संसार
में पांच तत्वों के तीन गुण
(प्रेम सागर सिंह)
प्रस्तुतकर्ता: प्रेम सागर सिंह
यह सारा
संसार पांच तत्वों से बना है और इन पांच तत्वों के तीन गुण हैं-सतोगुण, रजोगुण एवं
तमोगुण। किसी अमुक समय पर इन गुणों में से किसी एक गुण की हमारे जीवन और वातावरण
में प्रधानता रहती है। यही तीन गुण हमारी चेतना की तीन अवस्थाओं- जागृत अवस्था, सुप्ताव्स्था
और स्वप्नावस्था से भी संबंधित है । जब सतोगुण की हमारे
शरीर और वातावरण में प्रधानता रहती है तो हम प्रफुल्लित, हल्के-फुल्के, अधिक सजग
और बोधपूर्ण होते हैं। रजोगुण की प्रधानता में उत्तेजना, विचार, इच्छाएं और वासनाएं
बहुत बढ़ जाती है। बहुत कुछ करने की इच्छा होती है । हम या तो बहुत खुश या उदास
होते रहते हैं । यह सब रजोगुण के लक्षण
हैं । जब तमोगुण प्रधान होता है तो हम सुस्ती, आलस्य और भ्रम के शिकार हो जाते हैं
। कुछ का कुछ अर्थ लगाने लगते हैं ।
इसी भांति
हमारे भोजन में यही तीन गुण विद्यमान रहते हैं और हमारा मन भी इन तीन गुणों से
प्रभावित होता है । हमारे कृत्यों में भी इन तीन गुणों की झलक देखने को मिलती है । जब सत्य की
हमारे जीवन में प्रधानता होती है तो रजोगुण और तमोगुण गौड़ हो जाते हैं, उनका
प्रभाव कम रह जाता है और रजोगुण की अधिकता में सत्व और तमस गौड़ हो जाते हैं व
तमोगुण के प्रधान होने पर सत्व और रजस पीछे रह जाते हैं, उनका प्रभाव कम हो जाता
है। इन्ही तीनों गुणों के बल पर यह संसार और जीवन चलता है। पशु भी इसी
प्रकृति से संचालित होते हैं।परंतु उनमें कोई असंतुलन नही होता । न तो आवश्यकता से
अधिक खाते हैं, न ही अधिक काम करते हैं,न अधिक काम वासना में उतरते हैं। उनसें कुछ
भी कम या अधिक करने की स्वतंत्रता ही नही होती।
मनुष्य कुछ
भी करने को स्वतंत्र है। अच्छा या बुरा, कम या अधिक, क्योंकि स्वतंत्रता के साथ ही
उसको विवेक शक्ति भी प्राप्त है। स्वतंत्रता और विवेक दोनों ही उसके पास है। हम
अधिक खाकर बीमार होने को भी स्वतंत्र हैं और ऐसे ही अधिक सोकर सुस्त और आलसी भी हो
सकते हैं । हम किसी भी कार्य में आसक्त होकर या उसमें अति करके समस्याओं और
बीमारियों को निमंत्रित कर सकते हैं । इन तीन गुणों
में संतुलन साधना, ध्यान और मौन रह कर किया जा सकता है । इसके द्वारा हम अपने अंदर
सत्व गुण बढ़ा सकते हैं। सामान्यत: व्यक्ति नींद में
स्वप्न तो देखता ही है, जाग्रत अवस्था में भी दिन में स्वप्न देखता रहता है ।
हमारा मन अधिकतर भूत और भविष्य के सोच में उलझा रहता है । जीवन में प्रखर चेतना और
सजगता का अनुभव प्राय; व्यक्ति कभी कभार ही कर सकता है, ऐसे
सात्विक क्षण बहुत ही दुर्लभ होते हैं। अत: हम जीवन में
प्रफुल्लता और प्रसन्नता को बहुत कम ही अनुभव कर पाते हैं । प्राणायाम, क्रिया,
ध्यान और आत्म-ज्ञान के द्वारा जीवन में सत्य का उदय होता है. अच्छे लोगों की
संगति भी हमारे में सत्व को बढ़ाती है ।
नोट:- अपने किसी
भी पोस्ट की पृष्ठभूमि में मेरा यह प्रयास रहता है कि इस मंच से सूचनापरक साहित्य
एवं संकलित तथ्यों को आप सबके समक्ष सटीक रूप में प्रस्तुत करता रहूं किंतु मैं
अपने प्रयास एवं परिश्रम में कहां तक सफल हुआ इसे तो आपकी प्रतिक्रिया ही बता
पाएगी । इस पोस्ट को अत्यधिक रूचिकर एवं सार्थक बनाने
में आपके सहयोग की तहे-दिल से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद सहित- आपका प्रेम
सागर सिंह
(www.premsarowar.blogspot.com)
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यही तीन गुण तो प्रकृति के कारक हैं।
ReplyDeleteतीनो गुणों की बहुत ही सुंदर विवेचना की,,,,
ReplyDeleteजानकारी देने के लिये आभार,,,,प्रेम सरोवर जी,,
MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: विचार,,,,
तीनों गुणों से परिचय करवाने का शुक्रिया....
ReplyDeleteआभार.
अनु
इस सुन्दर जानकारी के लिए बहुत बहुत आभार ....!!!!!!
ReplyDeleteबहोत सटीक जानकारी और इस तीनो गुणों की परिभाषा समझाने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteहिन्दी दुनिया ब्लॉग (नया ब्लॉग)
-सतोगुण, रजोगुण एवं तमोगुण की परिभाषा समझाने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteअच्छी जानकारी!
ReplyDeleteaap dwara di gai jaan kaari bahut hi badhiya lagi---sir
ReplyDeletepanch-tatvon ke baare me to pata tha aur inke teeno guno ke baare me bhi
parantu vistrit jaan-kaari aapke aalekh dwaraprapt hui ---
hardik dhnyvaad ke saath
poonam
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति प्रेम जी.बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद प्रीत अरोड़ा जी ।
Deleteyeh lekh bahut hi gyanvardhak hai. aur diary karne laayak. shukriya ise ham tak pahunchane k liye.
ReplyDeletebahut accha lekh ..varnan karne ka tarika accha hai...
ReplyDeleteसुन्दर सत्य कहता सुन्दर आलेख.... आभार..
ReplyDeletei like it
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