खामोश भावनाओं की ऊपज
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(प्रेम सागर सिंह)
संभावनाओ की प्रत्याशा में,
जब ऊम्मीद की किरण
अपनी रश्मि बिखेरती है
और जब
फैला देती है समूचे परिवेश में
अपनी आभा की प्रतिच्छाया
जिसकी मद्धिम सी रोशनी में
दिख जाता है तुम्हारा
वह सजीला एवं सलोना सा रूप,
जो कभी मेरे अंतस को
न चाहते हुए भी
झकझोर देता था।
वक्त के साथ चलते-चलते
जब पुरानी बातें कभी-कभी
दिल के कोने से निकल कर
आँखों के सामने दिखती हैं
तब मन का कुछ असहज सा
हो जाना, क्या स्वभाविक नही है!
यदि स्वीकार भी कर लूं तो
ये बावरा मन न जाने क्यूं
मजबूर कर देता है सोचने के लिए।
बीते दिनों के संघर्ष को,
राग और विराग को,
जीत, हार और तारीफ को।
इन हालातों के दायरे में
विगत स्मृतियों का दुहराव
सिर्फ आहत भावनाओं की ऊपज है,
जो मेरी कोमल संवेदनाएं हैं,
जो न चाहते हुए भी मेरी
बेबश आँखों की कोरों से
फिसल कर धरा पर गिर
अपना वजूद खो देती है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (25-08-2014) को "हमारा वज़ीफ़ा... " { चर्चामंच - 1716 } पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद, शास्त्री जी।
Deleteबहुत खूब !!
ReplyDeleteसुंदर लेखन , आ. प्रेम सर धन्यवाद !
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बहुत खूब.कभी-कभी ऐसा भी होता है.
ReplyDeleteआपके पोस्ट का लिंक
ReplyDeletehttps://www.facebook.com/groups/605497046235414/ यहाँ भी है ... आप भी आयें
बहुत सुन्दर कविता है प्रेम जी.
ReplyDeleteधन्यवाद वन्दना जी।
Deleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ... बेहतरीन अभिव्यक्ति ...आभार
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
ReplyDeleteयादें तो कंकर सी होती हैं जो अतीत के सरोवर में हलचल मचा देती हैं...और वह शांत नीरव स्तर जब छिड़ता है तो हर ठहरा पल सतह पर तैरने लगता है ....फिर चाहे वह खट्टा हो या मीठा ...दुखद हो या सुखद ........बहोत सुन्दरता से आपने उस मन: स्तिथि को उकेरा है
ReplyDeleteसारस जी, आपकी प्रतिक्रिया ने मुझे अभिभूत कर दिया। आशा है भविष्य में भी आप मुझे इसी प्रकार प्रोत्साहित करती रहेंगी। धन्यवाग।
Deleteअतीत की यादें मन को झकझोर ही देती है, चाहे सुखद हो दुखद. बहुत भावपूर्ण रचना, बधाई.
ReplyDeleteBehad khoobsurat rachna ,jo man ko bha gayi .badhai ho aapko
ReplyDeleteधन्यवाद, ज्योति सिंह ।
ReplyDeleteअनुपम भाव, बहुत सुन्दर कविता
ReplyDeleteधन्यवाद स्मिता जी।
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