मुझे
शुरू से ही अमृता प्रीतम जी की कविताओं को पढ़ने का मन करता है और जब भी उनकी किसी
भी कविता से मुलाकात होती है तो न जाने क्यूं उसमें गुंफित भाव आत्मीय से लगने
लगते है। सोच की दशा और दिशा कविता का अर्थ खोजने के बजाय “साहिर”
से प्रत्य़क्ष या कहें तो परोक्ष रूप में संवाद करते से महसूस होते हैं। कुछ
ऐसे ही चिंतन के साथ प्रस्तुत है उनकी कविता “एक
मुलाकात ”…….. ।
प्रस्तुतकर्ता:प्रेम सागर सिंह
एक
मुलाकात
मैं
चुप शान्त और अडोल खड़ी थी
सिर्फ पास बहते समुंद्र में तूफान था……फिर समुंद्र को खुदा जाने
क्या ख्याल आया
उसने तूफान की एक पोटली सी बांधी
मेरे हाथों में थमाई
और हंस कर कुछ दूर हो गया
सिर्फ पास बहते समुंद्र में तूफान था……फिर समुंद्र को खुदा जाने
क्या ख्याल आया
उसने तूफान की एक पोटली सी बांधी
मेरे हाथों में थमाई
और हंस कर कुछ दूर हो गया
हैरान
थी….
पर उसका चमत्कार ले लिया
पता था कि इस प्रकार की घटना
कभी सदियों में होती है…..
पर उसका चमत्कार ले लिया
पता था कि इस प्रकार की घटना
कभी सदियों में होती है…..
लाखों ख्याल आये
माथे में झिलमिलाये
माथे में झिलमिलाये
पर खड़ी रह गयी कि
उसको उठा कर
अब अपने शहर में कैसे जाऊंगी?
अब अपने शहर में कैसे जाऊंगी?
मेरे शहर की हर गली
संकरी
मेरे शहर की हर छत नीची
मेरे शहर की हर दीवार चुगली
मेरे शहर की हर छत नीची
मेरे शहर की हर दीवार चुगली
सोचा कि अगर तू कहीं
मिले
तो समुन्द्र की तरह
इसे छाती पर रख कर
हम दो किनारों की तरह हंस सकते थे
तो समुन्द्र की तरह
इसे छाती पर रख कर
हम दो किनारों की तरह हंस सकते थे
और नीची छतों
और संकरी गलियों
के शहर में बस सकते थे….
और संकरी गलियों
के शहर में बस सकते थे….
पर सारी दोपहर तुझे
ढूंढते बीती
और अपनी आग का मैंने
आप ही घूंट पिया
और अपनी आग का मैंने
आप ही घूंट पिया
मैं अकेला किनारा
किनारे को गिरा दिया
और जब दिन ढलने को था
समुंद्र का तूफान
समुंद्र को लौटा दिया….
किनारे को गिरा दिया
और जब दिन ढलने को था
समुंद्र का तूफान
समुंद्र को लौटा दिया….
अब रात घिरने लगी तो
तूं मिला है
तूं भी उदास, चुप, शान्त और अडोल
मैं भी उदास, चुप, शान्त और अडोल
सिर्फ - दूर बहते समुंद्र में तूफान है…..
तूं भी उदास, चुप, शान्त और अडोल
मैं भी उदास, चुप, शान्त और अडोल
सिर्फ - दूर बहते समुंद्र में तूफान है…..
**************************************************************************************
अमृता जी पढ़ना एक अनुभव है....खट्टा मीठा सा...
ReplyDeleteएक बेहतरीन लेखिका..
आभार प्रेमसरोवर जी.
सादर
अनु
धन्यवाद अनु जी।
Deleteऔर जब दिन ढलने को था
ReplyDeleteसमुंद्र का तूफान
समुंद्र को लौटा दिया….
अब रात घिरने लगी तो तूं मिला है
तूं भी उदास, चुप, शान्त और अडोल
मैं भी उदास, चुप, शान्त और अडोल
सिर्फ - दूर बहते समुंद्र में तूफान है…..
बहुत सुन्दर एहसास . या कह दें मानवीकरण . भावनाओं का सुन्दर सम्प्रेषण .
धन्यवाद सिंह साहब ।
Deleteगहरी और शान्त कविता..
ReplyDeleteसुन्दर और गहरी अनुभूति के
ReplyDeleteभाव है इन कविता में...
बहुत सुन्दर.....
:-)
अब रात घिरने लगी तो तूं मिला है
ReplyDeleteतूं भी उदास, चुप, शान्त और अडोल
मैं भी उदास, चुप, शान्त और अडोल
सिर्फ - दूर बहते समुंद्र में तूफान है…..
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ बहुत गहन भाव दर्शाते बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना |
धन्यवाद मीनाक्षी जी।
Deleteह्रदय में बहते हुए जज्बातों की एक श्रंखला शब्दों से बंधी हुई बहुत खूब
ReplyDeleteapne ehsaso ko is tara ke prateeko ke maadhyam se bhi kaha ja sakta hai ye hunar amrita ji ki lekhni se dekhne ko milta hai jo dosron ka path pradarshan ka kary bhi karta hai.
ReplyDeleteaabhar is itni sunder rachna ko padhane k liye.
धन्यवाद अनामिका जी।
ReplyDeleteखूबसूरत एहसास लिए ....कविता में फोंड की वजह से कहीं कहीं ...मात्राएँ नहीं पढ़ी जा रही ...जैसे कि
ReplyDeleteतूं भी उदास, चुप, शान्त और अडोल
मैं भी उदास, चुप, शान्त और अडोल
यहाँ चुप ...कॉपी ...पेस्ट के बाद सही से पढ़ा जा रहा है ...पर ऊपर कविता में उ की मात्रा नहीं लगी हुई नज़र आ रही है
अमृता जी को पढ़ना सुखद अहसास है...आभार !!
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeletewah prem ji ....amrita ji ko padhane ka avsar mil jaye to bahut khush hota hun ...sadar abhar sir
ReplyDeleteअमृता जी की एक उत्कृष्ट रचना पढवाने के लिये आभार...
ReplyDeleteइस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आभार
ReplyDeleteAmrita Preetam ko kam (na ke barabar) padh paya hun.. aapke is post se ek achha paathan ho saka..
ReplyDeletesaadar
Madhuresh
भाई प्रेम जी ... आपका प्रयास सार्थक रहा
ReplyDeleteधन्यवाद, पाण्डेय जी।
Deleteऔर जब दिन ढलने को था
ReplyDeleteसमुंद्र का तूफान
समुंद्र को लौटा दिया….
अब रात घिरने लगी तो तूं मिला है
तूं भी उदास, चुप, शान्त और अडोल
मैं भी उदास, चुप, शान्त और अडोल
सिर्फ - दूर बहते समुंद्र में तूफान है…..
adbhut bhav ...
bahut sundar rachna ...
abhar aapka ..!!
अमृता जी की रचना शेयर करने के लिए आभार , लाजवाब रचना ।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी लगी रचना..
ReplyDeleteKya koi iss kavita ka bhav samjha skta hai ????????
ReplyDelete