अपने ही मन से कुछ बोलें :अटल बिहारी बाजपेयी
(भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी)
क्या खोया, क्या पाया जग में
मिलते और बिछुड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत
यद्यपि छला गया पग-पग में
एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें!
पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी
जीवन एक अनन्त कहानी
पर तन की अपनी सीमाएँ
यद्यपि सौ शरदों की वाणी
इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर, खुद दरवाज़ा खोलें!
जन्म-मरण अविरत फेरा
जीवन बंजारों का डेरा
आज यहाँ, कल कहाँ कूच है
कौन जानता किधर सवेरा
अंधियारा आकाश असीमित, प्राणों के पंखों को तौलें!
अपने ही मन से कुछ बोलें!
मिलते और बिछुड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत
यद्यपि छला गया पग-पग में
एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें!
पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी
जीवन एक अनन्त कहानी
पर तन की अपनी सीमाएँ
यद्यपि सौ शरदों की वाणी
इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर, खुद दरवाज़ा खोलें!
जन्म-मरण अविरत फेरा
जीवन बंजारों का डेरा
आज यहाँ, कल कहाँ कूच है
कौन जानता किधर सवेरा
अंधियारा आकाश असीमित, प्राणों के पंखों को तौलें!
अपने ही मन से कुछ बोलें!
***************************************************************
बहुत ही अच्छी लगती है यह कविता..
ReplyDeleteअटल जी की बहुत अच्छी कविता आपने ब्लॉग पर डाली है ..ये कविता काफी बार पढ़ी है ... हमारे देश की राजनीति में वो ही केवल मात्र व्यक्ति थे जो हमेशा प्रभावित करते थे। I miss him :(
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत हैं ...http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/11/blog-post_6.html
बहुत सुन्दर कविता है....
ReplyDeleteअटल जी के भाषण भी इतने ही लाजवाब हुआ करते थे....
आभार प्रेम सरोवर जी.
सादर
अनु
जन्म-मरण अविरत फेरा
ReplyDeleteजीवन बंजारों का डेरा
आज यहाँ, कल कहाँ कूच है
कौन जानता किधर सवेरा
अंधियारा आकाश असीमित, प्राणों के पंखों को तौलें!
अपने ही मन से कुछ बोलें!
BAHUT KHUBSURAT SADABAHAR KAWITA.
atal ji ki kavitaayein ati man bhaavan hoti hain
ReplyDeleteaabhar atal ji ki ye kavita padhane k liye.
ReplyDeleteआभार इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए,,,आभार
ReplyDeleteप्रेम सरोवर जी,आप तो मेरे पोस्ट में आना ही बंद कर दिया,,,,आइये स्वागत है,,
RECENT POST:..........सागर
इस सुन्दर कविताके लिए आभार प्रेम सरोवर जी...
ReplyDeleteअटल जी ग्वालियर के ही हैं, उनके यश के कारण हम ग्वालियर वालों का सिर हमेशा ऊँचा ही रहता है.
ReplyDeleteजन्म-मरण अविरत फेरा
ReplyDeleteजीवन बंजारों का डेरा
आज यहाँ, कल कहाँ कूच है
कौन जानता किधर सवेरा
अंधियारा आकाश असीमित, प्राणों के पंखों को तौलें!
अपने ही मन से कुछ बोलें!
जीवन एक सफ़र है तो सच में बंजारे की तरह है कोई ठिकाना नहीं !!
बहुत खूब !!
HAPPY DIWALI
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
माँ नहीं है वो मेरी, पर माँ से कम नहीं है !!!
अटल जी की इस कविता से आशना कराने के लिए शुक्रिया. बहुत सुन्दर कविता है यह.
ReplyDeleteअटल जी की इस कविता से आशना कराने के लिए शुक्रिया. बहुत सुन्दर कविता है यह.
ReplyDeletekavita jivan ke utar chadhav ko samajhane ka sanket de rahi hai ati sunder
ReplyDeleteआपकी यह पोस्ट आज के (१३ अगस्त, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - प्रियेसी पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई
ReplyDeleteअतिशोभनम्
ReplyDelete