मौन समर्थन
प्रेम सागर सिंह
जब भी नैराश्य की कालिमा में खोने लगता हूँ
जब लगने लगता है- निरूद्देश्य भटकता हूँ,
जब मन भर आता है,
पलकें लुढकना चाहती हैं,
हृदय के सूनेपन को वेदनाएँ भरना चाहती हैं
जब मन का सूरज अस्त होने लगता है,
थके हृदय का पसीना आँखों में चमकता है।
जब बोझिल थका सिर
किसी प्रेमी कंधे पर टिकना चाहता है-
उत्साह बुझ-बुझ सा जाता है,
उमंग सूख-सूख सा जाता है,
तुम्हारे हृदय का मौन समर्थन,
तुम्हारी वाणी का अनिर्णीत उल्लास,
आँखों से बरस-बरस पड़ता प्रेमाग्रह,
तुम्हारे पोर-पोर में रचा-बसा प्रेम,
तुम्हारे हृदय का निर्मल उच्छवास,
भर देता है मेरे रोम-रोम में प्रेम.
तुमने मुझमें कुछ देखा है या नही
यह तो तुम्हारा मन ही जानता है।
पर मैंने तुममे जो कुछ भी देखा है
उसे मेरा दिल ही जानता है
मैं तुम बिन कितना विकल रहता हूँ,
यह तो रब ही जानता है ।
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जब बोझिल थका सिर
ReplyDeleteकिसी प्रेमी कंधे पर टिकना चाहता है-
जीवन की सच्चाई को उजागर करती गहन अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
सुखमय होता साथ किसी का।
ReplyDelete@ बोझिल थका सिर किसी प्रेमी कंधे पर टिकना चाहता है-
ReplyDeleteमन को सुकून देते इस पल की कोई कीमत नहीं। मन को स्पर्श करती यह रचना बहुत ही भावपूरित है।
गहन भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteआपके ब्लॉग की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर
ब्लोगोदय नया एग्रीगेटर
पितृ तुष्टिकरण परियोजना
प्रेम का एक ये भी अन्दाज़ होता है……………बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजब बोझिल थका सिर
ReplyDeleteकिसी प्रेमी कंधे पर टिकना चाहता है-
जो भी है बस यही एक पल है..सुन्दर अभिव्यक्ति.
तुमने मुझमें कुछ देखा है या नही
ReplyDeleteयह तो तुम्हारा मन ही जानता है।
अक्सर कविता का जन्म नैराश्य की ओर
जाते हुए,उल्लास की ओर आते हुए, उलझ्न मे समाधान है।
आशावादी भावाभिव्यक्ति ।
पर मैंने तुममे जो कुछ भी देखा है
ReplyDeleteउसे मेरा दिल ही जानता है
मैं तुम बिन कितना विकल रहता हूँ,
यह तो रब ही जानता है ।
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति है ...सुन्दर रचना पढवाने के लिए आभार
प्रेम की गहरी अनुभूति लिए ... खूबसूरत रचना ...
ReplyDeleteek nayno ka prem hi to hai, ek sparsh ka prem hi to hai chaahe vo ek preyasi ka ho, maa ka ho ya ek maasoom bacche ka ho yahi anubhooti pradan karta hai.
ReplyDeletesach ko samitTi nirmal rachna.
अनामिका जी आपका आभार । आपकी टिप्पणी से मेरा मनोबल बढा। है । धन्यवाद ।
ReplyDeletesunder prem abhivyakti sahi hai jeevan hamesha ek dusre ke nahi chal sakta bahut sunder likha hai
ReplyDeletebadhai
rachana
रचना जी आपका आभार ।
ReplyDeleteजीवन की सच्चाई को उजागर करती गहन अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एवं सार्थक शब्दों के साथ
ReplyDeleteआप भी जरुर आयें यहाँ और मेरी मित्रता सदस्य बन कर स्वीकार करें तीनों का
MADHUR VAANI
BINDAAS_BAATEN
MITRA-MADHUR
♥
ReplyDeleteप्रियवर प्रेम सागर सिंह जी
प्रेम सहित नमस्कार !
तुम्हारे हृदय का मौन समर्थन
तुम्हारी वाणी का अनिर्णीत उल्लास
आंखों से बरस-बरस पड़ता प्रेमाग्रह
तुम्हारे पोर-पोर में रचा-बसा प्रेम
तुम्हारे हृदय का निर्मल उच्छवास
भर देता है मेरे रोम-रोम में प्रेम
… अच्छा जी ! तो प्रेम के प्रेम बनने और बने रहने का राज़ यह है :)
मैं तुम बिन कितना विकल रहता हूं
यह तो रब ही जानता है
…बहुत सुंदर रचना है
♥हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
प्रेममय कर दिया आपने तो वाह!
