Thursday, October 10, 2013

अटल बिहारी बाजपेयी जी की कविता

अपने ही मन से कुछ बोलें :अटल बिहारी बाजपेयी


                                                                 
                   (भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी)


क्या खोयाक्या पाया जग में
मिलते और बिछुड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत
यद्यपि छला गया पग-पग में
एक दृष्टि बीती पर डालेंयादों की पोटली टटोलें!
पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी
जीवन एक अनन्त कहानी
पर तन की अपनी सीमाएँ
यद्यपि सौ शरदों की वाणी
इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक परखुद दरवाज़ा खोलें!
जन्म-मरण अविरत फेरा
जीवन बंजारों का डेरा
आज यहाँकल कहाँ कूच है
कौन जानता किधर सवेरा
अंधियारा आकाश असीमित, प्राणों के पंखों को तौलें!
अपने ही मन से कुछ बोलें!

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9 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना....
    आजकल आपका लेखन कार्य धीमा क्यूँ है???
    आज मैंने भी 2 पिछली पोस्ट पढीं.
    सादर
    अनु

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  2. सुंदर अभिव्यक्ति ... नवरात्र की शुभकामनाएं

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  3. ओह ....प्रासांगिक

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  4. सार्थक सीख, मन की कह दें हम

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  5. सुंदर सीख देती रचना ,,,,
    नवरात्रि की शुभकामनाएँ ...!

    RECENT POST : अपनी राम कहानी में.

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  6. बहुत बढ़िया.. अच्छा लगा अटल जी को पढ़ना..शुभकामनाएँ ..

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  7. जीवन की सचाई, बहुत बढ़िया

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