अभाव के द्वार पर
प्रेम सागर सिंह
जब हम पहुंचते है अभाव के द्वार पर,
प्रेम की कमी खल ही जाती है,
और व्यथित हो जाता है मन ।
क्योंकि,
वह भाव जिसकी आस लिए,
हम पहुंचते हैं दर किसी के,
वहां से गायब सा हो जाता है ।
स्वागत की वर्षों पुरानी
तस्वीर आज बदल सी गई है ।
लोगों की संवेदनाओं के तार,
अहर्निश झंकृत होने के बजाए,
निरंतर टूटते और बिखरते जा रहे हैं ,
पहले बंद दरवाजे खुल जाते थे ,
आज खुले दरवाजे भी बंद हो जाते हैं ।
अभाव के द्वार पर प्रणय गीत,
मन को अब बेजान सा लगता है ।
गृहस्थ जीवन का भार ढो रहे,
संवेदनशील व्यक्ति के हृदय में भी,
प्रेम का वह भाव गोचर होता नहीं,
क्योंकि
वह स्वयं इतना बोझिल रहता है
कि, दूसरे बोझ को ढोने के लिए,
वह इस योग्य होता ही नहीं ।
यादों के अतल में
आहिस्ता-आहिस्ता जाने की
कोशिश कर ही रहा था कि
चल रही शीतलहरी की
एक अलसाई शाम को,
हल्की धूप में तन्हा बैठा था
कि अचानक भूली बिसरी
स्मृतियों के झरोखे से
उस रूपसी की याद
विचलित कर गयी ।
एक खूबसूरत अरमान को
मन में सजाए,
एक बार उसे देखने की आश लिए,
पहुंच गया था उस सुंदरी के दर पर,
हाथ संकोच-भाव से दस्तक के लिए बढ गया
बंद दरवाजा भी एक आवाज से खुल गया।
सोचा मन ही मन,
खुशहाली से भरी जिंदगी होगी उसकी,
धन, धान्य और शांति से संपन्न होगी,
पर वैसा कुछ नजर नही आया,
जिसकी पहचान मेरी अन्वेषी आखों ने किया,
कहते हैं --
अभाव किसी परिचय का मुहताज नही होता,
शायद कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ,
नजदीक से देखा ,समझा ओर अनुभव किया,
लगा उसकी जिंदगी के सपने हैं,
टूटने के कगार पर
हालात को समझने में देर न लगी
क्योंकि ---
मैं पहुंच गया था अभाव के द्वार पर।
यह आभाव और यह आस ....बहुत मनभावन तरीके से मन की बात को अभिव्यक्त किया है ....आपका आभार
ReplyDeleteअभाव में आदमी की कसौटी पर परख होती है। कई बार अपने भी साथ छोड़कर हाथ हटा लेते हैं।
ReplyDeleteवाकई उदास होने के कई कारन हो सकते हे.
ReplyDeleteअभाव के द्वार पर प्रणय गीत,
ReplyDeleteमन को अब बेजान सा लगता है ।
गृहस्थ जीवन का भार ढो रहे,
संवेदनशील व्यक्ति के हृदय में भी,
प्रेम का वह भाव गोचर होता नहीं,
क्योंकि
वह स्वयं इतना बोझिल रहता है
कि, दूसरे बोझ को ढोने के लिए,
वह इस योग्य होता ही नहीं ।
जीवन को समझ लेने और सच्चे अनुभवों से गुज़रने के बाद ही कोई ऐसा लिख सकता है …
आदरणीय प्रेम सागर सिंह जी
अच्छी रचना के लिए बधाई !
रक्षाबंधन एवं स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ
-राजेन्द्र स्वर्णकार
अभाव के द्वार के प्रतीक ने टूटते सपनों की आहट महसूस की ...
ReplyDeleteअभावों से जूझने में प्रेम कहीं छिप जाता है।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति के साथ भावपूर्ण कविता लिखा है आपने! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
सहज सार्थक अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteहालात को समझने में देर न लगी
ReplyDeleteक्योंकि ---
मैं पहुंच गया था अभाव के द्वार पर।
अभाव ...जीवन का संघर्ष और ये मन ...कभी-कभी साथ-साथ नहीं चलते तो अभाव महसूस होता है ...!!
सुंदर रचना..
अभाव के द्वार पर प्रणय गीत,
ReplyDeleteमन को अब बेजान सा लगता है ।
गृहस्थ जीवन का भार ढो रहे,
संवेदनशील व्यक्ति के हृदय में भी,
प्रेम का वह भाव गोचर होता नहीं,
क्योंकि
वह स्वयं इतना बोझिल रहता है
कि, दूसरे बोझ को ढोने के लिए,
वह इस योग्य होता ही नहीं ।
bahut hi achchhi rachna hai ,swatantrata divas ki badhai .
अभाव किसी परिचय का मुहताज नही होता,
ReplyDeleteशायद कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ,
नजदीक से देखा ,समझा ओर अनुभव किया,
लगा उसकी जिंदगी के सपने हैं,
टूटने के कगार पर
हालात को समझने में देर न लगी
क्योंकि ---
मैं पहुंच गया था अभाव के द्वार पर।
bahut sunder bhav .shdon ka sunder snyojan
rachana
लोगों की संवेदनाओं के तार,
ReplyDeleteअहर्निश झंकृत होने के बजाए,
निरंतर टूटते और बिखरते जा रहे हैं ,
पहले बंद दरवाजे खुल जाते थे ,
आज खुले दरवाजे भी बंद हो जाते हैं ।
Sach kaha sanvednayem shuny hoti ja rahi hain or bikhr rahe hain tut rahe han riste bahut khub !
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..... शुभकामनायें
ReplyDelete,
स्वागत की वर्षों पुरानी
ReplyDeleteतस्वीर आज बदल सी गई है ।
लोगों की संवेदनाओं के तार,
अहर्निश झंकृत होने के बजाए,
निरंतर टूटते और बिखरते जा रहे हैं ,
पहले बंद दरवाजे खुल जाते थे ,
आज खुले दरवाजे भी बंद हो जाते हैं ।
sach-much aaj logo ke dilon me pyar ka abhav ho gaya.mahattwakanchaen itani badh gaee hain ki
kiseeke pass apne swajano tak ke lie wakt nahee.aapka bahut2 abhar.
सच कहा आपने ! अब संवेदनाओं के कमजोर होने का दौर है किसी के आने पर कोई झंकार नहीं उठती है !
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें आपके सुन्दर मन के लिए !
सघन भाव, विरल अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआभार,
zindgi ke safed-syaah rang bikher diye hain aapne is rachna mein. sahi kaha...
ReplyDeleteअभाव किसी परिचय का मुहताज नही होता,
शायद कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ,
नजदीक से देखा ,समझा ओर अनुभव किया,
लगा उसकी जिंदगी के सपने हैं,
टूटने के कगार पर
हालात को समझने में देर न लगी
क्योंकि ---
मैं पहुंच गया था अभाव के द्वार पर।
bahut badhai aur shubhkaamnaayen.
samvedanshil rachna .......
ReplyDelete..... अब संवेदनाओं के कमजोर होने का दौर है
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