बच्चन जी नहीं खरीद सके 'दशद्वार'
(दसद्वार से सोपान एवं फिर प्रतीक्षा तक का सफर)
(हरिवंश राय बच्चन )
(जन्म-27 नवम्बर,1907, निधन-18जनवरी,2003)
‘मैं छुपाना जानता तो जग मुझे साधु समझता
शत्रु मेरा बन गया है, छल रहित व्यवहार मेरा’
27 नवंबर 1907 को इलाहाबाद में जन्मे हरिवंश राय बच्चन ने प्रयाग विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने के बाद कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पीएच.डी. किया। आपने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन किया और बाद में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ रहे । राज्यसभा के मनोनीत सदस्य के रूप में भी आपने दायित्व निर्वाह किया । हालावाद के एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ के रूप में बच्चन जी सदैव याद किये जाएंगे। “मधुशाला” जैसी अमर कृति के इस रचयिता को अनेक पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए। गीतों के इस सौदागर के गीतों में दर्शन, प्रेम और आध्यात्म सहज ही झलक उठते हैं। ‘निशा-निमंत्रण’, ‘प्रणय पत्रिका’, ‘मधुकलश’, ‘एकांत संगीत’, ‘सतरंगिनी’, ‘मिलन यामिनी’, ”बुद्ध और नाचघर’, ‘त्रिभंगिमा’, ‘आरती और अंगारे’, ‘जाल समेटा’, ‘आकुल अंतर’ तथा ‘सूत की माला’ नामक संग्रहों में आपकी रचनाएँ संकलित हैं। आपकी कृति ‘दो चट्टाने’ को 1968 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मनित किया गया। इसी वर्ष उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार तथा एफ्रो-एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। आपकी आत्मकथा चार भागों में प्रकाशित हुई है। बिड़ला फाउन्डेशन ने इस आत्मकथा के लिये आपको सरस्वती सम्मान दिया। सहजता और संवेदनशीलता उनकी कविता का एक विशेष गुण है। यह सहजता और सरल संवेदना कवि की अनुभूति मूलक सत्यता के कारण उपलब्ध हो सकी। बच्चन जी ने बडे साहस, धैर्य और सच्चाई के साथ सीधी-सादी भाषा और शैली में सहज कल्पनाशीलता और जीवन्त बिम्बों से सजाकर सँवारकर अनूठे गीत हिन्दी को दिए। 18 जनवरी सन् 2003 को मुम्बई में आपका निधन हो गया। इलाहाबाद के सिविल लाइंस के 17 क्लाइव रोड वाले भव्य मकान में हालावाद के प्रवर्तक डॉ. हरिवंश राय बच्चन बतौर किरायेदार लंबे समय तक रहे और इसे अपना स्थायी आशियाना बनाने की उनकी दिली तमन्ना थी लेकिन उस मकान को खरीदने की उनकी ख्वाहिश कभी पूरी न हो सकी। हरिवंश राय बच्चन के शिष्य और उनको करीब से जानने वाले अजीत कुमार ने बताया कि बच्चन जी की इच्छा के चलते अमिताभ भी इलाहाबाद में सिविल लाइंस के 17 क्लाइव रोड़ वाले मकान को खरीदना चाहते थे और कहीं न कहीं इस मकान को संग्रहालय में तब्दील कराने की इच्छा रखते थे। इस मकान में बच्चन जी ने इलाहाबाद प्रवास के दौरान अपना समय गुजारा था और इसके साथ उनकी तमाम मधुर स्मृतियाँ जुड़ी थीं। शायद यही एक प्रमुख कारण रहा होगा जिसकी वजह से वह इसे खरीदना चाहते थे। इस मकान का निर्माण इलाहाबाद संग्रहालय में कार्यरत ब्रजमोहन व्यास ने कराया था, जिसे बाद में श्रीशंकर तिवारी ने खरीद लिया और इस वक्त इसका मालिकाना हक उनके वंशजों के पास है। बच्चन ने अपनी आत्मकथा के चौथे खंड ‘दशद्वार से सोपान तक’ में लिखा है, ‘दशद्वार’ और ‘सोपान’ दो घरों के नाम हैं। इलाहाबाद के क्लाइव रोड वाले मकान को दशद्वार नाम दिया, क्योंकि यह मकान रोशनी वाला और हवादार था। इसमें दस दस खुली जगह थी, जिनसे रोशनी और हवा अंदर आती है। ‘क्या कबीर के दोहे ‘दसद्वारे पिंजरा तामे पंछी पौन। रहबे को अचरज है जाए तो अचरज कौन।।’ को ध्यान में रखकर इसका निर्माण किया गया था। मौत प्राय: अचरज में डाल देती है । अचरज करने की चीज तो जिंदगी है।’ हरिवंश राय बच्चन स्वयं का परिचय इन पंक्तियों से कराते थे, ‘मिट्टी का तन, मस्ती का मन, क्षण भर जीवन, मेरा परिचय।’ बच्चन ने लिखा है, ‘एक दफा जब वह व्यास जी से मिले तो उन्हें अपनी सूझ बताई। उन्होंने कहा, ‘क्या खूब पकड़ा है।’ इस मकान को उन्होंने अपनी पत्नी ललिता के नाम पर ललिताश्रम नाम दिया था।’ उन्होंने आगे लिखा है कि दिल्ली के गुलमोहर पार्क के मकान का नाम उन्होंने ‘सोपान’ दिया है । जनता सरकार के कार्यकाल में जब बच्चनजी मुंबई चले गए और वहाँ की आबोहवा उन्हें रास नहीं आ रही थी। उसी दौरान उन्होंने क्लाइव रोड वाले मकान को खरीदने की इच्छा जाहिर की थी। यह कोई 70 के दशक का आखिर का दौर रहा होगा। लेकिन किन्हीं कारणों के चलते यह सौदा हो नहीं पाया । बच्चन जी के मकान मालिक रहे दिवंगत श्रीशंकर तिवारी ने भी एक दफा बताया था कि उन्होंने इस मकान को खरीदने की ख्वाहिश रखी थी और उस वक्त उन्होंने कहा था, ‘गुरूजी यह आपका मकान है, जब चाहे तब आइए और जब तक दिल करे इसमें रहिए, लेकिन मैं इसे बेचूँगा नहीं ।’
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रोचक विवरण।
ReplyDeletekahan se laye aap intni jankari ?padh kar aanand aaya aapka dhnyavad
ReplyDeleterachana
संजय जी एवं मेरा साहित्य जी आप लोगों को मेरा आभार ।
ReplyDeleteरोचक जानकारी को जीवंत ढंग से बयां आपने .... आभार
ReplyDeleteInteresting and appealing information .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया, महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त हुई! शानदार और रोचक विवरण ! बेहतरीन पोस्ट!
ReplyDeleteडॉ मोनिका वर्मा, Zeal एवं बबली जी आप लोगों की टिप्पणी से मेरा मनोबल बढ़ा है । भविष्य में भी आपकी प्रतिक्रियों की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।
ReplyDeletearey waah... ye baatein hame nahi pata thi... bahut-bahut shukriya inhe itne sajag tareeke se prastut karne ke liye...
ReplyDeleteBehad rochak aalekh...aapkee shaili aisee hai,jaise koyi saamne baith baatcheet kar raha ho!
ReplyDeleteपूजी एवं त् क्षमा जी आप लोगों की टिप्पणी से मेरा मनोबल बढ़ा है । भविष्य में भी आपकी प्रतिक्रियों की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।
ReplyDeleteEKDAM NYI jankari NICE POST
ReplyDeleteDUSK-DRIZZLE, Thanks for your first appearance and comment.
ReplyDeleteरोचक जानकारी।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया और रोचक ज्ञानवर्धक जानकारी प्रस्तुति के लिए आभार!
ReplyDeleteHarivansh ji ke baare mein itni vistrit jaankaari padhkar achchha laga. dashdwaar ki tarah kitni ikshaayen adhuri rah jati hai hamari. is lekh ke liye aabhar.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर जानकारी मिली इस प्रसंग से..
ReplyDeleteजय श्री राम
हरिवंश राय बच्चन जी स्वच्छंद कवि हैं...उनकी जीवनी हिंदी साहित्य की अनमोल धरोहर है। उन्होंने जितनी साफगोई से अपनी जीवनी लिखी है...वह ईमानदार जीवनियों में से एक है। आपने सही उद्धृत किया है कि-
ReplyDelete‘मैं छुपाना जानता तो जग मुझे साधु समझता
शत्रु मेरा बन गया है, छल रहित व्यवहार मेरा’
दशद्वार से सोपान तक की जानकारी देने और मनुष्य की अतृप्त इच्छाओं का यह सफर हमारे साथ बांटने के लिए धन्यवाद!!!
हरिवंशराय बच्चन की बहतरीन जानकारी देने के लिए आभार ..
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट में स्वागत है ...
