Sunday, August 14, 2011










महादेवी वर्मा का काव्य उनकी निजी अनुभूतियों पर ही आधारित है। उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन में जो जिया, जो देखा, जो अनुभव किया, उसी को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। उनकी रचनाएं उनके जीवन के साक्षात्कार वेदनाओं की प्रत्यक्ष गवाह हैं। उनकी निजी अनुभूतियों में भी वेदना, करूणा और अकेलेपन की पीड़ा ही अधिक व्यक्त हुई है। इन्ही भावों से लिखी गई उनकी कविता “ वे मुस्काते फूल नही ” प्रस्तुत कर रहा हूँ । आशा ही नही अपितु पूर्ण विश्वाश है कि यह कविता भी उनकी अन्य कविताओं की तरह अपके अंतर्मन को सितारों-जड़ित करने में सार्थक सिद्ध हो सकेगी।


वे मुस्काते फूल नही


वे मुस्काते फूल नही –
जिनको आता है मुरझाना
वे तारों के दीप नही
जिनको भाता है बुझ जाना

वे सुने से नयन, नही—
जिनमे बनते आँसू मोती,
वह प्राणों की सेज, नही –
जिसमे बेसुध पीड़ा सोती ;

वे नीलम के मेघ नही —
जिनको है घुल जाने की चाह ;
वह अनंत ऋतुराज, नही —
जिसने देखी जाने की राह ;

ऐसा तेरा लोक, वेदना
नही, नही जिसमें अवसाद ,
जलना जाना नही, नही
जिसने जाना मिटने का स्वाद !

क्या अमरों का लोक मिलेगा
तेरी करूणा का उपहार !
रहने दो हे देव ! अरे
यह मेरा मिटने का अधिकार
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः

3 comments:

  1. क्या अमरों का लोक मिलेगा
    तेरी करूणा का उपहार !
    रहने दो हे देव ! अरे
    यह मेरा मिटने का अधिकार

    वे लोक नहीं चाहिये, सुख दुख इसी के नाम लिख दिया है।

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  2. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.

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  3. ऐसा तेरा लोक, वेदना
    नही, नही जिसमें अवसाद ,
    जलना जाना नही, नही
    जिसने जाना मिटने का स्वाद !

    क्या अमरों का लोक मिलेगा
    तेरी करूणा का उपहार !
    रहने दो हे देव ! अरे
    यह मेरा मिटने का अधिकार
    kya khoob ,bha gayi

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