ReplyDeleteराजेंद्र जी एवं चेद्रभूषण जी आप दोनों का आभार । धन्यवाद ।.
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी रचना!
ReplyDeleteगहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
atyant hi bhawuk......bahut achchi lagi.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteतुमने मुझमें कुछ देखा है या नही
ReplyDeleteयह तो तुम्हारा मन ही जानता है।
पर मैंने तुममे जो कुछ भी देखा है
उसे मेरा दिल ही जानता है
मैं तुम बिन कितना विकल रहता हूँ,
यह तो रब ही जानता है...
waah... kitna khoobsoorat hai ye saath, ye prem...
lajawaab...
प्रेम-सरोवर से छलकता हुआ प्रेम .. आह्लादित हुई.आभार.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना ! हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteजीवन की सच्चाई को उजागर करती गहन अभिव्यक्ति .......
ReplyDeleteआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 26-09-2011 को सोमवासरीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
ReplyDeleteप्रेम के रस से सरावोर सुंदर भावाभिव्यक्ति. बधाई सुंदर प्रस्तुति के लिये.
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति पर
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई ||
बहुत सुन्दर और बहुत कुछ कहती रचना
ReplyDeleteMy Blogs:
Life is just a Life
My Clicks...
.
aadarniy sir
ReplyDeleteek bekal man ki vyatha ko aapne bakhuubi vyakt kiya hai.
prem -ras se sarobaar aapki rachna man ko aahladit
kar gai.bahut hi bhav-purn prstuti.
bahut bahut badhai
sadar naman
poonam
वाह! बड़ी सुनदर प्रेमासिक्त रचना....
ReplyDeleteसादर...
यह तो रब ही जानता है ।- बहुत ही गहरी उक्ति ! सबका मालिक एक है !
ReplyDeleteतुम्हारे पोर-पोर में रचा-बसा प्रेम,
ReplyDeleteतुम्हारे हृदय का निर्मल उच्छवास,
भर देता है मेरे रोम-रोम में प्रेम।
प्रेम की सुकोमल अभिव्यक्ति।
मेरी भूल की ओर ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद, प्रेम सागर जी।
महेंद्र वर्मा जी आपका आभार । धन्यवाद ।
ReplyDeleteतुमने मुझमें कुछ देखा है या नही
ReplyDeleteयह तो तुम्हारा मन ही जानता है।
पर मैंने तुममे जो कुछ भी देखा है
उसे मेरा दिल ही जानता है
प्रेम की गहराई और मन में चलने वाली उठापठक को आपने सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है ....यहाँ प्रेम जीवन दर्शन बन पड़ा है और प्रेमी आदर्श .....आपका आभार
आहा... निर्मल प्रेम और समर्पण की कैसी सरल सुन्दर अभिव्यक्ति है...
ReplyDeleteमन को सींच जाती है...
बहुत ही सुन्दर रचना...वाह..
Nice post.
ReplyDeleteगर तू है लक्खी बंजारा और खेप भी तेरी भारी है
ऐ ग़ाफ़िल तुझसे भी चढ़ता इक और बड़ा ब्योपारी है
क्या शक्कर मिसरी क़ंद गरी, क्या सांभर मीठा-खारी है
क्या दाख मुनक़्क़ा सोंठ मिरच, क्या केसर लौंग सुपारी है
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा।
http://hbfint.blogspot.com/2011/09/blog-post_8879.html
रंजना एवं डॉ. अनवर जमाल जी आप सबका आभार ।
ReplyDeleteतुम्हारे हृदय का मौन समर्थन,
ReplyDeleteतुम्हारी वाणी का अनिर्णीत उल्लास,
आँखों से बरस-बरस पड़ता प्रेमाग्रह,
तुम्हारे पोर-पोर में रचा-बसा प्रेम,
तुम्हारे हृदय का निर्मल उच्छवास,
भर देता है मेरे रोम-रोम में प्रेम.
- एक वीर-हृदय के सहज प्रेमोद्गार प्रभावित करने में समर्थ हैं .
अपने देश के रक्षक, सैनिक को मेरा नमन !
बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteप्रतिभा सक्सेना जी पहली बार किसी ने मेरे सैनिक सत्ता को स्वीकार किया है । आपके जजबे को भी सलाम करता हूँ । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर. हालांकि कविता के बारे में मेरी जानकारी कम है, लेकिन आपकी रचना दिल को छूने वाली है. ब्लोग पेर आना अच्छा लगा.
ReplyDeleteपर मैंने तुममे जो कुछ भी देखा है
ReplyDeleteउसे मेरा दिल ही जानता है
मैं तुम बिन कितना विकल रहता हूँ,
यह तो रब ही जानता है ।
लाजवाब पंक्तियाँ.
मैं जानू या रब जाने
ReplyDeleteऔर न जाने कोय।
सुनीता जी, अभिषेक मिश्र एवं देवेंद्र पाण्डेय जी आप सबका आभार।
ReplyDeletemaun prem yun hin jivan mein aanad bhar deta hai...bahut sundar rachna, badhai.
ReplyDeleteदिल से निकली हुई नज़्म दिल को छू गयी.
ReplyDeleteआपकी कलम को सलाम.
शबनम जी आपका मेरे पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा एवं मन को एक सुखद अहसास की अनुभूति से पुलकित कर गया ।
ReplyDeleteधन्यवाद ।
विशाल जी आपका भी आभार ।
ReplyDeleteधन्यवाद ।
सबसे पहले हमारे ब्लॉग 'खलील जिब्रान' पर आपकी टिप्पणी का तहेदिल से शुक्रिया.........आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ...........पहली ही पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब...........आज ही आपको फॉलो कर रहा हूँ ताकि आगे भी साथ बना रहे|
ReplyDeleteकभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए- (अरे हाँ भई, सन्डे को भी)
http://jazbaattheemotions.blogspot.com/
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एक गुज़ारिश है ...... अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आया हो तो कृपया उसे फॉलो करके उत्साह बढ़ाये|
इमरान अंसारी जी आपका आभार । मैं वादा करता हूँ कि भविष्य में जो भी व्लॉग पसंद आएगा तो उसका अनुसरण करूँगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteप्रेम में सहजता से उठती हुई तरंगे व सरलता एवं लौलित्य से बहती हुई उत्तम रचना के लिए आपको बधाई.
ReplyDeleteतुम्हारे हृदय का मौन समर्थन,
ReplyDeleteतुम्हारी वाणी का अनिर्णीत उल्लास,
आँखों से बरस-बरस पड़ता प्रेमाग्रह,
तुम्हारे पोर-पोर में रचा-बसा प्रेम,
तुम्हारे हृदय का निर्मल उच्छवास,
भर देता है मेरे रोम-रोम में प्रेम.bhut hi achi panktiyan.
Beautiful...Heart and love depicted so nicely in the poem...
ReplyDeleteAlso, loved the last line!
ReplyDeleteसबसे पहले आपको तथा आपके परिवार को मेरी तरफ से विजय दशमी के शुभ अवसर पर हार्दिक शुभकामना / रही आपकी कविता की बात तो, मैं यही कहना चाहूँगी कि आप बड़े संवेदनशील हैं और इसका परिचय आपकी कविताओं से मिल जाता है /
ReplyDeleteसुंदर प्रेमगीत
ReplyDeleteBehtarin kavita jo manav man ko bhavpurn shabdo mein vyakt karne mein sakshm hui hai.
ReplyDeleteसंध्या जी आपकी प्रतिक्रिया से मेरा मनोबल बढ़ा है।.
ReplyDeleteधन्यवाद ।
विजया दशमी पर्व आप सब को मंगलमय एवं शुभ हो
ReplyDeleteतत्सुखें सुखिनः की स्थिति शायद यही है, प्रेम का चरमोत्कर्ष भी यही है. साधुवाद इस एह्साब और अनुभव के लिए. आपने इतना पाया बहुत पाया. बधाई .
ReplyDeleteसुन्दर भाव!
ReplyDeleteBahut khub ....
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति....आपका ब्लॉग पढ़ कर बहुत अच्छा लगा..बधाई!
ReplyDeleteतुम्हारे हृदय का मौन समर्थन...!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर!!
bahut hi achi kavita.....bdhai swikaar karen...
ReplyDeleteकृप्या अपने में ब्लॉग में शेयर बटन को चालू करें ताकि मैं आपकी रचनाओ को हिन्दी ब्लॉग परिवार से लिंक दे सकूँ http://dir.kirtigautam.in
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