लेकिन मेरा लावारिस दिल
राही मासूम रजा
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हिन्दी - उर्दू साहित्य के सुप्रसिद्ध कथाकार डॉ राही मासूम रजा का जन्म 1 सितम्बर 1927 ,को गाजीपुर (उत्तर प्रदेश ) के गंगोली गाँव में हुआ था। राही की प्रारंभिक शिक्षा गाजीपुर शहर में हुई। इंटर करने के बाद ये अलीगढ आ गए और यही से इन्होने उर्दू साहित्य में एम .ए.करने के बाद " तिलिस्म -ए -होशरुबा " - पर पी.एच .डी.की डिग्री प्राप्त की । "तिलिस्म -ए -होशरुबा" उन कहानियो का संग्रह है जिन्हें घर की नानी-दादी ,छोटे बच्चो को सुनाती है । पी .एच.डी करने के बाद ,ये विश्वविद्यालय में उर्दू साहित्य के अध्यापक हो गए । अलीगढ में रहते हुए इन्होने अपने प्रसिद्ध उपन्यास " आधा-गाँव " की रचना की ,जोकि भारतीय साहित्य के इतिहास का , एक मील का पत्थर साबित हुई। उन्हें रोज़गार के लिए फ़िल्म लेखन का काम शुरू किया। इसके लिए इन्हे कई बार बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा । लेकिन इन्होने बड़ी सफलतापूर्बक सबका निर्वाह किया फ़िल्म लेखन के साथ-साथ ये साहित्य रचना भी करते रहे । इन्होने जीवन को बड़े नजदीक से देखा और उसे साहित्य का विषय बनाया। इनके पात्र साधारण जीवन के होते और जीवन की समस्यों से जूझते हुए बड़ी जीवटता का परिचय देते है । इन्होने हिंदू -मुस्लिम संबंधो और बम्बई के फिल्मी जीवन को अपने साहित्य का विषय बनाया। इनके लिए भारतीयता आदमियत का पर्याय थी । इन्होने उर्दू साहित्य को देवनागरी लिपि में लिखने की शुरुआत की और जीवन पर्यंत इसी तरह साहित्य के सेवा करते रहे और इस तरह वे आम-आदमी के अपने सिपाही बने रहे । इस कलम के सिपाही का देहांत 15मार्च 1972 को हुआ। आईए, डालते हैं एक नजर उनकी एक कविता “लेकिन मेरा लावारिस दिल ” पर जो उनके विचारों को एक नया आयाम देती हैं ।
लेकिन मेरा
लावारिस दिल”
:
मस्जिद तो अल्लाह की ठहरी
मंदिर राम का निकला
लेकिन मेरा लावारिस दिल
अब जिस की जंबील में कोई ख्वाब
कोई ताबीर नहीं है
मुस्तकबिल की रोशन रोशन
एक भी तस्वीर नहीं है
बोल ए इंसान, ये दिल, ये मेरा दिल
ये लावारिस, ये शर्मिन्दा शर्मिन्दा दिल
आख़िर किसके नाम का निकला
मस्जिद तो अल्लाह की ठहरी
मंदिर राम का निकला
बंदा किसके काम का निकला
ये मेरा दिल है
या मेरे ख़्वाबों का मकतल
चारों तरफ बस खून और आँसू, चीखें, शोले
घायल गुड़िया
खुली हुई मुर्दा आँखों से कुछ दरवाजे
खून में लिथड़े कमसिन कुरते
जगह जगह से मसकी साड़ी
शर्मिन्दा नंगी शलवारें
दीवारों से चिपकी बिंदी
सहमी चूड़ी
दरवाजों की ओट में आवेजों की कबरें
ए अल्लाह, ए रहीम, करीम, ये मेरी अमानत
ए श्रीराम, रघुपति राघव, ए मेरे मर्यादा पुरुषोत्तम
ये आपकी दौलत आप सम्हालें
मैं बेबस हूँ
आग और खून के इस दलदल में
मेरी तो आवाज़ के पाँव धँसे जाते हैं।
मंदिर राम का निकला
लेकिन मेरा लावारिस दिल
अब जिस की जंबील में कोई ख्वाब
कोई ताबीर नहीं है
मुस्तकबिल की रोशन रोशन
एक भी तस्वीर नहीं है
बोल ए इंसान, ये दिल, ये मेरा दिल
ये लावारिस, ये शर्मिन्दा शर्मिन्दा दिल
आख़िर किसके नाम का निकला
मस्जिद तो अल्लाह की ठहरी
मंदिर राम का निकला
बंदा किसके काम का निकला
ये मेरा दिल है
या मेरे ख़्वाबों का मकतल
चारों तरफ बस खून और आँसू, चीखें, शोले
घायल गुड़िया
खुली हुई मुर्दा आँखों से कुछ दरवाजे
खून में लिथड़े कमसिन कुरते
जगह जगह से मसकी साड़ी
शर्मिन्दा नंगी शलवारें
दीवारों से चिपकी बिंदी
सहमी चूड़ी
दरवाजों की ओट में आवेजों की कबरें
ए अल्लाह, ए रहीम, करीम, ये मेरी अमानत
ए श्रीराम, रघुपति राघव, ए मेरे मर्यादा पुरुषोत्तम
ये आपकी दौलत आप सम्हालें
मैं बेबस हूँ
आग और खून के इस दलदल में
मेरी तो आवाज़ के पाँव धँसे जाते हैं।
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सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
रंगों की बहार!
