भोजपुरी दुनिया का संस्कारी पुरूष : मिथिलेश्वर
प्रेम सागर सिंह
भोजपुरी साहित्य एवं समाज की बात करते समय कभी शिवपूजन सहाय की रचना ‘देहाती दुनिया ’ का स्मरण आने लगता है एवं उनके बीच जो नाम मन पर असर कर जाता है, वह नाम है मिथिलेश्वर । ये समय और समाज के आंतरिक संबंधों के जटिल रूपाकार को खंगालने एवं जनवादी सरोकारों से संपृक्ति रखने वाले महत्वपूर्ण रचनाकार हैं । अपने वृहत उपन्यासों में कथा-विन्यास की अदभुत बुनावट एवं वैचारिक प्रखरता के तालमेल के कारण उनकी कृतियाँ पठनीय होने के साथ-साथ जनचेतना का भी प्रतिधिनित्व करती हैं । यही कारण है कि अपनी नवीनतम पुस्तक “भोजपुरी लोककथा” एवं “जमुनी” के सृजन कार्य से भाषा और प्रस्तुति के स्तर पर भोजपुरी लोककथाओं को अपनी सहज-सरल, संवेदना से न केवल परिपुष्ट करते हैं, बल्कि लोकभाषा की प्रकृति व संस्कृति को साबित भी करते हैं । ग्राम्य जीवन और जनसमाज की विकट समस्याओं व जमीनी सच्चाईयों को आधार बना कर लिखी गयी इस संग्रह की लोककथाएं कोरी उपदेशपरकता के बजाए अपनी विलक्षण किस्सागोई से अपना विश्वसनीय रूपाकार ग्रहण करती हैं। भोजपुरी लोककथाओं से अपना जमीनी जुड़ाव रखने वाले मिथिलेश्वर प्रचलित लोककथाओं के मूल कथ्य को सुरक्षित रखते हुए उनकी रचना में ऐसी चमक पैदा करते हैं कि वे प्रदेश विशेष तक सीमित न रहते हुए सर्वग्राही बन जाती हैं । संग्रह में शामिल “बुद्धि की कमाई “ “चिट्ठी” “बँटवारा” “अंधेरपुर नगरी” “बटेर और कौआ” “राजा और घूसखोर” “चार चोर” “लकड़हारा और साँप” व “चापलूस दरबारी” आदि लोककथाओं में भोजपुरी की लोक संस्कृति की वास्तविक पहचान व जीवन-जगत की सार्थक व्याख्या तथा जमीनी सच्चाईयों को करीब से महसूस किया जा सकता है । वे अपने जमीनी जुड़ाव के चलते भोजपुरी की इन लोककथाओं की सृजनशीलता में बोली की मिठास और भावाभिव्यक्ति में विचित्र रसात्मकता का मिश्रण करते हैं । भोजपुरी लोककथाओं की विश्वसनीयता तथा सर्वग्राही शक्ति को प्रमाणित करते हुए लेखक की मान्यता है कि “इस अनुभव ने मुझे सुखद रूप में में चमत्कृत कर दिया कि वगैर लिखित हुए सिर्फ वाचिक परंपरा में ही हमारी लोककथाएं सदियों से ही जीवित बनी हुई हैं । सचमुच यह बहुत बड़ी बात है । लोककथाओं की कालजयिता की पहचान भी । “ निस्संदेह इस तथ्य को अनदेखा नही किया जा सकता कि लोककथाएं महज मनोरंजन नही करती, बल्कि मानवतावादी मूल्यों की पक्षधरता को बुनियादी सरोकारों से सींचते हुए ठोस व्यावहारिक पहलुओं को व्याख्यायित करती है। मिट्टी की सोंधी सुगंध से संपृक्ति रखते हुए मिथिलेश्वर न केवल पुस्तक की भूमिका के माध्यम से, बल्कि इस संग्रह की लगभग सभी कथाओं की जीवनी शक्ति व लोक रस के महत्व को रेखांकित करते हैं। भोजपुरी साहित्य एवं हिंदी के प्रतिष्ठित कलाकार मिथिलेश्वर की हर रचना भोजपुरी लोकजीवन के विविध रंगों को रूपायित करने के साथ-साथ भोजपुरी समाज के रीति-रिवाज, आचार-व्यवहार तथा संस्कृतिक चेतना को रोचक किस्सागोई से सजाकर हमारे समक्ष प्रस्तुत करता है । वे अपनी प्राय: सभी कृतियों में भारत की सबसे बड़ी लोकभाषा भोजपुरी की लोककथाओं के माध्यम से भोजपुरी संस्कृति की वास्तविक पहचान करवाते हैं । इसके साथ-साथ इनकी हर कृति भोजपुरी समाज के गतिशील-जीवंत जीवन मूल्यों को जमीनी संस्कृति से जोड़कर देखने की पहल भी करता है । बिहार राज्य के आरा जिले के अंतर्गत बैसाडीह गांव में जन्मे मिथिलेश्वर भोजपुरी साहित्य को जिस मुकाम पर लाकर खड़ा किए हैं, उसके लिए मेरी और से उन्हे बहुत-बहुत धन्यबाद । भोजपुरी जनजीवन की लोक परंपराओं एवं बहुआयामी ज्ञान की पिपासा को बढ़ाने के लिए उनकी हाल ही में प्रकाशित कृति “जमुनी” अवश्य पढें । आज के साहित्यकार जिस रूप से साहित्य-सृजन की बुनियाद को नित नए आयाम दे रहे हैं, उसे देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि कालांतर में इन चेहरों के घने जंगल में क्या मिथिलेश्वर को ढूढ़ पाना संभव हो पाएगा !
