नकेनवाद के जनक : नलिन विलोचन शर्मा
(1916-1960 ई.)
आधुनिक हिन्दी कविता में 'नकेनवाद के जनक नलिन विलोचन शर्मा का जन्म पटना में हुआ । इन्होंने हिन्दी एवं संस्कृत में एम.ए. करके पहले आरा, पटना, रांची में अध्यापन कार्य किया, पश्चात पटना विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष हुए तथा अंत तक वहीं रहे । 'दृष्टिकोण (आलोचना), 'मानदण्ड (निबंध संग्रह), 'विष के दांत (कहानी संग्रह) तथा 'साहित्य का इतिहास दर्शन इनकी उल्लेखनीय रचनाएं हैं । इन्होंने 'साहित्य, 'दृष्टिकोण और 'कविता पत्रिकाओं तथा कई महत्वपूर्ण पुस्तकों का सम्पादन किया । इनका कविता संग्रह 'नकेन’ के प्रपद्य है, जिसमें भावों को व्यक्त करने का एक नया ही तरीका अपनाया गया । प्रस्तुत है उनकी एक कविता – ‘एक नापसंद जगह”
एक नापसंद जगह
एक दिन यहां मैंने एक कविता लिखी थी,
यहां जहां रहना मुझे नापसंद था।
और रहने भेज दिया था।
जगह वह भी, जहां रहना अच्छा लगता है
और रहता गया हूँ,
वहां शायद ही हो कि कविता कभी लिखी हो।
आज फिर इस नापसंद जगह
डाल से टूटे पत्ते की तरह
मारा-मारा आया हूँ,
और यह कविता लिख गई है,
इस जगह का मैं कृतज्ञ हूँ,
इस मिट्टी को सर लगाता हूँ,
इसे प्यार नहीं करता, पर
बहुत-बहुत देता हूँ आदर,
यह तीर्थ-स्थल है, जहां
मैं मुसाफिर ही रहा,
यह वतन नहीं,
जहां जड और चोटी
गडी हुई,
जो कविता की प्रेरणाओं से अधिक महत्व की बात है।
यहां मैं दो बार मर चुका हूँ-
एक दिन तब जब पहली कविता
यहां लिखी थी,
और दूसरे आज जब इस कविता
की याद में कविता
लिख रहा हूँ-
घर के शहर में जीता रहा हूँ
और मरने के बाद भी
जीता रंगा : एक लाकेट में कैद,
किसी दीवार पर टंगा चित्रार्पित,
एक स्मृति-पट पर रक्षित अदृश्य
अमिट।
लेकिन यहां से कुछ ले जाऊंगा,
कुछ तो पा ही
चुका हूँ : दो-दो कविताएं,
दिया कुछ नहीं है, देना कुछ नहीं,
सिवा इसके-
मेरे प्रणाम तुम्हें,
इन्हें ले लो, इन्हें।
**********************************************************************************
बहुत बढ़िया....कुछ ऐसा जो आमतौर पर पढ़ने नहीं मिला करता...बधाई प्रेम सरोवर जी.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteशर्मा जी को पहले भी पढ़ा था अपनी पाठ्य-पुस्तक में . उनकी कविता को पढवाने के लिए आभार. ऐसा लगा मानो कई कविता जन्म ले रही है .
ReplyDeleteअच्छा लगा नलिन विलोचन शर्मा जी को यहाँ पढ़ना!
ReplyDeleteइस प्रस्तुति के लिए आभार!
नलिन विलोचन शर्मा जी की लघुकथा "विष के दांत" हमारे कोर्स में हुआ करती थी.. यह कविता बहुत ही प्रभावशाली है.. इनकी पत्नी हमारी गुरु रही हैं रेडियो और मंचीय नाटकों में...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति!!
विद्या,अनुपमा पाठक एवं सलील वर्मा जी आप सबका आभार ।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति !
ReplyDeleteउपयोगी पोस्ट !
लोकतंत्र के चौथे खम्बे पर अपने विचारों से अवगत कराएँ ।
औचित्यहीन होती मीडिया और दिशाहीन होती पत्रकारिता
aisi jaankariyan bahut mushkil se milti hain. aabhar in mahan lekhak se parichay karane k liye.
