नवगीत
के विशिष्ट शिल्पकार कुमार रवींद्र जी अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से
अलंकृत है। अब तक उनके पांच नवगीत संग्रहों के अतिरिक्त पांच काव्य नाटक, एक
अंग्रेजी कविताओं और एक मुक्तछंद एवं लंबी कविताओं का संग्रह प्रकाशित हो चुका है।
प्रस्तुत है, उनका नवगीत “दिन
सुखी होगा”।
एक चुटकी नेह – संग
सूरज भिगाओ ताल में
दिन सुखी होगा
बंधु, मानो
यही नुस्खा है गझिन मधुमास का
आरती करती हवाओं की
नई बू -बास का
नही बीजो वेदना
जो रही पिछले साल में
दिन सुखी होगा।
आम फूला
सगुनपाखी कर रहा रितुगान है
कहीं वंशी बजी –
वह भी नेह का वरदान है
इन्हे साधो
काम आएँगे कठिन दुष्काल में
दिन सुखी होगा
देह में जो इंद्रधनुषी याचना है
उसे टेरो
व्यर्थ की चिंताओं की
भाई, सुमरिनी नही फेरो
हाट ने जो बुना जादू
मत फसो उस जाल में
दिन सुखी होगा
( www.premsarovar.blogspot.com)
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बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या बात
नही बीजो वेदना
ReplyDeleteजो रही पिछले साल में
दिन सुखी होगा।
काश ,सबके समझ में आजाती कितने फ़साद टल जाते !!
देह में जो इंद्रधनुषी याचना है
ReplyDeleteउसे टेरो
व्यर्थ की चिंताओं की
भाई, सुमरिनी नही फेरो
हाट ने जो बुना जादू
मत फसो उस जाल में
दिन सुखी होगा
बहुत सुन्दर भावों से भरी
हाट ने जो बुना जादू
ReplyDeleteमत फसो उस जाल में
दिन सुखी होगा
really nice.
mere blog par aayiye or mere swal padiye meri post KYUN???
http://udaari.blogspot.in
सुंदर नवगीत है।
ReplyDeleteसुन्दर....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.....
regards
anu
बहुत सुन्दर,बहुत सार्थक !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया |
ReplyDeleteआभार आपका ||
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteइतना सुन्दर, प्रेरणादायक नवगीत हम तक पहुँचाने का बहुत बहुत आभार
ReplyDeleteबहुत अच्छी कृति |
ReplyDeleteregards.
-आकाश
वाह!बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteलाजबाब प्रस्तुति.
शेयर करने के लिए आभार.
बहुत सुंदर रचना..नि:शब्द
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