आशुतोष, मनोज भारती एवं धीरेंद्र जी आप लोगों की टिप्पणी से मेरा मनोबल बढ़ा है । भविष्य में भी आपकी प्रतिक्रियों की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबच्चन जी के बारे में आपका ये आलेख बहुत अच्छा लगा...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
बहुत ही ज्ञानवर्धक प्रस्तुति आपकी कलम से ... आभार ।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteवाह क्या बात कही :)
ReplyDelete‘मैं छुपाना जानता तो जग मुझे साधु समझता
शत्रु मेरा बन गया है, छल रहित व्यवहार मेरा’
हम तो ये कहेंगे ..अपने आप को छुपा कर कोई जिया तो क्या जिया ..अपने ही परिचय से वो फिर बेजार रहा |
बच्चन जी के बारे में पहले नहीं पढा था उनके बारे में जानना अच्छा लगा आपका शुक्रिया दोस्त |
मानाक्षी पंत जी आपने सही कहा है - अपने आप को छुपा कर कोई जिया तो क्या जिया । आपकी प्रतिक्रिया ले मेरा मनोबल बढा है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteapko bhi shubhkamnayein..
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी
ReplyDeleteशुभकामनाएं
प्रेम सरोवर जी बता नहीं सकता कि मैं कितना खुश और संतुष्ट हूँ आपके इस बच्चन जी के आलेख पढ़ कर...मैं तो इनके ऊपर हर आलेख को तलाशते रहता हूँ !
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यबाद आपका इस आलेख के लीये!
और हाँ आप मेरे ब्लॉग पे आकर जो हमें उत्साहित किया उसके लीये बहुत बहुत आभार ... !
बहुत अच्छी जानकारी..धन्यवाद.
ReplyDelete'बच्चन'जी के जीवन से संबन्धित जानकारी ज्ञानवर्धक है।
ReplyDeletevery interesting post ..
ReplyDeleteरोचक जानकारी का बहुत सुंदर प्रस्तुतीकरण....
ReplyDeleteरोचक जानकारियाँ मिलीं...आभार|
ReplyDeleteबच्चन जी की इतनी रोचक तथा नई जानकारी के लिए आभार !
ReplyDeleteबच्चन जी मेरे सबसे प्रिय कवि हैं।
ReplyDeleteउनकी आत्म कथा के अधिकांश अंश बिना रुके पढ़ा।
आपके इस आलेख द्वारा बहुत सी बातें याद आ गई।
Respected sir,thanks alot for coming to my blog.You are personally requested to visit it time and again and comment as per yr wishes.A very interesting article revealing new facts about legendary dr.bacchan.my best wishes.
ReplyDeletedr.bhoopendra
rewa
हरिवंश राय बच्चन जी पर विस्तृत जानकारी | अभी तक हम तो अनभिज्ञ थे | उपलब्ध करवाने के लिए शुक्रिया |
ReplyDeleteयदि आपकी आज्ञा हो तो इस लेख के कुछ अंश "टिप्स हिंदी में" के काव्य मंच पेज पर लिंक कर दूं |
समय मिले तो इस ब्लॉग का भी भ्रमण करें
टिप्स हिंदी में
श्री मनोज कुमार जी,
ReplyDeleteमेरे पोस्ट पर आपके आगमन से अत्यंत खुशी हुई है क्योंकि आपने ही मेरी ऊंगली पकड़ कर यहां तक की सफर करा दी है । आशा है भविष्य में भी आप आपनी कृपादृष्टि बनाए रखेंगे । आपका एवं अभिव्यंजना जी का आभार । शुभ रात्रि ।
वनीत नागपाल जी ,
ReplyDeleteआपको सहर्ष अनुमति प्रदान करता हूं कि आपको जहाँ भी उचित लगे इस पोस्ट को लगा दें । सादर ।
अच्छी जानकारी .
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeletegood information
ReplyDeletethanks for information...
अब उनके बेटे तो कई दशद्वार या सोपान एक विज्ञापन से ही खरीद सकते हैं…मैंने सोचा कि कभी पैसे नहीं ले गए होंगे, या कम रहे होंगे तब किताब नहीं खरीद पाए होंगे लेकिन यहाँ तो बात ही दूसरी थी…
ReplyDeleteमैं छुपाना जानता तो जग मुझे साधु समझता
शत्रु मेरा बन गया है, छल रहित व्यवहार मेरा’ …लाजवाब, शानदार, बहुत अच्छा, छद्म साधु-संन्यासी से दूर…
रतन सिंह शेखावत जी आपका आभार ।
ReplyDeleteरोचक शैली में आपने हरिवंश राय जी के जीवन के इस प्रसंग को छुआ है ... बहुत अच्छा लगा ....