ReplyDeleteबहुत कुछ पठनीय है यहाँ आपके ब्लॉग पर ... लगता है इस अंजुमन में आना होगा बार बार..
ReplyDeleteधन्यवाद !
साहिल जी आपका आभार ।
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteइनके बारे में कोई जानकारी नहीं थी जानना अच्छा लगा।
ReplyDeleteइस वाद के बारे में कभी विस्तार से बताएं।
पहली बार सुना है।
बहुत अच्छी लगी यह जानकारी!! आभार!!
ReplyDeleteजिस स्थान पर बैठ कर भीतर से कुछ बह निकले वह स्थान एक कवि के लिये तीर्थ से कम तो नहीं... बहुत सुंदर कविता, एक जगह रहूँगा की जगह रंगा लिखा गया है.
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया, महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त हुई! शानदार पोस्ट!
ReplyDeleteनलिन विलोचन शर्मा का ये संग्रह अच्छा लगा नापसंद जगह बहुत पसंद आई ..यही देखने को मिल रहा है आज समाज में ...
ReplyDeleteआभार
भ्रमर ५
घर के शहर में जीता रहा हूँ
और मरने के बाद भी
जीता रंगा : एक लाकेट में कैद,
किसी दीवार पर टंगा चित्रार्पित,
एक स्मृति-पट पर रक्षित अदृश्य
अमिट।
औसत दर्जे की कविता मालूम होती है।
ReplyDeleteअच्छा लगा कुछ नया जानने को मिला.
ReplyDeleteआभार
बहुत अच्छा लिखा आपने !!
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई आपको
अब आपको ब्लॉग को फोलो कर रहा हूँ तो आता रहूँगा आपकी रचनायो को पढने के लिए
मनोज बिजनौरी जी आपका आभार ।
ReplyDeleteनए विषय पर सुंदर रचना बधाई ....
ReplyDeleteमेरे पोस्ट पर स्वागत है ...
धीरेंद्र जी, आपकी प्रतिक्रिया से मेरा मनोबल बढा है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा नलिन विलोचन शर्मा जी को यहाँ पढ़ना...
ReplyDeleteप्रस्तुति के लिए आभार...
कुशुनेष जी एवं संध्या शर्मा जी ,आप सबकी आपक प्रतिक्रिया से मेरा मनोबल बढा है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteकविता बीते हुए को सामने लाने का सफल प्रयास।
ReplyDeleteअविनाश वाचस्पति जी आपका आभार । फिर मिलेंगे ।
ReplyDeleteप्रेम जी, नकेनवाद के बारे में कुछ और जानने की उत्सुकता है। अधिक जानकारी कहाँ मिल सकती है?
ReplyDeletepadhkar bahut accha laga.aur aapke blog par aakar bhi....
ReplyDelete1.@ Smart Indian Jee, आपको कहीं जाना नही पड़ेगा, मैं नकेलवाद पर विस्त़ जानकारी यथाघीघ्र प्रस्तुत करूंगा । आपके जिज्ञासा की इज्जत करता हूँ ।
ReplyDelete2. कानू जी, आपकी प्रतिक्रिया से मेरा मनोबल बढा है । धन्यवाद ।
नकेलवाद - अपुन के लिए नया शब्द है जी - जानकारी के लिए आभार...
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति .शोधपरक पोस्ट .
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति.......!
ReplyDeleteबधाई........!!
आपके ब्लॉग पे एक अलग तरह की जानकारी एवं रचनाएँ पढने को मिलती है ...बहुत अच्छी प्रस्तुति !
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसबसे अलग
शुभकामनाएं
नलिन जी की अप्रतिम रचना हम तक पहुँचाने के लिए साधुवाद...
ReplyDeleteनीरज
अध्बुध लेखन ... सच में अलग ही चिंतन और अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteनलिनजी पर और लिखे जाने की जरुरत है ।
ReplyDeleteनलिनजी पर और लिखे जाने की जरुरत है ।
ReplyDelete