग्वर नासवा जी आप सबका आभार ।
ReplyDeletebahut hi marmik yad hai sahi kaha ganv me log aesa hi karte the .pr aap pr jo gujri hai uska darad me samajh sakti hoon .bite smy ke sath drd kam hota hai pr khatam nahi hota.
ReplyDeletesaader
rachana
रचना जी आपका आभार । दीपावली की शुभकामनाओ के साथ ।
ReplyDelete.धन्यवाद ।
बहुत ..बीमार... है ..माँ....
ReplyDeleteआज माँ के पास बैठा ..हूँ.
बहुत निकट, उससे एकदम सट कर.
तो क्या एक दिन माँ मर जायेगी?
क्या माँ फिर नजर नहीं आएगी?
ना जाने कैसे मन की बात सुन लिया?
वह धीरे ..से ...फुसफुसाई..........,
बहुत धीमी मंद आवाज आई.....-
"माँ मरती नहीं, कभी मरती नहीं बेटे "
हाँ, माँ ने बिलकुल ठीक कहा था:
माँ मरती नहीं ..माँ मर नहीं सकती,
देख रहा हूँ उसे..., प्रकृति में ,
शून्य में..विलीन होते हुए ...आज
माँ, अब शारीर नहीं है.,रूप नहीं है,
स्वरुप नहीं है.., आकृति..नहीं है
माँ, केवल शब्द ....नहीं है ....
'शब्द'-'अर्थ' के बंधन को वह तोड़ चुकी है.
अब तो .अब ..तो.....
माँ, एक सम्पूर्ण .. अभिव्यक्ति है..
माँ, एक जिम्मेदारी है, एक दायित्व है,
माँ ही पृथ्वी के रूप में उत्पादक है,
नदी और जल रूप में पोषक है,
मेघ रूप में वर्षा है, पुष्प रूप सुगंध है,
झरना रूप प्रवाह है, पपीहा रूप में गान है,
राग रूप दुलार है वह, और डांट रूप निर्माण है.
रोटी रूप में भोजन है वह, श्वेद रूप में श्रम है.
थल रूप ठोस वही, तरल रूप में बहता जल है.
स्वप्न रूप में लक्ष्य वही,साहस रूप में गति है.
प्रेरक वही, प्रेरणा वही, सन्मार्ग रूप प्रगति है.
bahut dino baad aap ke blog par aana ho paya kshma prarthi hun.
ReplyDeleteaapki yado ke vatvrksh k pitare se nikli ye ghatna bahut bheetar tak antas ko nam kar gayi. chalchitr ki tarah mano sab kuchh ankho k aage aap ka bachpan aur apki mata ji ki halat ghoom gaye. jaan kar bahut dukh bhi hua ki us samay sirf ek chhoti si laparwahi se tetnas janleva ho gaya.
bhagwaan aapki mata ji ki aatma ko shanti aur sukoon de.
अनामिका जी आपका आभार .दीपावली की शुभकामनाओं के साथ ।
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक और दिल को छू गई हर एक शब्द ! माँ को विनम्र श्रद्धांजलि !
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
“मोती जैसे आँख में, स्मृतियों की छांह
ReplyDeleteतलुवे जब जलने लगें, करतीं शीतल राह.”
ब्रह्मलीन आत्मा सादर नमन.
मुझे लगता है कि माँ हर व्यक्ति की अमूल्य धरोहर होती है / आपने माँ को जिस तरीके से याद किया है वह मन को बड़ी गहराई से स्पर्श करता है / माँ तुझे सलाम !!!
ReplyDeleteआपको मेरी तरफ से दीपावली की हार्दिक शुभकामना / आप निरंतर सृजनरत रहें! आपका जीवन मंगलमय हो !
ReplyDeleteसच है, बहुत सुंदर
ReplyDeleteमाँ की याद कहाँ विस्मृत हो पाती है...बहुत ही मर्मस्पर्शी आलेख..दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeletevery touching ..I was very sad ...its like scene to scene touching the heart...Moms are precious ..next to God !
ReplyDeleteGod bless her soul..
Childhood moments are precious ..moms make them even special!
TC..
bahut hi marmik smratiya hain padhkar aankhe bhar aai.aaj pahli baar aapke blog ka pata chala bahut pahle aapka mere blog par comment spam me chala gaya tha abhi abhi padha to aapke blog ka pata chala.follow kar rahi hoon apke blog ko taki bhavishya me aapki rachnaon ko padh sakun.
ReplyDeleteआज लोगों की संवेदनाएं मर चुकी हैं।
ReplyDeleteमार्मिक प्रसंग। मां को नमन।
aapke bachpan ki ye karun kahani padh kar sachmuch
ReplyDeletemeri anke nam ho gai. sache bhaw se maa ko pranam..
Aap mere blog pe sadar amantrit hai..
आँख नम हो उठी. माँ को श्रद्धा सुमन.
ReplyDeleteदीपोत्सव की शुभकामनायें
आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को दिवाली की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
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आपकी प्रस्तुति अत्यंत मार्मिक व हृदयस्पर्शी है.
ReplyDeleteमाताजी को नमन व हार्दिक श्रद्धा सुमन.
आपकी मुखर शैली, अभिव्यक्ति को प्रवाह देती हुयी शसक्त है .संवेदना को साहित्य में स्थान मिले यह महत्वपूर्ण है.दिवंगत को श्रधांजलि,सृजन को सम्मान ....शुक्रिया जी /
ReplyDeleteआपने दिल को छू लिया .
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