Friday, October 12, 2012

हरिवंश राय बच्चन की कविता



है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है



                               
           हरिवंश राय बच्च

        
        (प्रस्तुतकर्ता:प्रेम सागर सिंह)


कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था
भावना के हाथ ने जिसमें वितानों को तना था
स्वप्न ने अपने करों से था जिसे रुचि से सँवारा
स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सना था
ढह गया वह तो जुटाकर ईंट, पत्थर, कंकड़ों को
एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है

बादलों के अश्रु से धोया गया नभ-नील नीलम
का बनाया था गया मधुपात्र मनमोहक, मनोरम
प्रथम ऊषा की किरण की लालिमा-सी लाल मदिरा
थी उसी में चमचमाती नव घनों में चंचला सम
वह अगर टूटा मिलाकर हाथ की दोनों हथेली
एक निर्मल स्रोत से तृष्णा बुझाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है

क्या घड़ी थी, एक भी चिंता नहीं थी पास आई
कालिमा तो दूर, छाया भी पलक पर थी न छाई
आँख से मस्ती झपकती, बात से मस्ती टपकती
थी हँसी ऐसी जिसे सुन बादलों ने शर्म खाई
वह गई तो ले गई उल्लास के आधार, माना
पर अथिरता पर समय की मुसकराना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है
हाय, वे उन्माद के झोंके कि जिनमें राग जागा
वैभवों से फेर आँखें गान का वरदान माँगा
एक अंतर से ध्वनित हों दूसरे में जो निरंतर
भर दिया अंबर-अवनि को मत्तता के गीत गा-गा
अंत उनका हो गया तो मन बहलने के लिए ही
ले अधूरी पंक्ति कोई गुनगुनाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है

हाय, वे साथी कि चुंबक लौह-से जो पास आए
पास क्या आए, हृदय के बीच ही गोया समाए
दिन कटे ऐसे कि कोई तार वीणा के मिलाकर
एक मीठा और प्यारा ज़िन्दगी का गीत गाए
वे गए तो सोचकर यह लौटने वाले नहीं वे
खोज मन का मीत कोई लौ लगाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है

क्या हवाएँ थीं कि उजड़ा प्यार का वह आशियाना
कुछ न आया काम तेरा शोर करना, गुल मचाना
नाश की उन शक्तियों के साथ चलता ज़ोर किसका
किंतु ऐ निर्माण के प्रतिनिधि, तुझे होगा बताना
जो बसे हैं वे उजड़ते हैं प्रकृति के जड़ नियम से
पर किसी उजड़े हुए को फिर बसाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है.
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11 comments:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति ,,,,,,
    हरिवंश राय बच्चनजी की रचना साझा करने के लिए आभार,,,,,

    MY RECENT POST: माँ,,,

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  2. बहुत सुन्दर....
    जितनी बार पढ़ती हूँ....उतना ज्यादा प्यार होता जाता है बच्चन साहब की कविताओं से....
    शुक्रिया प्रेम सरोवर जी.

    सादर
    अनु

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  3. बहुत अच्छा लगता है, पढ़ने में।

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  4. बच्चनजी की रचना गहरे तक जाती है. आपका आभार..

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  5. हरिवंश राय बच्चनजी की रचना साझा करने के लिए शुक्रिया प्रेम सरोवर जी

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  6. इस महान कवि की महान रचना साझा करने के लिए आपका आभार!!

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  7. धन्यवाद सलील भाई,आपके आगमन से प्रेम सरोवर शुष्क होने से बच गया। आपका आभार ।

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  8. बच्चन जी को पढवाने के लिए आभार !

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  9. This comment has been removed by the author.

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  10. वाह बेहद खूबसूरत रचना जैसे हरिवंश राय बच्चन जी का जवाब नहीं था ठीक वैसे ही उनके बेटे अमित जी का जवाब नहीं |

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  11. बहुत सुन्दर...!
    शुक्रिया !

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