आज की युवा पीढ़ी मिथ्या प्रेम संबंधों के भंवर में फँसती जा रही है । परिणाम स्वरूप, यह संबंध उन्हें आदर्शोन्मुखी राह से पथ विचलित कर देता है । ‘प्रेम बटोही’ कविता के माध्यम से मैनें वर्तमान पीढ़ी के नवयुवकों को एक संदेश देने का प्रयास किया है जिसके माध्यम से मेरी बात शायद उनके अन्तर्मन में थोड़ी सी जगह पा जाए । अन्त में, इस ब्लॉग से जुड़े समस्त साहित्यानुरागियों, सुधी पाठकों को मेरी ओर से नव वर्ष की अशेष शुभकामनाएं !
प्रेम बटोही
--- --- प्रेम सागर सिंह
प्रेम मोम का बन्धन है,
परिणति इसका क्रन्दन है ।
सोच समझ कर आगे बढ़ना,
यह मात्र हृदय स्पन्दन है ।
हे बटोही ! सजग ही रहना
डगर बड़ा ही दुर्गम है ।
पथ भरे पडे़ हैं शूलों से,
बाट बडा ही निर्गम है ।
इस प्रेममयी स्वार्थी दुनिया में,
मायावी छलनाएं हैं कायल ।
अपनी कपट पूर्ण मुस्कानों से,
सबको कर देती है घायल ।
हे प्रेम पिपासु !बच के रहना
इन स्वार्थी छलनाओं से ।
बहुतों को बर्बाद किया है,
अपने कुटिल स्वभावों से ।
हे प्रेम रसिक ! वश में रखना,
निज भ्रमित और चंचल मन को ।
कौन जाने किस पागल घड़ी में,
पथ विचलित कर जाए तुझको ।
प्रेम पथिक ! अब पथ्यांतर कर,
एक पृथक पथ का सृजन करो ।
दिग्भ्रमित बटोही उस राह चले,
ऐसा ही सुदृढ़ संकल्प करो ।
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प्रेम बटोही
--- --- प्रेम सागर सिंह
प्रेम मोम का बन्धन है,
परिणति इसका क्रन्दन है ।
सोच समझ कर आगे बढ़ना,
यह मात्र हृदय स्पन्दन है ।
हे बटोही ! सजग ही रहना
डगर बड़ा ही दुर्गम है ।
पथ भरे पडे़ हैं शूलों से,
बाट बडा ही निर्गम है ।
इस प्रेममयी स्वार्थी दुनिया में,
मायावी छलनाएं हैं कायल ।
अपनी कपट पूर्ण मुस्कानों से,
सबको कर देती है घायल ।
हे प्रेम पिपासु !बच के रहना
इन स्वार्थी छलनाओं से ।
बहुतों को बर्बाद किया है,
अपने कुटिल स्वभावों से ।
हे प्रेम रसिक ! वश में रखना,
निज भ्रमित और चंचल मन को ।
कौन जाने किस पागल घड़ी में,
पथ विचलित कर जाए तुझको ।
प्रेम पथिक ! अब पथ्यांतर कर,
एक पृथक पथ का सृजन करो ।
दिग्भ्रमित बटोही उस राह चले,
ऐसा ही सुदृढ़ संकल्प करो ।
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दिग्भ्रमित बटोही उस राह चले,
ReplyDeleteऐसा ही सुदृढ़ संकल्प करो ।
प्रेम-पथ के दिग्भ्रमित बटोही को सही पथ दिखलाने का आपका यह प्रयास रुचिकर लगा। बहुत-बहुत बधाई। आपको भी नव वर्ष की शुभ कामनाएं।
इस प्रेममयी स्वार्थी दुनिया में,
ReplyDeleteमायावी छलनाएं हैं कायल ।
अपनी कपट पूर्ण मुस्कानों से,
सबको कर देती है घायल ।
हे प्रेम पिपासु !बच के रहना
इन स्वार्थी छलनाओं से ।
बहुतों को बर्बाद किया है,
अपने कुटिल स्वभावों से .
right observation, Good
बढ़िया शुरूआत है.....बधाई स्वीकार करें।
ReplyDeleteसुंदर गीत
ReplyDeleteBahut achi rachna .Likhte rahe....
ReplyDeleteAap Sab ko Tahe Dil se Shukriya Adaa Karta hun.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है |
ReplyDeleteregards
-aakash