अपने ही मन से कुछ बोलें :अटल बिहारी बाजपेयी
(भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी)
क्या खोया, क्या पाया जग में
मिलते और बिछुड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत
यद्यपि छला गया पग-पग में
एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें!
पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी
जीवन एक अनन्त कहानी
पर तन की अपनी सीमाएँ
यद्यपि सौ शरदों की वाणी
इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर, खुद दरवाज़ा खोलें!
जन्म-मरण अविरत फेरा
जीवन बंजारों का डेरा
आज यहाँ, कल कहाँ कूच है
कौन जानता किधर सवेरा
अंधियारा आकाश असीमित, प्राणों के पंखों को तौलें!
अपने ही मन से कुछ बोलें!
मिलते और बिछुड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत
यद्यपि छला गया पग-पग में
एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें!
पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी
जीवन एक अनन्त कहानी
पर तन की अपनी सीमाएँ
यद्यपि सौ शरदों की वाणी
इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर, खुद दरवाज़ा खोलें!
जन्म-मरण अविरत फेरा
जीवन बंजारों का डेरा
आज यहाँ, कल कहाँ कूच है
कौन जानता किधर सवेरा
अंधियारा आकाश असीमित, प्राणों के पंखों को तौलें!
अपने ही मन से कुछ बोलें!
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क्या बात
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना....
ReplyDeleteआजकल आपका लेखन कार्य धीमा क्यूँ है???
आज मैंने भी 2 पिछली पोस्ट पढीं.
सादर
अनु
सुंदर अभिव्यक्ति ... नवरात्र की शुभकामनाएं
ReplyDeleteओह ....प्रासांगिक
ReplyDelete" कालो जगत भक्षति "
ReplyDeleteसार्थक सीख, मन की कह दें हम
ReplyDeleteसुंदर सीख देती रचना ,,,,
ReplyDeleteनवरात्रि की शुभकामनाएँ ...!
RECENT POST : अपनी राम कहानी में.
बहुत बढ़िया.. अच्छा लगा अटल जी को पढ़ना..शुभकामनाएँ ..
ReplyDeleteजीवन की सचाई, बहुत बढ़िया
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