मिथिलेश्वर के बारे में जानकारी देने के लिए आभार !
ReplyDeleteदीपावली पर आपको और परिवार को हार्दिक मंगल कामनाएं !
सादर !
मिथिलेश्वर जी के बारे में आपके इस आलेख ने उनके सारे रचना संसार का सैर करने का भाव जगा दिया है।
ReplyDeleteदीपावली की शुभकामनाएं।
सुंदर कविता, सुंदर भाव।
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।
अच्छी पोस्ट ..
ReplyDelete.. आपको दीपावली की शुभकामनाएं !!
रोचकता से दिये परिचय का आभार।
ReplyDeleteसुंदर आलेख!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteभोजपुरी भाषा कि वर्तमान स्थिति और श्रीमान मिथिलेश्वर के योगदान से सबंधित बड़ी अच्छी जानकारी उपलब्ध कराई आपने. धन्यवाद. दीवाली की शुभकामनाये.
ReplyDeleteमेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है :
www.belovedlife-santosh.blogspot.com (हिंदी कवितायेँ)
सुंदर प्रस्तुति|
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।
सुंदर प्रस्तुति...आपको दीपावली की ढेरों शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी.. कोशिश करूँगा की जमुनी पढने का मौक़ा मिले.. दीवाली की शुभकामना!!
ReplyDeleteमिथिलेश्वर जी के विषय में जानना सुखद लगा .उनकी कृति अवश्य कालजयी होंगी. सुन्दर आलेख के लिए आभार..***शुभ दीपावली ***
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुती! शानदार आलेख!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को दिवाली की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
बबली जी , आपका आभार एवं .दीपावली की शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteदिवाली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ|
कुंवर कुसुमेश जी आपका आभार एवं .दीपावली की शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteमेरे ब्लाग पर आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteकाफी जांकारियों को समेटे यह आलेख अच्छा है।
आप को सपरिवार दीपावली की मंगलकामनाएं।
प्यार हर दिल में पला करता है,
ReplyDeleteस्नेह गीतों में ढ़ला करता है,
रोशनी दुनिया को देने के लिए,
दीप हर रंग में जला करता है।
प्रकाशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!!
अच्छी जानकारी मिली ..प्रयास रहेगा जामुनी पढ़ने का ...
ReplyDeleteदीपावली की शुभकामनायें
जनजीवन की लोक परंपराओं एवं बहुआयामी ज्ञान की पिपासा को बढ़ाने के लिए मिथिलेश जी की कृति “जमुनी” पढ़ने की जिज्ञासा हो रही है. एक सुंदर परिचयात्मक आलेख.
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteयह दीपावली आपके घर-परिवार में लाए खुशियां अपार, बढ़े सुख समृद्धि...हमारी मंगल कामनाएं...
श्री विजय माथुर, श्री मनोज कुमार जी, संगीता पुरी जी, मनोज भारती जी आपका आभार । दीपावली की शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteमिथिलेश्वर जी के साहित्य से परिचय कराने के लिए आभार। दीपावली की शुभकामनाएं।
ReplyDeleteमिथिलेश्वर जी के योगदान से अवगत करवाने का आभार.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteजमुनी के प्रकाशक की जानकारी होती तो तलाशना आसान हो जाता.
ReplyDeleteराहुल जी आपका आभार । दीपावली की शुभकामनाएं । ' जमुनी ' की जानकारी नीचे प्रस्तुत कर रहा हूँ । आप इसे पढ़ने की कोशिश करें एवं उसके बाद मुझे इस पुस्तक के संबंध में अपने विचारों से मुझे अवगत कराएं ।
ReplyDeleteलेखक- मिथिलेश्वर
प्रकाशक-राजकमल प्रकाशन,प्रा.लि.