ReplyDeleteदिगंबर नासवा जी आपका आभार ।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति,शुरुआत में जो शेर है उसने तो पोस्ट में चार चाँद लगा दिए,आभार !
ReplyDeleterochak prastuti....abhar..
ReplyDeletederi se pahunchne k liye kshama chaahti hun.
ReplyDeleteaaj bahut se anchhuye pahluon ko apke aalekh dwara jaanNe ka mauka mila. bahut bahut aabhar jo in barikiyon se hame aapne avgat karaya.
behtareen prastuti.
बच्चन जी के जीवन से जुडी एक और जानकारी मिली। आभार प्रेम जी॥
ReplyDeleteअनामिका जी,
ReplyDeleteमैं इसका श्रेय श्री मनोज कुमार जी को देना चाहूँगा जिन्होंने मेरी अंगुली पकड़ कर .यहां तक की सफर करा दिया है । मेर पोस्ट पर आपके आगमन से मेरी साहित्यिक चिंतन - धारा को एक नई दशा और दिशा मिली हैं । सादर ।
बच्चन जी को पढना हमेशा ही अच्छा लगा है मुझे...उनके बारे में दी गयी इस जानकारी के लिए आपका धन्यवाद्!
ReplyDeleteबच्चन जी का छुपा पृष्ठ है, अति रोचक
ReplyDeleteharivansh rai bachchan ji mere pasndeeda kaviyon me se ek hain unke vishay me padhkar achcha laga.aapke blog par aana saarthak raha.
ReplyDeleteप्रेम बाबू!
ReplyDeleteआपकी पोस्ट मेरे ब्लॉग पर अपडेट नहीं हो रही है... कृपया देखें, वहाँ अभी-भी 'पथ की पहचान' ही दिख रहा है.. इसलिए विलम्ब हुतु क्षमा याचना के साथ स्पष्टीकरण भी दे रहा हूँ...
बच्चन जी मेरे प्रिय कवियों में से एक हैं और उनकी लगभग सारी पुस्तकें जिनका आपनी ज़िक्र किया है, मेरे व्यक्तिगत संकलन में हैं.. इन काव्य संग्रह के अतिरिक्त, मैं जोड़ना चाहूँगा कि उनके द्वारा अनूदित हैमलेट,मैकबेथ और ऑथेलो भी नायाब है... बिलकुल शेक्स्पियेर की तरह अनुवाद किया है मूल से, अर्थात जहाँ गद्य संवाद हैं वहाँ गद्य और जहाँ पद्य हैं वहाँ पद्य... गीतों को भी वैसा ही स्थान दिया है.. लगता है मानो शेक्सपियेर ने हिन्दी में ये नाटक लिखे हैं...यही बात उनके इट्स के काव्यानुवाद के साथ भी लागू होती है...
उनकी सत्य की स्वीकारोक्ति ही उनको एक महान इंसान बनाती है, जो उनकी आत्मकथा की प्रथम तीनों श्रृंखला (क्या भूलूँ क्या याद करूँ,नीड़ का निर्माण फिर और बसेरे से दूर) में मिलता है...
बहुत अच्छा लगा उनके बारे में आपकी अभिवक्ति देखकर!! मेरा प्रणाम उस महान कवि के चरणों में!!!
शत्रु मेरा बन गया है छल रहित व्यवहार मेरा ...
ReplyDeleteबच्चन जी की यद् ताजा होगई ..रोचक विवरण ..
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए
धन्यवाद
sundar post...nayi jankari mili...
ReplyDeleteबच्चन जी को स्मरण करना अच्छा लगा।
ReplyDeleteआभार आपका।
बच्चन जी के विषय में यह जानकारी मेरे लिये नई व विस्मयकारी है ।
ReplyDeleteइतने अच्छे आलेख के लिये आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ।
सुंदर आलेख अच्छी जानकारी..उनकी रचना मधुशाला की याद आ गई ..
ReplyDeleteनए पोस्ट में स्वागत है....
ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए आभार!
ReplyDeleteबहुत ही बढिया आलेख
ReplyDeleteरोचक प्रस्तुति ...
ReplyDelete'बच्चन'जी के जीवन से संबन्धित जानकारी ज्ञानवर्धक है।
ReplyDeleteनमस्कार प्रेम सागर जी, आप " गीत अंतरात्मा के " पर आये बहुत ख़ुशी हुई ,आप ने जो खुद के बारे में लिखा है वो बहुत ही अच्छा,बहुत कम लोग ऐसे लिख पाते,आप का ब्लॉग सच में बहुत ही उम्दा है....बधाई...
'बच्चन'जी के जीवन से संबन्धित जानकारी ज्ञानवर्धक है।