छींटे और बौछार!!
फुहार ही फुहार!!!
रंगों के पर्व होलिकोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ!!!!
नमस्कार!
दिल लावारिस ही रहा..वाह..
ReplyDelete''नेरा लावारिश दिल'' , शीर्षक के शीर्ष पर इस तरह लिखा (मेरा नहीं नेरा और लावारिस नहीं लावारिश) जाना समझ में नहीं आया.
ReplyDeleteटंकण की त्रुणि हुई है । धन्यवाद ।
Deleteबहुत ख़ूबसूरत नज्म है. शायद मृत्यु की तिथि छापने में कुछ गडबड हो गयी है.
ReplyDeleteटंकण संबंधी त्रुटि हुई है । कृपया इसे 15 मार्च. 1992 पढ़ें । धन्यवाद ।
Deleteसुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteहोली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।
आपके ब्लॉग पर आना अच्छा लगा...
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति...
सादर.
बेहतरीन प्रस्तुति,राही जी को पढकर अच्छा लगा,..
ReplyDeleteहोली की बहुत२ बधाई शुभकामनाए...प्रेम जी
RECENT POST...काव्यान्जलि ...रंग रंगीली होली आई,
गहन अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteआपका सुंदर प्रयास इसे हम तक पहुँचाया ...!!
आभार.
बहुत अच्छे !
ReplyDeleteहोली का पर्व मुबारक हो !
शुभकामनाएँ!
मस्जिद तो अल्लाह की ठहरी
ReplyDeleteमंदिर राम का निकला
लेकिन मेरा लावारिस दिल
अब जिस की जंबील में कोई ख्वाब
कोई ताबीर नहीं है
मुस्तकबिल की रोशन रोशन
एक भी तस्वीर नहीं है
bahut khoob ....holi ki badhai
अच्छी प्रस्तुति .
ReplyDeleteहोली की शुभ-कामनायें !
Happy holi and Mahila divas both.
ReplyDeleteसुंदर प्रविष्टि !
ReplyDeleteआभार !
होली पर भी मेरी ओर से मंगलकामनाएं स्वीकार करें
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♥ होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार ! ♥
♥ मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !! ♥
आपको सपरिवार
होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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khoobsoorat jaankaari aur rachna!!
ReplyDeleteआग और खून के इस दलदल में
ReplyDeleteमेरी तो आवाज़ के पाँव धँसे जाते हैं। wah..kya bat hai ...wish you a happy holi
pram bhaiya main aapke ganv se laut aaya hoon.mujhe yah dekhkar kafi khushi huee ki aap logon ne janardan babu ke darwaje par ke shiv mandir ka gate banvane men aarthik yogdan diya hai.
ReplyDeleteब्रजकिशोर जी,, नमस्कार ।
Deleteकुछ कारणोंवश हम न जा सके ।ज नार्दन जी को बता भी दिया हूं । वे हमारे परिवार के सबसे शुभेच्छु लोग हैं । .
जनाब राही मासूम रजा के बारे में पढ़कर ज्ञानवर्धन हुआ।
ReplyDeletebahut kuch bata diye.....achcha laga.
ReplyDeletetouchy poem
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