1B,नेताजी सुभाष मार्ग,
नई दिल्ली-110002
मूल्य- रू.175/ (Without Discount)
ऋता शेखर 'मधु' जी, आपको भी मेरी ओर से दीपावली की शुभकामनाएं । धन्यवाद ।
ReplyDeleteसुन्दर जानकारीपूर्ण पोस्ट के लिए आभार.
ReplyDeleteमिथिलेश्वर जी के बारे में पहली दफा जाना.
दीपावली व गोवर्धन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ.
मेरे ब्लॉग पर आप आये,इसके लिए भी आभार.
@आज के साहित्यकार जिस रूप से साहित्य-सृजन की बुनियाद को नित नए आयाम दे रहे हैं, उसे देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि कालांतर में इन चेहरों के घने जंगल में क्या मिथिलेश्वर को ढूढ़ पाना संभव हो पाएगा !- वाकई ,बहुत सही कहा है आपने.
ReplyDeleteमेरे विचार से आज हमारे भारतीय समाज को मिथिलेश्वर जैसे ज़मीन से जुड़े रचनाकारों की ज़रूरत है. ज्ञानवर्धक आलेख के लिए आभार. दीपावली ,गोवेर्धन पूजा और भाई दूज की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं .
पढ़ने का प्रयास करूंगा। ...सुझाव के लिए आभार।
ReplyDeleteमिथिलेश्वर जी के बारे में आपके इस आलेख ने उनके बारे में बहुमूल्य जानकारी दी .....
ReplyDeleteमिथिलेश्वर जी के बारे में जानना अच्छा लगा ... उनका अतुलनीय योगदान के बारे में पढ़ना सुखद लगा ...
ReplyDeleteआपको और परिवार में सभी को दीपावली की मंगल कामनाएं ...
Mithileshwar ji ke baare mein vistrit jaankaari praapt hui, aabhar.
ReplyDeleteडॉक्टर जेन्नी शबनम जी आपका आभार । आशा ही नही अपितु मेरा पूर्ण विश्वास है कि भविष्य में भी आप मेरा मनोबल बढाने के लिए समर्पित वरहेंगी । धन्यवाद ।
ReplyDeleteभोजपुरी दुनिया का संस्कारी पुरूष : मिथिलेश्वर आपका यह आलेख बहुत महत्त्वपूर्ण है भाई प्रेम सागर सिंह जी । इस तरह की जानकारी ही ब्लाग को महत्त्वपूर्ण बनाती है । बहुत आभार !
ReplyDeleteआज आपका परिचय चर्चा मंच पर प्रस्तुत किया गया है |
ReplyDeleteएक साल की बिटिया रानी : चर्चा मंच 681
http://charchamanch.blogspot.com/
Nice and knowlegable
ReplyDeleteसहज साहित्य, रविकर जी एवं डॉ.आर,रामकुमार जी आप सबका आभार ।
ReplyDeleteमिथिलेश्वर जी के विषय में जानना सुखद लगा .उनकी कृति पढ़ने का प्रयास रहेगा.
ReplyDeleteसिखा वार्ष्णेय जी आपका आभार ।
ReplyDeleteमिथलेश्वर जी की कहानिया पढ़ी हैं.. हिनुद्स्तान पटना, प्रभात खबर आदि के पन्नो पर उनकी कहानिया अक्सर आती थी.... आपका आलेख बढ़िया है... दीपावली की हार्दिक शुभकामना....
ReplyDeleteआपने कहानी पढने के साथ इस ब्लाग से परिचित कराया इसके लिये धन्यवाद । मुझे बहुत पहले ही देखना था । खैर ..। मिथिलेश्वर जी का नाम अब तक सिर्फ इसलिये याद था कि नौ वें आर्य सम्मान ( किताबघर दिल्ली)में रचनाओं के चयन में कमलेश्वर जी के साथ आप भी थे और उन में मेरी भी एक कहानी थी । आज आपका आलेख पढ कर उनकी रचनाएं पढने व और भी कुछ जानने की इच्छा हुई है । इससे पहले के आलेख गाँव ...ने भी प्रभावित किया है । दीपावली की मंगल-कामनाएं
ReplyDeleteश्री अरूण चंद्र रॉय जी एवं श्रीमती गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी, आशा करता हूं कि भविष्य में भी आप लोग मेरा मनोबल बढ़ात् रहेंगे। धन्यवाद ।
ReplyDeletesunder prastuti . padh kar aur padhne ki tammana dil me hui ...... abhar .
ReplyDeletehttp/sapne-shashi.blogspot.com
meri nayi post par aapki samikhsa ka intjar hai
मिथिलेश्वर जी के बारे में जानना अच्छा लगा।
ReplyDeleteMithileshwar ji ke baare mei jaankar bahut acchha laga...
ReplyDeletefir se kuch seekha, jana...
Thank you so much is post ke liye bhi...
Thank you, Puja. Wish to see you on my next post.
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